MP News: आज देवउठनी एकादशी यानी कि तुलसी विवाह पर्व है. विंध्य में इस त्योहार की बड़ी रौनक रहती है. बाजार गुलजार रहते हैं क्योंकि कहा जाता है कि 4 महीने बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं. इसी कारण आज के दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है क्योंकि चार महीने तक मांगलिक कार्यों पर रोक लगी होती है. आज से मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं. यह मांगलिक कार्यक्रम तुलसी विवाह के साथ ही शुरू होते हैं. तुलसी विवाह में गन्ने का मंडप सजाया जाता है. आज के दिन गन्ने और शकरकंद का महत्व रहता है. पूरे विंध्य में 2 दिन से ही इनकी दुकानें सज जाती हैं.
देवउठनी पर सज जाते हैं बाजार
देवउठनी एकादशी के दिन आंगन में चौक बनाकर उस पर गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है. इस मंडप के बीच में भगवान विष्णु को स्थापित कर उन्हें गन्ना, सिंघाड़ा और फल का भोग लगाया जाता है. दीपक जलाकर उनकी पूजा की जाती है इसीलिए एक दिन पहले से ही शहर से लेकर गांव कस्बे के बाजारों में गन्ने की खूब बिक्री होती है. गन्ना व्यापारी तो बताते हैं कि जिस गन्ने को 10 से 12 रुपये में बेचा जाता था. वह 18 से 20 रुपये तक बिक रहा है. इसके साथ ही अन्य फल-फूल भी बिकने लगते हैं. तुलसी विवाह के लिए लोगों ने पूजा सामग्री और भोग प्रसाद की खरीदारी भी करते हैं.
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गन्ने के भोग से खुश होती हैं देवी लक्ष्मी- लक्ष्मीकांत महाराज
लक्ष्मीकांत महाराज बताते हैं कि हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु एवं तुलसी माता की कृपा पाने के लिए उनके विवाह का आयोजन घर-घर में किया जाता है. इस दिन तुलसी के पौधे वाले गमले को शुभ मुहूर्त में गेरू से सजाया जाता है. उसके चारों ओर गन्ने का मंडप बनाया जाता है. श्रृंगार करके विवाह कराया जाता है. कहा जाता है कि विवाह करवाने से पूर्ण दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है. महाराज जी ने बताया कि शकरकंद का भोग लगाने का तात्पर्य है कि हम सात्विक और शाकाहारी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं. इसके साथ ही गन्ने के भोग लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.