भोपाल: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तारीखों का ऐलान हो गया है. सभी राजनैतिक दल चुनाव की तैयारियों मे जुट गए हैं. लेकिन मध्य प्रदेश के सांसद जनता के लिए संसद में कितने सक्रिय रहे हैं. विस्तार न्यूज ने इसकी एनालिसिस रिर्पोर्ट तैयार की है. जिसमे कई चौकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आए. इस पूरी रिर्पोट में आपको आपके सांसद के द्वारा पूछे गए सवाल, विकास के लिए खर्च की राशि, के साथ सांसद कितने दिन संसद मे उपस्थित रहे सारी जानकारी विस्तार से पढ़ने को मिलेगी.
बता दें कि साल 2019 में 28 भाजपा के सांसद लोकसभा पहुंचे थे. वहीं भाजपा ने साल 2024 में 13 सांसदों का टिकट काट दिया है. नए चेहरों को भाजपा ने मौका दिया है लेकिन साल 2019 से 2024 के बीच कितने सांसद जनता की आवाज को लोकसभा के सदन में रखा है. जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस की है. हमने पता करने की कोशिश की.
80 से लेकर 98 फीसदी तक फंड का इस्तेमाल हुआ
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 16 चेहरों को फिर से मौका दिया है. साल 2019 से अबतक लोकसभा में सांसदों की सक्रियता के एनालिसिस में जानकारी निकलकर सामने आई है कि 6 से 7सांसदों की एटेंडेस महज 40 से 45 फीसदी ही रही है. इसके अलावा जनहित के मुद्दों और सरकार से सवाल पूछने में भी फिसड्डी साबित हुए हैं.
अब लोकसभा के चुनाव में फिर से भाजपा ने उन्हें टिकट दिया है तो जनता भी माननीयों के कामकाज की समीक्षा जरूर कर लें. हालांकि एक दिलचस्प पहलू भी है कि सभी माननीयों ने सांसद निधि के इस्तेमाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. 80 फीसदी से लेकर 98 फीसदी तक फंड का इस्तेमाल किया है लेकिन डिबेट और क्षेत्र की जनता के लिए सरकार ने जरूर सवाल पूछने में कोहाती बरती.
खास बात है कि छिंदवाड़ा माडल वाले क्षेत्र से आने वाले नकुलनाथ तो सिर्फ एक ही मुद्दे पर बहस की है, नाथ ने 29 ही सवाल किए हैं. ऐसे में सवाल जरूर है कि साल 2019 में जनता ने कांग्रेस पर भले ही जनाधिकार मात्र एक ही सीट पर दिया लेकिन विपक्ष के नाते मध्य प्रदेश की जनता के लिए नकुल अकेले ही विपक्ष पर भावी हो सकते थे. मगर 103 दिनों की सदन में मौजूदगी के बाद भी सिर्फ एक ही मुद्दे पर डिबेट किया और 29 ही सवाल पूछकर उपस्थिति दर्ज कराई.
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ये है सासंद का रिपोर्ट कार्ड
कम सक्रिय रहने वाले सांसद
सदस्य खर्च डिबेट एटेंडेंस सवाल
फग्गन सिंह कुलस्ते 9.5 करोड़ में से 8.81 करोड़ रुपए खर्च 23 23 0
रमाकांत भार्गव 7 करोड़ में से 6 करोड़ रुपए खर्च 10 107 07
चातर सिंह दरबार 9.77 करोड़ में से 8.83 करोड़ रुपए खर्च 12 121 17
ज्ञानेंद्रश्वर पाटिल 4.48 करोड़ में से 3.86 करोड़ रुपए खर्च 04 80 87
वीरेंद्र कुमार 9.55 करोड़ में से 7.5 करोड़ रुपए खर्च 72 मोबाइल से 59
प्रज्ञा सिंह ठाकुर 9.48 करोड़ में से 9.45 करोड़ खर्च 19 100 35
संध्या राय 11.68 करोड़ में से 9.84 करोड़ रुपए खर्च 20 141 83
नकुल नाथ 14.83 करोड़ में से 12. 64 करोड़ रुपए खर्च 01 103 29
सबसे ज्यादा एक्विट सांसद
सदस्य खर्च डिबेट एटेंडेंस सवाल
राज बहादुर सिंह 7.27 करोड़ रुपए में से 6.15 करोड़ रुपए खर्च 06 135 20
वीडी शर्मा 6.56 करोड़ रुपए में से 5.7 करोड़ रुपए खर्च 17 76 176
विवेक नारायण शेजवलकर 12.86 करोड़ में से 9.35 करोड़ खर्च 42 131 149
गणेश सिंह 9.65 करोड़ में से 9.73 करोड़ रुपए खर्च 88 130 166
हिमाद्री सिंह 9.29 करोड़ में से 9.02 करोड़ रुपए खर्च 05 131 22
दुर्गा दास उईके 15 करोड़ में से 13.42 करोड़ रुपए खर्च 19 130 27
सुधीर गुप्ता 7 करोड़ रुपए में से 6.63 करोड़ रुपए खर्च 51 126 127
गजेंद्र सिंह पटेल 6.67 करोड़ रुपए में से 6.27 करोड़ रुपए खर्च 24 119 126
जनार्दन मिश्रा 10.13 करोड़ रुपए में से 10.13 करोड़ रुपए खर्च 40 130 52
जनता के सामने सवाल, संदन में चुप्पी
कई ऐसे सांसद भी रहे हैं, जो अक्सर क्षेत्र में विकास और सुरक्षा सहित कई मुद्दों पर सुर्खियों में रहे हैं लेकिन सदन में सवाल पूछने में फिसड्डी साबित हुए हैं, भाजपा के अलावा कांग्रेस के भी ऐसे ही इकलौते सांसद है. उदाहरण के तौर पर भोपाल से सांसद रही साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी हैं, भोपाल स्टेशन पर सुरक्षा व्यवस्था और ओवर ब्रिज के निर्माण पर कई सवाल उठाए लेकिन सदन में चुप्पी साध ली, छिंदवाड़ा से नकुलनाथ का भी ऐसा ही कार्यकाल रहा है, नाथ ने किसानों के मुद्दें को भी उठाया, खाद बीज और एसएसपी जैसे कई मुद्दों पर सरकार को घेरा भी मगर सदन में केंद्र सरकार से जवाब नहीं लिया और न ही किसानों की मांगों को लेकर लोकसभा में मोर्चा खोला.
खैर माननीयों का 5 साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है. चुनाव की आचार संहिता भी लागू हो गई है. अब जनता के पास भी कुछ दिनों का मौका है कि वह अपने क्षेत्र के प्रत्याशियों की सक्रियता पर मंथन कर वोट करें, भाजपा ने भी सांसदों के परफार्मेंस के आधार पर भी कई सांसदों के टिकट भी काट दिए हैं, उदाहरण के तौर पर विदिशा, भोपाल, बालाघाट सीट शामिल है, लेकिन सवाल यही है कि माननीयों के कामकाज की समीक्षा हर साल होनी चाहिए, क्योंकि 5 साल में किए कई वादे अधूरे ही रह जाते हैं और जनता ठगा हुई महसूस करती है.