MP News: एक कहानी ये भी में एक बार फिर हम नए सफ़र पर निकले हैं, नयी कहानियां खोजने को मध्य प्रदेश के पन्ना जिले जा रहे हैं, गाड़ी पन्ना जिले की और मोड़ दी गयी है. पन्ना वैसे तो कई चीज़ों के लिए फेमस है लेकिन सबसे ज्यादा जिसके लिए फेमस है वो है हीरा. वो हीरे जो आपको मिल जाएँ, मुझे मिल जाएँ तो हमारी तकदीर बदल दें. हीरों के शहर पन्ना ने और इन हीरों ने पन्ना के लोगों की कितनी तस्वीर बदली, कैसी तस्वीर बदली और वहां क्या बदलाव आया, ये सारी कहानियां विस्तार से सिर्फ आपके लिए विस्तार पर…
पन्ना की तमन्ना है के हीरा उसे मिल जाए, हीरा पन्ना नाम की इस मूवी का यह गीत असलियत में पन्ना के लोगों और न सिर्फ पन्ना बल्कि गुजरात राजस्थान समेत भारत के कई हिस्सों में बसने वाले लोगों के मन में बसा हीरा प्रेम बयां करता है.
48 वर्षों से हीरा खदानों में जूझ रहे प्रकाश शर्मा जिन्हे इलाके में लोग कक्कू के नाम से जानते हैं वो बताते हैं कि कैसे दसवीं पास करने के बाद वो हीरा खदानों में काम करने लगे.
“हमने 1975 में दसवीं पास की थी उसके बाद से ही हीरा खोज रहे हैं. काफ़ी मेहनत की लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा. फिर कुछ वर्ष पहले मैंने दो और लोगों से समझौता करके साझा रूप से एक खदान में काम किया जहां हमें 12 कैरट 58 सेंट का हीरा मिला था. सरकार ने इसके बदले 45 लाख रुपए दिए थे जो तीनों लोगों में बराबर बांट लिए गए,” प्रकाश शर्मा.
कक्कू से बात करते हुए हमें पता चला कि हीरों के प्रति दीवानगी के चलते इन्होंने शादी नहीं की.
“मुझे ये लगता था कि अगर शादी हो गई तो एक जिम्मेदारी आ जायेगी, पैसे कमाने होंगे और उसके लिए बाहर जाकर नौकरी करनी पड़ेगी. लेकिन मुझे हीरा खोजना था, ये मेरे लिए एक जुनून है मुझे बड़ा प्रेम है हीरों से, इनकी चमक से,” प्रकाश उर्फ कक्कू शर्मा.
इसी इलाके में एक नदी बहती है जिसका नाम है रुंज. कहते हैं इस नदी के तट पर हीरों की भरमार है. दरअसल पन्ना के आसपास के पहाड़ी इलाकों से निकलने वाली यह नदी अपने साथ बरसात के दौरान न सिर्फ पहाड़ों की मिट्टी और पत्थर बल्कि साल दर साल सतह से ऊपर आने वाले हीरों को भी बहाकर ले आती है और अपने किनारों में छोड़ती जाती है.
इसी नदी के किनारे अपने दोस्तों के साथ हीरा खोजने में लगे राजकुमार से हमने बात की.
जब हीरा मिलता है तो दिल में थोड़ी धड़कन तेज़ हो जाती है. कोई ऐसी चीज़ जिसके बारे में सिर्फ सुना हो, जो हमारे लिए बहुत से ज्यादा महंगी हो वो अचानक मिल जाए तो दिल की धड़कने तो बढ़ ही जाती हैं,” राजकुमार.
राजकुमार के साथी नरेश ने बताया की तीन वर्ष पहले उनकी मम्मी की लगभग 20 हजार की कीमत का हीरा मिला था, उस दिन उनके घर में पूड़ी और खीर बनी थी.
