MP News: जबलपुर को संस्कारधानी के नाम से जाना जाता है. बेमिसाल संस्कृति की झलक यहां के माहौल में भी देखने को मिलती है. मंदिरों की बात करें तो यहां कई प्रसिद्ध मंदिर है. इनमें से एक चारखंभा एरिया में स्थित है प्रसिद्ध बूढ़ी खेरमाई का मंदिर.
1500 साल पुराना कल्चुरी काल है मंदिर
ये मंदिर जबलपुर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. बूढ़ी खेर माई मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये कल्चुरी काल का है. कई विद्वानों का मानना है कि इस मंदिर को कल्चुरी राजा कोक्कल देव ने आज से 1500 साल पहले बनवाया था. मान्यता है कि खेरमाई कल्चुरी राजाओं की कुलदेवी थीं. बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार गोंड राजाओं ने करवाया था.
गोंड राजा मदन शाह ने आशीर्वाद लेकर मुगलों को हराया
लोक मान्यता है कि बूढ़ी खेरमाई की पूजा करने गोंड राजा भी आया करते थे. गोंड राजा मदन ने यहां पूजा-अर्चना की फिर युद्ध में मुगलों की सेना को हराया. गोंड वंश के प्रसिद्ध शासक संग्राम शाह ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. इन राजाओं के अलावा सभी राजा और रानियों ने मंदिर का संरक्षण किया.
धूमावती देवी के रूप में होती है पूजा
बूढ़ी खेरमाई का मतलब यहां उम्र की अवस्था को लेकर नहीं है बल्कि छोटे-बड़े को लेकर है. स्थानीय भाषा में बड़ी खेरमाई को बूढ़ी खेरमाई कहा जाता है. देवी की दस महाविद्याओं में से एक धूमावती की पूजा यहां की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि आज श्रद्धालु जिस मूर्ति को देखते हैं वो असली मूर्ति नहीं है.
धूमावती देवी का विधवा और विकराल स्वरूप है. ऐसा कहा जाता है कि महिलाओं को धूमावती देवी की पूजा नहीं करनी चाहिए. इसी कारण से धूमावती देवी की मूर्ति के आगे सौम्य रूप वाली देवी की मूर्ति स्थापित की गई.
मंदिर में होती है तामसिक और सात्विक पूजा
बूढ़ी खेरमाई के इस मंदिर में दो तरह से पूजा होती है. इनमें तामसिक और सात्विक पूजा. ऐसा कहा जाता है कि जब तांत्रिक क्रियाएं की जाती हैं तब तामसिक पूजा की जाती है. ये पूजा में साधारण व्यक्ति शामिल नहीं होते हैं. दूसरी तरह की पूजा यानी सात्विक पूजा में सभी लोग शामिल होते हैं.
बाना अर्पण करने से होती है मनोकामना पूरी
ये मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. यहां श्रद्धालु मन्नत मांगने दूर-दूर से आते हैं. ऐसा कहा जाता है कि यहां बाना चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. बाना एक तरह की धार्मिक वस्तु है. ये लोहे या किसी दूसरी धातु की बनी होती है. इसे देवियों को अर्पित किया जाता है.
खेरमाई वो देवी जो शहर-गांव की रक्षा करती हैं
पहले खेरमाई के मंदिर गांव की बाहरी सीमा पर बनाए जाते थे. इस तरह मंदिर बनाने के पीछे कारण बताया जाता था कि देवी बाहरी दुश्मनों से रक्षा करेंगी. ये दुश्मन भौतिक-अभौतिक किसी भी तरह के हो सकते हैं. बीमारियों को दूर करने के लिए भी खेरमाई की पूजा की जाती है. आज भी ऐसा माना जाता है कि खेरमाई शहर-गांव की रक्षा करती हैं. चारखंभा में स्थित बूढ़ी खेरमाई का मंदिर पहले गांव में ही था जो आज शहर में आ चुका है.
साल की दोनों नवरात्रि में रहती है रौनक
शारदेय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि यहां धूमधाम से मनाते हैं. नौ दिनों में भक्तों का तांता लगा रहता है. मंदिरों को विशेष रूप सजाया जाता है. खेरमाई का अलग-अलग दिन अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है. भोग में तरह-तरह के पकवान अर्पित किए जाते हैं.
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है. जवारे बोए जाते हैं जो सुख-समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं. नौवें दिन इन जवारों को पूरी श्रद्धा के साथ विसर्जित किया जाता है.