Why is Ganesh Chaturthi Celebrated: भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू होता है. इस दिन को भगवान गणेश के जन्म दिवस के रूप में सबसे शुभ माना जाता है. घर-घर में गणपति बप्पा की स्थापना होती है और वातावरण ”गणपति बप्पा मोरया” के जयकारों से गूंज उठता है. यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच गहरा रिश्ता जोड़ने वाला अवसर माना जाता है.
पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व
धार्मिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर की दिव्य मिट्टी से गणेश जी की रचना की थी और स्नान के समय उन्हें अपने द्वारपाल के रूप में खड़ा किया. लेकिन उसी समय भगवान शिव वहां पधारे, जिन्हें गणेश जी ने अंदर जाने से रोक दिया. इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया. जब यह जानकारी माता पार्वती को मिली तो वे नाराज़ हो गईं और उन्होंने प्रलय की चेतावनी दे दी.
माता पार्वती की नाराज़गी को देखकर भगवान शिव ने गणेश जी को पुनः जीवित करने का निर्णय लिया. उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि उत्तर दिशा की ओर जो भी प्राणी अपनी मां की पीठ की ओर सो रहा हो, उसका सिर लेकर आएं. गणों को उस दिशा में मां की पीठ की ओर सोता हुआ एक हाथी मिला, जिसका सिर काटकर वे भगवान शिव के पास ले आए. भगवान शिव ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हाथी का सिर लगाकर गणेश को नया जीवन दिया. तब से वे गजानन कहलाए. उनके पुनर्जीवित होने पर सभी देवताओं ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद दिया. ऐसा भी कहा जाता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास के कहने पर गणेश जी ने महाभारत का लेखन आरंभ किया था. इसीलिए यह तिथि न केवल धार्मिक, बल्कि बौद्धिक दृष्टि से भी बेहद खास है.
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क्यों दस दिन चलता है यह पर्व
गणेश चतुर्थी सिर्फ एक दिन की पूजा नहीं है, बल्कि दस दिनों तक चलने वाला भव्य उत्सव है. मान्यता है कि इन दिनों गणपति बप्पा भक्तों के घरों में रहकर सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. पेशवा काल से इस पर्व को लंबे समय तक मनाने की परंपरा शुरू हुई थी. बाद में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे घरों से बाहर निकालकर सार्वजनिक उत्सव बनाया और समाज को एकजुट करने का जरिया बनाया. तभी से यह पर्व दस दिन तक सार्वजनिक रूप से धूमधाम से मनाया जाता है.
विसर्जन की परंपरा और मान्यता
गणपति बप्पा को घर का अतिथि माना जाता है, इसलिए दसवें दिन अनंत चतुर्दशी पर उनका विसर्जन किया जाता है. यह परंपरा प्रकृति के चक्र का प्रतीक भी है, क्योंकि मिट्टी से बनी प्रतिमा जल में मिलकर फिर से मिट्टी का रूप ले लेती है. हालांकि, कुछ परिवार अपनी सुविधा और परंपरा के अनुसार 1, 3, 5 या 7 दिनों तक ही गणपति की स्थापना करते हैं और फिर श्रद्धापूर्वक विसर्जन करते हैं.
