MP News: पुलिस मुख्यालय ने एक बार फिर सभी पुलिस अधीक्षकों को एक बार फिर निर्देशित किया है कि आपराधिक मामले की जांच करने के बाद उनका अभियोग पत्र एक बार में ही प्रस्तुत किया गया. इस संबंध में पिछले दस सालों से लगातार पुलिस मुख्यालय इस संबंध में पुलिस अधीक्षकों को लिख रहा है, इसके बाद भी अफसर इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. इसके चलते एक बार फिर से जिला पुलिस अधीक्षकों को इस संबंध में निर्देश दिए गए हैं.
जानकारी के अनुसार पिछले कई सालों से पुलिस मुख्यालय इसकी मॉनिटरिंग कर रहा है. जिसमें यह पाया जा रहा है कि अदालत में मूल चालान प्रस्तुत करने के बाद विवेचना अधिकारी शेष अनुसंधान कार्य शीघ्रता से पूरा करने के लिए प्रभावी प्रयास नहीं करते हैं. जिससे प्रकरण के निराकरण में अनावश्यक विलंब होता है. ऐसे मामलों में कई बार न्यायालय भी पुलिस को लेकर विपरीत टिप्पणी कर देते हैं.
एकसाथ अभियोजन पत्र पेश करने के निर्देश
लगातार हो रही मॉनिटरिंग के बाद एक बार फिर सभी पुलिस अधीक्षकों को बताया गया है कि वे भविष्य में सभी अभियुक्तगण के संबंध में समग्र अनुसंधान करते हुए यथासंभव एक साथ अभियोजन पत्र प्रस्तुत करें. केवल असाधारण परिस्थितयों में ही सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश करने की पहल होना चाहिए. यदि सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश की जाना है तो उस केस के संबंध में अनुसंधान प्रभावी और शीघ्रता से पूर्ण करते हुए न्यायालय में समक्ष पेश किया जाए.
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कई पत्र लिखे जा चुके, सीआईडी करता है मॉनिटरिंग
इस तरह के मामलों की जांच में तेजी लाने के लिए पुलिस मुख्यालय की सीआईडी शाख कई पत्र पुलिस अधीक्षकों को लिख चुकी है, लेकिन पुलिस अधीक्षक इसे लेकर गंभीर नहीं है. पिछले दस सालों में कई बार इस तरह के पत्र पुलिस अधीक्षकों को जारी हो चुके हैं. इसके बाद भी कई मामलों में जांच अधूरी है. इन अधूरी जांचों और लंबित मामलों को देखते हुए फिर से पुलिस मुख्यालय ने पुलिस अधीक्षकों को इस संबंध में लिखा है.
कोर्ट में कितने मामले में पेश हुआ चालान – पीएचक्यू
प्रदेश के हर प्रकरण की स्थिति पुलिस मुख्यालय की सीआईडी शाखा करती है. एक साल में कई बार पुलिस मुख्यालय जिलों से यह जानकारी तलब करता है कि कितने मामलों में चालान पेश हो गए और कितनों में सप्लीमेंटी चालान पेश करना है। ऐसे सभी मामलों को लेकर हर माह समीक्षा की जाती है, जिसमें यह लगातार पाया जा रहा है कि जिन मामलों में सप्लीमेंटी चार्जशीट पेश करने के लिए पुलिस अदालत में आवेदन लगा देती है, उसकी जांच में वह उनकी तीव्रता नहीं दिखाती है. ऐसे में जांच अटकी हुई होती है और अदालत में भी प्रकरण लंबित रहता है।. इस तरह के मामलों में जिलों में पुलिस अधीक्षकों को भी समीक्षा करने को कहा जाता रहा है, लेकिन पुलिस मुख्यालय के सामने अब तक अनुकूल परिणाम सामने नहीं आए.