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कैसे हुई थी सृष्टि के रचयिता ब्रह्म देव की उत्पत्ति? विस्तार से जानिए पौराणिक कथा

सृष्टि के रचयिता ब्रह्म देव

सृष्टि के रचयिता ब्रह्म देव

Mythology Story: हिंदू धर्म के शास्त्रों में त्रिदेवों का विशेष स्थान है—ब्रह्मा, विष्णु और महेश. इन तीनों देवताओं को सृष्टि, पालन और संहार का कार्य सौंपा गया है. जहां भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता हैं और भगवान शिव संहार के देवता माने जाते हैं, वहीं भगवान ब्रह्मा को सृष्टि के रचनाकार के रूप में पूजा जाता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ब्रह्म देव की उत्पत्ति कैसे हुई थी. उनकी उत्पत्ति की एक अद्भुत और रहस्यमय कथा है, जिसे पौराणिक कथाओं में वर्णित किया गया है. आइए, ब्रह्म देव के उत्पत्ति की इस रहस्यमय कहानी को विस्तार से जानते हैं.

सृष्टि के पूर्व का समय

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का आरंभ नहीं हुआ था, तब पूरे ब्रह्मांड में केवल जल ही जल था. न कोई पृथ्वी थी, न कोई आकाश, न सूर्य और न चंद्रमा. इस अथाह जल में भगवान नारायण शेष शैय्या पर लेटे हुए थे. वह अपनी योग निद्रा में रमे हुए थे. उनके नाभि से एक अद्भुत, प्रकाशमान कमल प्रकट हुआ, और उसी कमल से भगवान ब्रह्मा का जन्म हुआ.

जब ब्रह्मा ने चारों ओर देखा, तो उन्हें कोई भी लोक दिखाई नहीं दिया. उन्हें यह समझ में नहीं आया कि यह जलमग्न ब्रह्मांड किस दिशा में विस्तारित है. वे उस कमल के आधार का पता लगाने के लिए उसकी नाल के सहारे जल के भीतर गए, लेकिन उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आया. उन्होंने फिर से कमल की नाल को छोड़कर उस पर लौटने का प्रयास किया.

ब्रह्म देव की तपस्या

जैसे-जैसे ब्रह्मा कमल के ऊपर लौटे, उन्हें एक दिव्य वाणी सुनाई दी, जो कह रही थी कि उन्हें तपस्या करनी होगी. यह वाणी भगवान नारायण की ओर से आई थी. ब्रह्मा ने तुरंत ही तपस्या करने का संकल्प लिया और हजारों वर्षों तक अडिग निष्ठा के साथ ध्यान लगाया. उनके तपस्या से भगवान नारायण अत्यंत प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट हुए. भगवान नारायण ने ब्रह्मा को दर्शन दिए और उन्हें अपने दिव्य लोक का दर्शन कराया. इस दर्शन से ब्रह्मा को सृष्टि की रचना का आदेश प्राप्त हुआ.

भगवान नारायण का उपदेश

भगवान नारायण ने ब्रह्मा को भागवत तत्त्व का उपदेश दिया. यह उपदेश चार श्लोकों में था, जिसे “चतु:श्लोकी भागवत” कहा जाता है. इन श्लोकों में भगवान ने ब्रह्मा से कहा कि सृष्टि की रचना करते हुए उन्हें कभी भी मोह या आसक्ति नहीं होनी चाहिए. भगवान नारायण ने ब्रह्मा से कहा कि वे न केवल सृष्टि की रचना करेंगे, बल्कि इस रचनात्मक कार्य को निरंतर और अविचलित रूप से करते रहेंगे.

क्या काम करते हैं ब्रह्म देव?

पौराणिक कथाओं में भगवान ब्रह्मा को चार मुखों और चार हाथों वाले देवता के रूप में दर्शाया गया है. प्रत्येक मुख वेदों के विभिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. उनके चार हाथों में वे वरमुद्रा (आशीर्वाद देने की मुद्रा), अक्षर सूत्र (शाश्वत सूत्र), वेद (ज्ञान का प्रतीक) और कमंडल (पानी का पात्र) धारण करते हैं.

ब्रह्मा ने सबसे पहले चार पुत्रों—सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार की रचना की. इन चारों पुत्रों को उनके शरीर से उत्पन्न किया. यह चारों पुत्र न केवल ब्रह्मा के रचनात्मक कार्य में सहयोगी बने, बल्कि वे अपनी तपस्या और ज्ञान से ब्रह्मा के अनुयायी भी बने. इसके बाद, ब्रह्मा ने मनु और शतरूपा का निर्माण किया, जिनसे फिर मानवता की उत्पत्ति हुई.

मनुष्य की उत्पत्ति

ब्रह्मा ने मनु और शतरूपा से सृष्टि की नई धारा की शुरुआत की. मनु को आदिपुरुष माना जाता है, और उनके माध्यम से मानव जाति का आरंभ हुआ. शतरूपा, जो भगवान शिव की अर्धांगिनी पार्वती की समानांतर रूप में मानी जाती हैं, के साथ ब्रह्मा ने मानवता की पहली पीढ़ी को जन्म दिया.

इसी तरह से, ब्रह्मा के द्वारा सृष्टि की रचना की शुरुआत हुई. उनके कृत्य ने जीवन के हर रूप और हर जीव की उत्पत्ति को संभव बनाया. उनकी रचनाओं में न केवल मानव, बल्कि पशु, पक्षी, और अन्य जीव-जंतु भी शामिल थे. ब्रह्मा की रचनात्मक शक्तियों के कारण ही यह विशाल और अद्भुत ब्रह्मांड संभव हुआ.

क्यों की जाती है ब्रह्मा की पूजा?

भगवान ब्रह्मा की पूजा मुख्य रूप से उनके रचनात्मक कार्य के लिए की जाती है. उन्हें सृष्टि का निर्माता माना जाता है, इसलिए उनके द्वारा रचित संसार की संपूर्ण सुंदरता और विविधता को पूजा जाता है. हालांकि ब्रह्मा की पूजा अन्य देवताओं की तुलना में कम होती है, लेकिन उनका स्थान हिंदू धर्म में अत्यधिक सम्मानित है.

ब्राह्मा जी की पूजा विशेष रूप से विद्वान और दार्शनिक करते हैं, क्योंकि वे ज्ञान और बुद्धि के देवता भी माने जाते हैं. वेदों के प्रकट होने और सृष्टि की रचना में उनका योगदान अतुलनीय है. उनका रूप और उनकी सृष्टि की प्रक्रिया दर्शाती है कि भगवान ब्रह्मा न केवल सृष्टि के निर्माता हैं, बल्कि उन्होंने इस ब्रह्मांड को व्यवस्थित करने और उसे संतुलित रखने का कार्य भी किया है.

भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति की कथा न केवल हमारे धर्म के गहरे अर्थ को समझाती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि रचनात्मकता और तपस्या के माध्यम से जीवन के हर पहलू को सुंदर और सशक्त बनाया जा सकता है. उनकी तपस्या, भक्ति और ज्ञान की जो कहानी है, वह हमें जीवन में सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है.

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