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अनोखा Siddhivinayak Temple जहां लाल-पीले रेशम बांधते हैं भक्त, पूरी होती है हर इच्छा!

सिद्धिविनायक मंदिर फोटो (सोशल मीडिया)

सिद्धिविनायक मंदिर फोटो (सोशल मीडिया)

मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी हमेशा जय श्री महाकाल के जयकारे से गूंजती रहती है. यहां रोजाना हजारों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं. इसके अलावा महाकाल मंदिर परिसर में स्थित सिद्धी विनायक मंदिर है. जो लोगों की आस्थाओं से काफी जुड़ा हुआ है. हर मंदिर की अपनी विशेष परम्परा होती है. माथे पर लगा हुआ चंदन हमेशा महाकाल बाबा के दर्शन के बारे में बताता है. वहीं सिद्धीविनायक का गणेश मंदिर की पहचान लाल-पीले रेशमी धागे से होती है.

क्यों बंधवाते हैं लाल-पीला रेशमी बंधन?

महाकाल मंदिर में स्थित गणेश जी का सिद्धीविनायक मंदिर लोगों की आस्थाओं के बेहद करीब है. महाकाल के दर्शन के बाद श्रद्धालु हमेशा सिद्धिविनायक मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं और पूरे रीति-रिवाजों के साथ मंदिर में पूजा कर अपने हाथों में इस रक्षा-सूत्र को बंधवाते हैं. इस बंधन को बाधने की परंमपरा सदियों से चली आ रही है. इस पर श्रद्धालु की आस्था इतनी है कि मंदिर में कपाट बंध होने के बावजूद भी इस रक्षा के धागे को ले जाना नहीं भूलते. इस रक्षासूत्र को बंधवाते समय भक्तजन अपनी मनोकामना को मन में दो बार दोहराते हैं और जब मनोकामना पूरी हो जाती है, दोबारा भगवान के सामने ही धागा खुलवाने आते हैं.

कब से चल रही है यह परंपरा

पुजारी के अनुसार इस मंदिर में राजा भृतहरि ने पाषण की गणेश प्रतिमा स्थापित की थी. उस समय के दौरान लोग यहां भगवान के दर्शन कर कच्चे सूत का धागा बंधवाते थे. फिर बाद में जैसे-जैसे समय बीतता रहा कच्चे सूत के धागे की जगह लाल-पीले रेशमी धागे ने ले ली और आज इस मंदिर को सब लोग लाल-पीले रेशमी रक्षा सूत्र से जानने लगे. सैकड़ों लोग यहां आकर इस धागे को जरूर हाथ में बंधवाते हैं.

इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जाता है कि मंदिर समिति हर दिन इस रक्षा सूत्र की अलग से व्यवस्था कर रखती है. पूरे एक दिन में करीब धागे की 25 किलो से ज्यादा खपत होती है. कभी का बार रक्षा-सूत्र कम पड़ जाता है और लोगों को इसके लिए काफी देर तक इंतजार भी करना पड़ता है. इस बंधन पर श्रद्धालुओं की इतना विश्वास है कि जो श्रद्धालु मंदिर नहीं आ पाते उनके रिश्तेदार या उनके दोस्तों से विशेष रूप से रक्षा सूत्र मंगवाते हैं.

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