MP News: कलियासोत-बेतवा नदी और उसके किनारे एक पहाड़ी जिस पर एक विशाल चबूतरा बना हुआ है. इस चबूतरे पर एक विशाल मंदिर की दीवारें खड़ी हैं जिसका ना तो शिखर है, ना मंडप है और ना ही दरवाजे. हम जब किसी पुराने मंदिर में जाते हैं खास तौर पर पुराने मंदिरों में उनमें मंडप, अर्धमंडप और गर्भगृह जैसे भाग होते हैं. आज से एक हजार साल पहले बने इस मंदिर में केवल और केवल गर्भगृह है. इस गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग है.
साल 1950 तक इस मंदिर को लगभग लोगों ने भुला दिया था. आज हम जिस रूप में इस मंदिर को जानते हैं ये बिल्कुल अलग रहा होगा. 50 के दशक तक इस मंदिर का रूप और आकार बिल्कुल प्राचीन हिंदू मंदिर की तरह रहा होगा. नागर शैली की भूमिज स्टाइल में बना ये मंदिर अपने इतिहास को बयां करता है.
मध्य भारत का ‘सोमनाथ’ कहलाता है ये मंदिर
भोपाल से लगभग 30 किमी दूर स्थित भोजपुर नाम का एक गांव हैं. इस गांव का नाम परमार वंश के राजा भोज पर पड़ा. इसी भोजपुर गांव में एक शिव मंदिर है जिसे भोजपुर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था. मंदिर की विशालता और भव्यता को देखते हुए इसे मध्य भारत का ‘सोमनाथ’ कहा जाता है.
ASI ने इस मंदिर को फिर से नया रूप दिया. इसकी दीवारों को बनाया गया. आज भी इस मंदिर की देखरेख ASI ही करती है.
भारत के सबसे बड़े शिवलिंग में से एक है
इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इसका शिवलिंग है. इस शिवलिंग की ऊंचाई जमीन से लगभग 40 फीट है. शिवलिंग की ऊंचाई की बात करें तो 7.5 फीट है. इसकी जिलहरी लगभग 22 फीट की है. इसी वजह से इस शिवलिंग को भारत की सबसे बड़ी शिवलिंग में से एक माना जाता है.
कई लोगों का सवाल होता है कि इस गर्भगृह में शिवलिंग को कैसे स्थापित किया गया होगा? इस सवाल के जवाब में स्कॉलर कहते हैं कि पहले शिवलिंग को स्थापित किया गया बाद में मंदिर को बनाया गया. शिवलिंग को स्थापित करने का भी अपना अलग तरीका था. पहले शिवलिंग का आधार (BASE) बनाया गया फिर शिवलिंग को रखा गया और सबसे बाद में जलहरी को दो भाग में दोनों तरफ से जोड़ा गया.
ये भी पढ़ें- MP News: CM मोहन यादव नीति आयोग की बैठक में हुए शामिल, ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य पर हुई चर्चा
पूरा मंदिर बनता तो भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक होता
भोजपुर शिव मंदिर अधूरा है. इसका शिखर नहीं है. गर्भगृह के अलावा कुछ नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर पूरी तरह बन जाता तो भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक होता. ये मंदिर 100 मीटर से ज्यादा बड़ा होता. ये मंदिर तमिलनाडु के वृहदेश्वर मंदिर से भी 1.5 गुना बड़ा होता. मंदिर के पास एक रैंप भी बनाया गया था जिसे आप आज भी देख सकते हैं. शायद इस रैंप का इस्तेमाल मंदिर के शिखर को बनाने में इस्तेमाल किया जाने वाला था.
मंदिर पूरा ना होने की वजह कई सारी हैं. ऐसा कहा जाता है कि मंदिर को एक रात में पूरा करना था लेकिन ये पूरा नहीं किया जा सका. दूसरा कारण ये बताया जाता है कि कल्चुरियों और चालुक्यों के साथ युद्धों में उलझे होने के कारण मंदिर के निर्माण पर राजा भोज ध्यान नहीं दे पाए. तीसरा कारण, स्कॉलर्स की मानें तो राजा भोज की अचानक मौत होने से मंदिर नहीं बन पाया. राजा भोज के वंशजों ने मंदिर बनाने में कोई रुचि नहीं ली. इस कारण मंदिर नहीं बन पाया.
विशाल और कलात्मक मंदिर का उदाहरण
बेशक भोजपुर का शिव मंदिर अधूरा है. पूरी तरह से मंदिर नहीं बना है. जितना भी मंदिर बना शानदार इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर का नमूना है. इस मंदिर के मुख्य द्वार के एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ यमुना नदी की मूर्तियां दिखाई देती हैं. गर्भगृह की पत्थर वाली चौखट पर लटकती घंटी को उकेरा गया है. गर्भगृह में आज परमारकालीन आर्किटेक्चर की झलक देखने को मिलती है. गर्भगृह के बीचोंबीच शिवलिंग के अलावा विष्णु, ब्रह्मा, यक्ष, यक्षिणी, सरस्वती, उमा की मूर्तियां देखने को मिलती हैं.
मंदिर से पहले बनाई गई थीं ड्राइंग
शायद भोजपुर का शिवमंदिर दुनिया का एकमात्र मंदिर हैं जिसे बनाने से पहले ड्राइंग बनाई गई थीं. उससे भी ज्यादा रोचक बात ये है कि इन ड्राइंग्स को चट्टान पर उकेरा गया है. मंदिर के पास ऐसी सैकड़ों ड्राइंग्स देखने को मिलती हैं. इन ड्राइंग्स से ही पता चलता है कि मंदिर को बनाने से पहले इसका पूरा खाका तैयार किया गया था. इस मंदिर के सुंदर और कलात्मक शिखर को उकेरा हुआ देखा जा सकता है. इससे पता चलता है कि परमारकालीन बना ये मंदिर शानदार इंजीनियरिंग का नमूना है.