MP News: एमपी अजब है और यहां के गांव गजब है. ऐसा ही एक गजब गांव मंदसौर जिले में है, जहां अक्टूबर या नवंबर महीने में किसी की मौत होती है तो उसे श्मशान घाट ही नसीब नहीं होता है. अब सोचने वाली बात है कि ऐसे में आखिर परिजन चिता कहां जलाते होंगे और अंतिम संस्कार कैसे होता होगा. जानिए इस गजब गांव के बारे में-
MP का गजब गांव
यह गजब गांव मंदसौर जिले के गरोठ क्षेत्र का चचावदा पठारी है. यहां अक्टूबर या नवंबर माह में किसी की मौत हो जाती है तो उसे श्मशान नसीब नहीं होता है. इसके पीछे का कारण यह है कि यहां सिर्फ एक ही श्मशान घाट है. वह इन दो महीनों यानी अक्टूबर और नवंबर में स्वयं जल समाधि ले लेता है.
जल समाधि ले लेता है श्मशान घाट
दरअसल, मंदसौर का गांधीसागर बांध का बैक वॉटर इस श्मशान घाट को डूबो देता है. ऐसे में यदि गांव में किसी का देहांत हो जाता है तो परिजन उसे अपने खेत पर या फिर किसी और के खेत के पास अंतिम संस्कार करते हैं.
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जलमग्न हुआ चचावदा पठारी का श्मशान
अक्टूबर का महीना बीतने को है. इस समय गांव चचावदा पठारी का श्मशान पूरी तरह से जलमग्न है. यहां तक पहुंचने का रास्ता भी नहीं है. कुछ दिनों पहले ही गांव के 106 साल के हजारीलाल भगत का निधन हो गया था. उनको उनके परिजन के ही खेत पर मुखाग्नि दी गई थी क्योंकि श्मशान घाट तक जाने का रास्ता नहीं था.
सिर्फ दो महीने के लिए होता है ऐसा
जानकारी के मुताबिक इस गांव हमेशा नहीं ऐसा नहीं होता है. सिर्फ इन दो महीनों में ही हालात ऐसे होते हैं. किसी का देहांत हो जाने पर अंतिम संस्कार के लिए ग्रामीणों के पास श्मशान घाट नहीं होता है. वहीं, इस मामले में जिम्मेदारों का कहना है कि यह पानी ज्यादा समय तक नहीं रहता है. लेकिन बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब जानकारी थी तो ऐसे स्थान पर श्मशान घाट बनाने की जरूरत ही क्या थी.