MP News: प्रदेश के नियमित कर्मचारियों को पदोन्नति से इनकार करने पर अब पूर्व में दिए गए उच्च वेतनमान की राशि उनसे वापस नहीं ली जाएगी लेकिन आगे उच्च वेतनमान नहीं मिलेगा. सरकार के इस निर्णय से कर्मचारी संगठनों में कंफ्यूजन है. कर्मचारी नेताओं का तर्क है कि 22 साल पुराने आदेश में बंद हो चुकी क्रमोन्नति योजना में राहत देने का क्या औचित्य है. प्रदेश में पांच लाख से अधिक नियमित कर्मचारी हैं.
अगर वेतनमान 3,600 रुपए पाने वाले कर्मचारी का दस साल बाद ग्रेड पे 4,200 रुपए हो गया और 15 साल बाद कर्मचारी का प्रमोशन होता है लेकिन वह प्रमोशन लेने से इनकार कर देता है तो पांच साल तक मंजूर उच्च वेतनमान की बकाया राशि वापस नहीं ली जाएगी। लेकिन इसके बाद आगे कोई उच्च वेतनमान नहीं मिलेगा.
दो साल पहले यह हुआ था आदेश
23 सितंबर 2022 को आदेश जारी हुआ था कि ऐसे शासकीय सेवक, जिन्हें क्रमोन्नति का लाभ दिया गया है, को जब उच्च पद पर पदोन्नत किया जाता है और वह ऐसी पदोन्नति लेने से इंकार करता है तो उसे प्रदान किए गए क्रमोन्नति वेतनमानका लाभ भी समाप्त कर दिया जाएगा साथ ही पदोन्नति आदेश में इसका भी स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा कि यदि शासकीय सेवक इस पदोन्नति को छोड़ देता है, तो उसे पदोन्नति के एवज में पूर्व में दिए गए क्रमोन्नति वेतनमान का लाभ नहीं मिलेगा.
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इधर, कर्मचारियों में नाराजगी भी बढ़ी
क्रमोन्नति योजना में संशोधन करने पर कर्मचारियों की तीखी प्रतिक्रिया आ रही है. मध्य प्रदेश कर्मचारी मंच के अध्यक्ष अशोक पांडे ने कहा है कि वर्ष 2016 से पदोन्नति पर रोक है. ऐसे में कर्मचारियों से क्रमोन्नति का लाभ छीनना ठीक नहीं है. इसलिए सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए. मंच इस संबंध में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को ज्ञापन भी सौंपेगा.
सरकार के आदेश में राहत भी, सजा भी
पहली बात यह कि सरकार अब क्रमोन्नति की जगह समयमान वेतनमान दे रही है. जहां तक प्रमोशन से इनकार करने पर पूर्व में दी गईउच्च वेतनमान की राशि वसूल नहीं करने का निर्णय है, इसमें कंफ्यूजन है. अगर किसी एलडीसी को दस साल की नौकरी में उच्च वेतनमान प्राप्त होता है और 15 साल में पदोन्नति होने पर वह निजी कारणों से इसे स्वीकार नहीं करता है तो उसका उच्च वेतनमान हमेशा के लिए रोककर बड़ा आर्थिक नुकसान किया गया. मध्य प्रदेश मंत्रालय कर्मचारी अधिकारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि यह तो एक सजा है। समय सीमा तय होना चाहिए.