MP News: हिंगोट युद्ध अब पूरे देश भर में प्रसिद्ध हो चुका है. इसे भले ही युद्ध का नाम दिया जाता है लेकिन ये एक परंपरा है. मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के गौतमपुरा नाम के कस्बे में हिंगोट युद्ध खेला जाता है. ये दिवाली के दूसरे दिन दो गांवों के बीच होता है. इसमें गांववाले एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकते हैं. जिस गांव के हिंगोट पहले खत्म हो जाते हैं वो जीत जाता है.
हिंगोरिया के फल से बनते हैं हिंगोट युद्ध के हथियार
इस युद्ध में हिंगोरिया नाम के फल का उपयोग किया जाता है. ये बड़े आकार के नींबू की तरह होता है. इसके बाहर का हिस्सा नारियल की तरह सख्त और अंदर का हिस्सा गूदेदार होता है. इसके अंदर के गुदे को निकाला जाता है. इसकी जगह पर बारूद भरा जाता है. इसमें एक तरफ छोटा सा छेद बनाया जाता है. यहीं से आग लगाकर एक दूसरों पर फेंका जाता है.
कलंगी और तुर्रा गांव के बीच होता हैं युद्ध
हिंगोट का ये युद्ध दो गांव के बीच खेला जाता है. एक गांव को कलंगी और दूसरे को तुर्रा कहा जाता है. वैसे हर बार की तरह कलंगी गौतमपुरा और तुर्रा रुणजी गांव बनता है. इन्हीं दोनों गांवों के बीच हिंगोट का युद्ध खेला जाता है. दोनों गांव के लोग एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकते हैं.
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जिसके हिंगोट पहले खत्म वो विजेता
इस खेल के नियम बनाए गए हैं. जिस गांव के हिंगोट पहले खत्म होंगे वो विजेता बन जायेगा. इसी कारण दोनों गांव से बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं. इससे हिंगोट फेंकने के लिए होड़ सी मच जाती है. एक हाथ से हिंगोट फेंका जाता है और दूसरे हाथ में ढ़ाल लेकर अपना बचाव किया जाता है.
मराठा और मुगल से आई परंपरा
ये परंपरा कब शुरू हुई? कैसे शुरू हुई? कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. ऐसा कहा जाता है की एक बार गौतमपुरा पर रुणजी गांव की ओर से मुगलों ने हमला किया. उस समय यहां मराठा सेना तैनात थी. मराठा फौज ने हिंगोट बनाकर मुगलों पर फेंका. इसमें मराठा सपूतों की विजय हुई. इसके बाद से माना जाता है कि ये युद्ध परंपरा शुरू हुई.