MP News: भोपाल गैस पीड़ित कैंसर मरीजों को अब एम्स में पूरी तरह मुफ्त इलाज मिलेगा. भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े मामले में केन्द्र सरकार की ओर से हाईकोर्ट में जवाब पेश कर बताया गया कि गैस पीड़ित कैंसर मरीज को एम्स अस्पताल में पूरा इलाज मुफ्त में दिया जाएगा. दरअसल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े अवमानना के एक मामले में सोमवार को सुनवाई हुई. इस दौरान एम्स प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है.
दरअसल, इससे पहले की सुनवाई में हाई कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी पीड़ित कैंसर के मरीजों को एम्स में फ्री इलाज उपलब्ध कराने का आदेश दिया था. इसके साथ ही इस मामले की देख रेख के लिए मॉनिटरिंग कमेटी भी बनाई गई थी, लेकिन मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं पर कोई काम नहीं होने का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दाखिल की गई थी. सरकारी अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है.
पिछली सुनवाई में क्या हुआ
पिछली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर सवाल किया था कि भोपाल गैस त्रासदी पीड़ित कैंसर मरीजों के लिए निजी अस्पताल और एम्स में इलाज व भुगतान के लिए क्या व्यवस्था है. इसके जवाब देते हुए केन्द्र सरकार की ओर से बताया गया था कि गैस पीड़ित कैंसर मरीज को एम्स अस्पताल में पूरा इलाज मुफ्त में दिया जाएगा.
इसलिए एम्स को भेजा नोटिस
केंद्र सरकार के जवाब पर कोर्ट मित्र नमन नागरथ ने कहा था कि एमओयू के तहत जो प्रोसेस अपनाई जा रही है, उससे ट्रीटमेंट शुरू करने में देरी हो रही है. इसके बाद अदालत ने इस मामले में एम्स को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए.
19 फरवरी को सुनवाई
अब इस मामले पर अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी.केंद्र सरकार के जवाब पर कोर्ट मित्र नमन नागरथ ने कहा था कि एमओयू के तहत जो प्रोसेस अपनाई जा रही है, उससे ट्रीटमेंट शुरू करने में देरी हो रही है. इसके बाद अदालत ने इस मामले में एम्स को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए.
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क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन समेत अन्य की याचिका की सुनवाई की थी. इस दौरान गैस पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास के संबंध में 20 निर्देश दिए थे. इनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए बाकायदा मॉनिटरिंग कमेटी गठित करने के आदेश दिए थे. इस कमेटी को हर तीन माह में अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट के सामने पेश करने को कहा था. साथ ही रिपोर्ट के आधार पर केंद्र और राज्य सरकारों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाने थे. मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं पर कोई काम नहीं होने का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें सरकारी अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है.