“तीन साल पहले मम्मी को मिला था हीरा, लगभग 20 हजार का. उस दिन घर में सब लोग बहुत खुश थे, पूड़ी खीर बनी थी घर पे. उसके बाद से ही मैं हीरा खोजने में जुट गया हूं. मुझे भी उम्मीद है की जल्द ही मेरे भी दिन बदलेंगे,” नरेश.
जहां एक तरफ राजकुमार और नरेश हीरा खदानों में अपनी किस्मत तलाश रहे हैं वहीं दूसरी तरफ 45 वर्षीय श्यामलाल जाटव अपने दादा और पिता के बाद अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हीरों की खोज में लगे हुए हैं. अपनी पूरी जवानी इस खोज में निकाल चुके श्यामलाल कहते हैं कि अब तक उन्हें कोई ज़िन्दगी बदल देने वाला हीरा नहीं मिला है.
“पूरा जीवन निकाल दिया खदानों में. जब से होश संभालने लायक हुए थे अपने से फावड़ा चलाने लायक हुए तब से लगे हुए हैं. मेरे दादा जी को लगभग रोज़ ही हीरा मिलता था और उनके हजारों हीरे जमा हैं सरकार के हीरा विभाग के पास. दादा जी के बाद पिता जी ने हीरे खोजे, पिता जी के बाद अब मैं खोज रहा हूं साथ में अब मेरे बेटे भी इसमें काम करते हैं,” श्यामलाल
“छोटे छोटे हीरे तो कई बार मिले लेकिन कोई ऐसा नहीं मिला जिस से कि हमारी जिंदगी बदल जाए. बस उसी हीरे की खोज में हम लोग आज भी लगे हुए हैं,” श्यामलाल ने आगे बताया.
पन्ना में दो तरह से हीरों की खोज की जाती है, एक तो नदी के किनारे किनारे जहां पर बरसात के मौसम में पहाड़ों से नीचे बहने वाले पानी के साथ हीरों के टुकड़े भी आ जाते हैं और दूसरा उथली खदानों में.
उथली खदान यानि कि ज़मीन का एक टुकड़ा, कायदे से कहें तो 8*8 का एक टुकड़ा आपके नाम एक साल के लिए कर दिया जाता है और आप उसी हिस्से में खुदाई करके हीरे खोजते हैं.
हीरों के प्रति ये दीवानगी इस दर्जे की है कि यहाँ लोगों ने गहरे गहरे गड्ढे खोद दिए हैं. बिना किसी सुरक्षा उपकरण के 30 फीट से लेकर 50 फीट और उस से भी गहरे गड्ढों में बाप बेटे यूँ ही उतर जाते हैं. हमने भी उतारकर देखा कि धरती का सीना चीर कर हीरों की खोज का अनुभव कैसा होता है.
खदानों के नीचे हमें मिले राजेश जिन्होंने बताया कि किस तरह मिट्टी की खोज कर पत्थर काटे जाते हैं और फिर उस मिट्टी को साफ करके उसमें हीरे खोजे जाते हैं.
दशरथ मांझी का नाम तो सबने सुना होगा जिन्होंने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया था, वैसे ही एक शख्स हैं श्यामलाल जाटव जो पीढ़ियों से पहाड़ काटकर हीरा खोज रहे हैं, वो हीरा जो एक बार में इनके परिवार की किस्मत बदल दे.
उथली खदानों में काम करने वाले श्यामलाल जैसे पन्ना में सैकड़ों परिवार हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी इसी धंधे में उतर चुके हैं.
लेकिन कहते हैं ना कि हर कहानी एक जैसी नहीं होती, उतार चढ़ाव की अपनी जिंदगियों में व्यस्त पन्ना के हीरों के दीवानों के बीच कई ऐसे भी हैं जो अपनी समस्याओं का एक मुश्त समाधान खोजने हीरों के खदानों में अपनी जवानी और बुढ़ापा खपा रहे हैं.
