World Tiger Day: बाघ के बारे में लोग जानते ही क्या हैं? इसको इस तरह कहे कि लोग बाघ के बारे में केवल इतना जानते हैं कि ये एक मांसाहारी जानवर है. वैसे जंगल का राजा शेर कहलाता है. शेर मतलब बब्बर शेर ना कि बाघ. लोग तो शेर का अलग ही मतलब ही निकालने लगते हैं. शेर और बाघ में बहुत अंतर होता है. शरीर के बनावट से लेकर उनके बिहेव तक ऐसा कहा जाता है कि शेर अपने कुनबे के साथ रहता है और बाघ अकेले.
बाघों के बारे में कहा जाता है कि बाघ कि अपनी टेरेटरी होती है. एक बाघ का अपना एक एरिया होता है जिसमें वो या तो अकेले रहता है या बाघिन के साथ रहता है. बाघिन के साथ वो तब तक रहता है जब तक उसके बच्चे पैदा नहीं हो जाते. बच्चे होने के बाद या तो बाघिन बच्चों के साथ कहीं चले जाती है या तो बाघ बच्चों और बाघिन को छोड़कर कहीं और चले जाता है. बाघ की ये विशेषता जूलॉजिस्ट बताते हैं. कुछ बाघ ऐसे होते हैं जो अपनी ही जमात के तौर-तरीकों को झुठला देते हैं. एमपी के बांधवगढ़ के चार्जर की कहानी कुछ इसी तरह है. इस बाघ ने उन सभी मिथकों को तोड़ दिया जो बाघों के साथ जोड़े जाते थे.
बांका को हराकर अपना वर्चस्व बनाया
साल 1990 में वर्चस्व की लड़ाई में बांका को हराकर युवा चार्जर ने एरिया पर कब्जा कर लिया. एक एरिया में दस साल से ज्यादा समय तक अपनी टेरेटरी को बनाए रखा. यहीं से सीता और चार्जर की प्रेम कहानी शुरू होती है जो अजर -अमर हो गई.
चार्जर और सीता ने मिलकर 23 बाघ को जन्म दिया
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में सीता और चार्जर की 11वीं पीढ़ी है. बांधवगढ़ नेशनल पार्क के टाइगर रिजर्व में बाघों की गूंज बरकरार रखने में सीता और चार्जर को श्रेय जाता है. दोनों ने मिलकर 23 बाघों को जन्म दिया.
अपने शावकों के लिए शिकार करता था चार्जर
अमूमन देखा जाता है कि शावकों के लिए शिकार उसकी मां बाघिन करती है. सीता और चार्जर दोनों अपने शावकों के लिए शिकार किया करते थे. दोनों ने मिलकर अपने शावकों का पालन-पोषण किया.
सीता और चार्जर दोनों विपरीत स्वभाव के थे
चार्जर गुस्सैल स्वभाव का था जो जीप को देखकर दहाड़ता था, पीछा करता था. ये स्वभाव उसके परिवार के बाहर के लोगों के लिए था. इसी कारण नाम इसका चार्जर रखा गया. दूसरी तरफ सीता टूरिस्टों को देखकर पोज बनाती थी ताकि उसकी फोटो ली जा सके. सीता को फोटोजेनिक बाघिन भी कहा जाता है. दुनिया में सबसे ज्यादा फोटो सीता बाघिन की है. नेशनल ज्योग्राफिक मैग्जीन ने दिसंबर 1997 के अंक में कवर पेज पर सीता की फोटो लगाई थी.
आखिरी समय में सीता ने चार्जर के लिए शिकार किया
साल 2000 में चार्जर 16 साल से ज्यादा उम्र का हो चुका था. चार्जर को दिखना बंद हो चुका था. भाग-दौड़ नहीं कर सकता था. दांत भी कमजोर हो गए थे. सीता, चार्जर के लिए शिकार किया करती थी. उसके लिए शिकार करके लाया करती थी. आखिरी समय में चार्जर को इनक्लोजर में रखा गया. जब भी वो सीता की आवाज सुना करता उसकी चहलकदमी बढ़ जाया करती थी.
चार्जर की मौत के बाद उसे मगधी रेंज में दफनाया गया. इस प्वॉइंट का नाम चार्जर प्वॉइंट रखा गया. चार्जर की मौत के बाद सीता भी ज्यादा दिनों तक जिंदा ना रह सकी. शिकरियों ने सीता का शिकार किया और मार दिया. इस तरह बांधवगढ़ की दो जोड़ी हमेशा के लिए अमर हो गई.