MP News: वन अधिकार अधिनियम, जनवरी 2008 में लागू हुआ था. प्रदेश में अब तक 2 लाख 75 हजार 352 से अधिक व्यक्तिगत वन अधिकार दावे मान्य किये गये हैं. इसके अलावा 29 हजार 996 सामुदायिक वन अधिकार दावों को भी मान्यता प्रदान की गई है. वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त वन अधिकार दावों का निर्धारित पात्रता अनुसार समुचित विधिक प्रक्रिया से निराकरण किया जा रहा है.
792 वन ग्राम बने राजस्व ग्राम
इस अधिनियम से 792 राजस्व ग्रामों को वन ग्रामों में तब्दील किया जा चुका है. इसके लिये राजस्व ग्राम के जिला कलेक्टर्स ने नोटिफिकेशन जारी की है.
सभी जिलों का FRA एटलस भी तैयार
केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय नई दिल्ली के निर्देश पर वन अधिकार अधिनियम के पोटेंशियल एरिया की मैपिंग के लिए प्रदेश के सभी जिलों का FRA एटलस भी तैयार कर लिया गया है. FRA एटलस की सहायता से सामुदायिक वन संसाधनों के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रबंधन के सामुदायिक अधिकारों सहित अन्य जरूरी अधिकारों को भी कानूनी मान्यता देने की कार्रवाई की जा रही है.
शासकीय योजनाओं का मिल रहा है लाभ
मध्यप्रदेश में सभी वन अधिकार पत्र धारकों को विभिन्न प्रकार की शासकीय योजनाओं का लाभ भी दिया जा रहा है. अब तक 55 हजार 357 वन अधिकार पत्र धारकों को कपिलधारा कूप, 58 हजार 796 को भूमि सुधार/मेंढ़-बंधान, 61 हजार 54 को पक्का आवास/प्रधानमंत्री आवास, 1 लाख 86 हजार 131 को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ देकर 21 हजार 514 वन अधिकार पत्र धारकों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना से भी जोड़ा गया है.
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क्या है वन अधिकार अधिनियम?
वन अधिकार अधिनियम केन्द्र सरकार द्वारा 2006 में लागू किया गया एक महत्वपूर्ण कानून है. इसका उद्देश्य वन क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों की रक्षा करना है. इसे अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के अधिकारों को मान्यता देने के लिए लागू किया गया था. इसमें वन क्षेत्रों में रह रहे आदिवासी और अन्य परंपरागत वन निवासी अपने पुश्तैनी निवास और कृषि भूमि पर मालिकाना हक हासिल कर सकते हैं. इन्हें जंगलों के संसाधनों अर्थात वनोपज पर अधिकार दिया गया है. जैसे लकड़ी, फल, शहद, जड़ी-बूटी आदि का संग्रहण. सामुदायिक स्तर पर वे जंगल की भूमि और अन्य संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन कर सकते है.
यह अधिनियम वनवासियों को व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों तरह के अधिकार प्रदान करता है. ग्राम सभा दावों की पुष्टि करती है और उन्हें मंजूरी देती है. इसके तहत सरकार की अनुमति के बिना वन क्षेत्रों से विस्थापन नहीं किया जा सकता है. स्थानीय समुदायों को वन क्षेत्रों के संरक्षण में भागीदारी का अधिकार मिलता है. इस अधिनियम ने वनवासियों को उनके पूर्वजों की भूमि पर अधिकार दिया है, जिससे उनके जीवन-यापन के साधनों को मजबूती मिली है. वन अधिकार अधिनियम से वनवासियों की आजीविका में सुधार आया है और इससे इन्हें अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने का अधिकार मिला है. यह अधिनियम जनजातीय और वन समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने के साथ ही उनके पारम्परिक जीवन और संस्कृति की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है.