छतरपुर की रहने वाली सिंदर बाई ने बताया कि उनके बेटे ने पुश्तैनी जमीन और घर कर्ज़ लेकर गिरवी रख दिया और अब साहूकारों ने उनका जीवन मुश्किल कर दिया है. इस बुढ़ापे और इतने कम समय में साहूकारों को पैसा चुकाने में असक्षम सिंदर बाई और उनके पति हीरा खोजने आ गए. इस उम्मीद से कि शायद कोई हीरा उन्हें कर्ज़ और इस दर्द भरी जिंदगी से छुटकारा दिला दे.
जिस बुढ़ापे में आरामतलब ज़िन्दगी मिलनी चाहिए उस उम्र में कोई अपने बच्चों के कर्मों का फल इसी तरह रोज़ सुबह उठकर खदानों में पसीना बहाकर भोग रहा है तो कोई अपने बच्चों के जीवन से गरीबी हटाने के लिए अपने ज़िन्दगी के अंतिम दिनों में एक और बार प्रयास कर रहा है इसी उम्मीद में शायद किसी दिन एक झटके में ही सबकुछ बदल देने वाला हीरा उनके हाथ लग जाए.
वैसे तो पन्ना में कई लोगों को राह चलते भी हीरे मिले हैं, लेकिन हीरा खोजने की एक तय प्रक्रिया है. मसलन आप ज़मीन के नीचे की पथरीली मिट्टी को इकट्ठा करते हैं, फिर उसको धोते हैं, उसको छानते हैं, उसमें से मिट्टी धुल जाने के बाद जो छोटे छोटे कंकड़ बचते हैं उनको एक जगह सुखाया जाता है उसके बाद फिर इन्हीं पत्थरों के बीच में से चुना जाता है हीरा, लेकिन जैसा कक्कू ने बताया अगर आपकी किस्मत में हैं तो ही. वरना फिर वही प्रक्रिया दोहराइए.
हीरों के इस दीवानेपन की कहानी में एक पहलू और भी है, वो पहलू है कालाबाजारी का. पन्ना में बड़ी मशक्कत के बाद हमने एक ब्लैक मार्केटर को बात करने के लिए मनाया और इस कालाबाजारी में लिप्त जो इस व्यक्ति ने दावे किये वो चौंकाने वाले हैं.
“जो लोग यहां पर हीरे खोजते हैं, उनसे हम लोग संपर्क में रहते हैं. हमारे बारे में ग्रामीणों को पहले से जानकारी है. जैसे ही उन्हें हीरे मिले, वो हमें बताते हैं. और हम हीरा व्यापारियों से उनकी मुलाकात करवाते हैं. अमूमन इस व्यवस्था में हीरा खोजने वालों को सरकारी समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता और उन्हें जल्दी पैसा मिल जाता है. व्यापारियों को भी खासी बचत होती है,” कालाबाजारी एजेंट.
जहाँ एक तरफ कालाबाज़ारी हावी है वहीँ दूसरी तरफ देश के इकलौते डायमंड एवलुएटर जो कि पन्ना में पदस्थ हैं उन्होंने बताया कि उनके पास लगभग 260 खदानों की सुपरवाइजरी करने के लिए सिर्फ 2 सिपाही है. यानि कि 130 खदानों में कब हीरा मिला किसको मिला उसने सरकारी व्यवस्था के तहत जमा कराया या नहीं इन सबकी देख रेख करने के लिए सिर्फ 1 ही व्यक्ति है.
पन्ना हीरा कार्यालय में पदस्थ अनुपम सिंह ने बताया कि बीते चार वर्षों में राजस्व यानी सरकारी कमाई 49 लाख से 20 हज़ार तक पहुँच गई है. इस गिरावट के और भी कारण हैं, जैसे कि पन्ना टाइगर रिजर्व का बन जाना लेकिन कालाबाजारी सरकार को हो रहे नुकसान का एक सबसे बड़ा कारण हैं.
लेकिन इन तमाम गुत्थियों और झंझटों से दूर श्यामलाल, कक्कू, राजकुमार, नरेश, भग्गू या फिर सिंदर अपनी अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं, हीरों की खोज में लगे हैं शायद कभी मिल जाए और उनके जीवन से दुख गरीबी लाचारी बेबसी खत्म हो जाए.