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MP News: वाह रे लापरवाही! मौत के 2 साल बाद महिला IAS को कोर्ट में पेश होने का आदेश, सरकार के फैसले में देरी बनी वजह

फाइल फोटो (आईएएस माया गीता)

फाइल फोटो (आईएएस माया गीता)

MP News: मध्य प्रदेश में पहली बार मौत के बाद किसी अधिकारी को कोर्ट में पेश होना पड़ सकता है. दरअसल, दो साल पहले छत्तीसगढ़ कैडर की महिला आईएएस की मौत हो चुकी है. लेकिन उन्हें मौत के बाद भी एमपी में कोर्ट में पेश होना पड़ सकता है. महिला आईएएस के अलावा 4 और भी अधिकारी हैं. जिनके खिलाफ जांच की स्वीकृति मांगी गई है.

खास बात है कि तीन आईएएस अधिकारी रिटायर हो चुके हैं. सेवा में रहते हुए राज्य सरकार ने केस चलाने की अनुमति नहीं दी थी. जांच की परमिशन में देरी के बीच अफसर रिटायर हो गए. अब रिटायरमेंट के बाद उनके खिलाफ केस चलाने की राज्य सरकार की पिछले दिनों बनाई कमेटीअनुमति देगी. सामान्य प्रशासन विभाग ने मुख्यमंत्री की अध्यक्षता पर कमेटी बनाई है, जिसमें कई विभागों के मंत्रियों को भी सदस्य बनाया गया है.

कौन है महिला आईएएस

साल 1997 बैच की आईएएस अधिकारी माया गीता हैं, उनकी मौत साल 2022 में किडनी की बीमारी की वजह से हो गई थी. एम गीता मध्य प्रदेश में भी कई जिलों में कलेक्टर और अन्य पदों पर रही हैं. उज्जैन हवाई पट्टी को निजी कंपनी को देने के मामले में लोकायुक्त ने उन्हें भी आरोपी बनाया था.

गीता की मौत के बाद भी उनके खिलाफ कोर्ट में केस चलाने की अनुमति मांगी जा रही है. हैरत की बात है कि अफसर खुद सरकारी सिस्टम की गंभीरता को उजागर कर रहे हैं. इस केस में पूर्व आईएएस आजाद शत्रु, कवींद्र कियावत और अरुण कोचर के खिलाफ केस चलाने की अनुमति भी सरकार दे सकती है.

9 कलेक्टर सहित कई IAS के नाम पर FIR

इस मामले में लोकायुक्त ने तत्कालीन 9 कलेक्टर के खिलाफ मामला दर्ज किया था. हैरत की बात है कि सरकार ने अबतक किसी भी अफसर के खिलाफ केस चलाने की अनुमति नहीं दी है. अफसरों पर केस चलाने की अनुमति नहीं देने से प्रमोशन उनके होते रहे. अब अफसर भी कई अहम पदों पर पदस्थ है. तीन अफसर प्रतिनियुक्ति है और कई अफसर पीएस स्तर पर पदस्थ हैं.

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दरअसल, मामला 2006 में सामने आया था. तत्कालीन अधिकारियों ने यश एयर लिमिटेड और सेंटॉर एविएशन एकेडमी इंदौर को लीज पर दिया. राज्य सरकार और कंपनी के बीच 7 साल के लिए अनुबंध हुआ था. यश एयरवेज को नाइट पार्किंग के लिए 5 हजार 700 किलो वजनी विमानों के लिए 100 रुपए चुकाने थे. ज्यादा वजनी विमानों के लिए यह चार्ज 200 रुपए था.

कंपनी ने यह रकम सरकार को नहीं दी गई. शर्तों के मुताबिक, यश एयरवेज को सालाना 1.50 लाख रुपए जमा कराने थे. लेकिन, कंपनी ने 7 साल में कुल 1.50 लाख रुपए ही जमा किए. इस तरह सरकार को लाखों रुपए का चूना लगा. लोकायुक्त ने एफआईआर ने दर्ज किया है कि अफसरों की निगरानी के रहते हुए गड़बड़ी हुई थी.

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