MP News: आज पूरा देश संविधान दिवस की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. भारतीय संविधान, जिसे 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया था, देश की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है. जब संविधान का निर्माण हुआ, उस समय इसकी 16 मूल प्रतियां देश के विभिन्न हिस्सों में भेजी गई थीं. ग्वालियर रियासत भी इन्हीं में से एक थी. भारत सरकार ने संविधान की मूल प्रति ग्वालियर के सिंधिया राजवंश को भेंट की थी.
सेंट्रल लाइब्रेरी में संविधान की शोभा बढ़ा रही है मूल प्रति
31 मार्च 1956 को ग्वालियर के महाराजबाड़ा स्थित सेंट्रल लाइब्रेरी में संविधान की यह मूल प्रति आम जनता के देखने के लिए रखी गई. तब से यह संविधान की मूल प्रति इस लाइब्रेरी की शोभा बढ़ा रही है.
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संविधान की मूल प्रति: खासियतें जो इसे अद्वितीय बनाती हैं
भारतीय संविधान की मूल प्रति को तैयार होने में 2 साल, 11 महीने और 17 दिन लगे. इसे पूरी तरह से हस्तलिखित (हैंडरिटन) तैयार किया गया है. यह कैलीग्राफी शैली में प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा लिखी गई. जिसे पूरा करने में लगभग 6 महीने लगे. इस प्रक्रिया में गोल्डन इंक का उपयोग किया गया और लिखाई के दौरान 432 पेन की निब घिस गईं. मूल प्रति में संविधान सभा के 287 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं. जिनमें डॉ. बीआर अंबेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे महान नेताओं के हस्ताक्षर शामिल हैं.
इसमें कुल 390 पन्ने हैं, जिन पर भगवान श्रीराम-सीता, मुगल शासक अकबर, टीपू सुल्तान आदि के चित्र बने हुए हैं. इसका पेपर पुणे के हैंडमेड पेपर रिसर्च सेंटर द्वारा उपलब्ध कराया गया था. दावा है कि इस पेपर को 1000 सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
ग्वालियर की विशेष धरोहर
ग्वालियर की सेंट्रल लाइब्रेरी में यह संविधान की मूल प्रति 15 अगस्त, 26 जनवरी और संविधान दिवस के अवसर पर विशेष रूप से प्रदर्शित की जाती है, ताकि लोग इसे देख और समझ सकें.
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युवाओं में उत्साह का केंद्र
संविधान की इस प्रति को देखने के लिए युवा वर्ग विशेष रुचि रखता है. ग्वालियर के साथ-साथ अन्य शहरों से भी लोग इसे देखने आते हैं. युवाओं का कहना है कि भारतीय संविधान न केवल देश की अखंडता और एकता का प्रतीक है बल्कि यह नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है.
ग्वालियर वालों के लिए गर्व का प्रतीक
ग्वालियर की सेंट्रल लाइब्रेरी में मौजूद यह मूल प्रति इस शहर की अमूल्य धरोहर है, जिसे शहरवासी बड़े गर्व के साथ देखते हैं. यह केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की आधारशिला है.