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जब राजा ने गणित से मिटाया कलंक, रानी ने श्रापित चांद को भी बना दिया पवित्र…कहानी चौरचन की

Chaurchan 2025

चौरचन पर्व

Chaurchan 2025: क्या आपने कभी सोचा है कि जिस चांद को साल में एक दिन पूरे भारत में देखना अशुभ माना जाता है, उसकी पूजा एक जगह पर बहुत ही धूमधाम से होती है? जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के मिथिला क्षेत्र की, जहां चौरचन या चौठचंद्र नाम का एक अनोखा पर्व मनाया जाता है.

भादो महीने की चतुर्थी को, जब पूरे देश में लोग गणेश जी के श्राप के डर से चांद की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखते, मिथिला के घर-घर में इस चांद को अर्घ्य दिया जाता है, पकवान चढ़ाए जाते हैं. लेकिन ऐसा क्यों? आइए जानते हैं इस अनोखे पर्व के पीछे की दिलचस्प कहानी को विस्तार से जानते हैं.

जब चांद पर लगा था श्राप

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार गणेश जी कहीं जा रहे थे और फिसलकर गिर पड़े. उनके गोल-मटोल शरीर को देखकर चांद को हंसी आ गई. गणेश जी को यह बहुत बुरा लगा और उन्होंने गुस्से में आकर चांद को श्राप दिया कि जो कोई भी भाद्रपद की चतुर्थी को तुम्हें देखेगा, उस पर झूठा कलंक लगेगा. इस श्राप का असर इतना गहरा था कि खुद भगवान श्रीकृष्ण को भी स्यमंतक मणि चोरी का झूठा आरोप झेलना पड़ा था. इसी वजह से इस दिन को कलंकित चांद का दिन कहा जाता है.

मिथिला का ‘कलंकमुक्त’ चांद

लेकिन मिथिला के लोगों के लिए यह कहानी एक नया मोड़ लेती है. 16वीं सदी में मिथिला के राजा हेमांगद ठाकुर को मुगल बादशाह ने कर चोरी के झूठे इल्जाम में कैद कर लिया था. गणितज्ञ और खगोलशास्त्री हेमांगद ठाकुर ने जेल में रहते हुए भी हार नहीं मानी. उन्होंने बांस की खपच्चियों और पुआल की मदद से गणनाएं कीं और आने वाले 500 सालों के सूर्य और चंद्र ग्रहण की सटीक तारीखें बता दीं. उन्होंने अपनी इस खोज को ग्रहण माला नामक पुस्तक में दर्ज किया.

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जब बादशाह को उनकी इस अद्भुत गणना के बारे में पता चला, तो उसने हेमांगद की भविष्यवाणी की जांच करवाई. हेमांगद द्वारा बताए गए चंद्रग्रहण की तारीख बिल्कुल सही निकली. बादशाह उनकी विद्वत्ता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने न केवल राजा को रिहा किया, बल्कि मिथिला को कर-मुक्त भी कर दिया.

जब राजा हेमांगद अपनी प्रजा और रानी हेमलता के पास वापस लौटे, तो रानी ने खुशी से कहा, “हमारा चांद अब कलंकमुक्त हो गया है.” इसी दिन, भाद्रपद की चतुर्थी को उन्होंने सबसे पहले चांद की पूजा की और इस दिन को उत्सव के रूप में मनाना शुरू किया.

कैसे मनाया जाता है यह अनोखा पर्व?

चौरचन का पर्व आज भी उसी उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस दिन घरों में खीर, पूरी, मीठे पकवान और तरह-तरह की मिठाइयां बनाई जाती हैं. घर के आंगन या छत पर गाय के गोबर और चिकनी मिट्टी से सुंदर अरिपन बनाई जाती है. इसी पर सारे पकवान सजाकर चांद को भोग लगाया जाता है. मिथिला में यह पर्व सिर्फ एक परिवार का नहीं होता. रानी हेमलता की परंपरा के अनुसार, लोग एक-दूसरे को पकवान बांटकर खुशियां मनाते हैं, ताकि कोई भी इस उत्सव से वंचित न रहे.

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