Mythological Stories: कई पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु और उनके भक्तों के बीच के संघर्षों की चर्चा की जाती है. इन संघर्षों के पीछे की कहानियां न केवल हमें जीवन के गूढ़ सत्य समझाती हैं, बल्कि हमें कर्म और फल के सिद्धांत को भी समझने का अवसर देती हैं. ऐसी ही एक दिलचस्प और रहस्यमयी कहानी है जय और विजय नामक दो भाइयों की, जो पहले भगवान विष्णु के द्वारपाल थे, लेकिन एक श्राप के कारण राक्षस के रूप में धरती पर जन्मे. आइये जानते हैं कि कैसे ये द्वारपाल राक्षसों के रूप में जन्मे और कैसे उनके तीन जन्मों ने उनका उद्धार किया.
वैकुंठ के द्वारपाल जय और विजय
बहुत समय पहले, भगवान विष्णु के परम निष्ठावान भक्त और उनके महल के द्वारपाल थे दो भाई – जय और विजय. ये दोनों भाई भगवान विष्णु के राजमहल के द्वार पर तैनात रहते थे और किसी भी व्यक्ति को बिना अनुमति के अंदर प्रवेश नहीं करने देते थे. उनकी यह भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि भगवान विष्णु का महल बहुत पवित्र था, और इस पवित्रता को बनाए रखना जरूरी था.
एक दिन ब्रह्मा जी के मानस पुत्र – सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार – भगवान विष्णु के दर्शन के लिए वैकुंठ पहुंचे. वे चारों महान योगी और ब्राह्मण थे, जिन्हें भगवान विष्णु के दर्शन का परम सौभाग्य प्राप्त करना था. लेकिन, जैसे ही वे भगवान के महल के पास पहुंचे, जय और विजय ने उन्हें रोक लिया और कहा कि इस समय आपलोग प्रवेश नहीं कर सकते.
यह सुनकर सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार बहुत क्रोधित हो गए. उन्होंने जय और विजय को श्राप दे दिया कि वे जन्म और मृत्यु के चक्र में बंध जाएंगे, यानी उन्हें धरती पर जन्म लेना पड़ेगा. यह श्राप सुनकर जय और विजय अत्यधिक दुखी हुए, और वे भगवान विष्णु के पास गए.
भगवान विष्णु ने निकाला समाधान
जय और विजय भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपने साथ हुई घटना के बारे में बताई. भगवान विष्णु ने उन्हें शांतिपूर्वक सुना और कहा, “मैं इस श्राप को तो समाप्त नहीं कर सकता, लेकिन तुम्हारे लिए दो रास्ते हैं, जिनसे तुम जल्दी से मुक्त हो सकते हो. पहला यह कि तुम सात बार मेरे भक्त के रूप में जन्म लो, और दूसरा यह कि तुम तीन बार मेरे शत्रु के रूप में जन्म लो. शत्रु के रूप में जन्म लेने पर तुम्हें मुझसे मृत्यु का सामना भी करना पड़ेगा.”
जय और विजय ने शीघ्र मुक्ति पाने के लिए शत्रु के रूप में तीन बार जन्म लेने का विकल्प चुना. भगवान विष्णु ने उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें तीन बार शत्रु के रूप में जन्म लेने की अनुमति दी.
पहला जन्म: हिरणाक्ष और हिरण्यकश्यप
जय और विजय का पहला जन्म हुआ हिरणाक्ष और हिरण्यकश्यप के रूप में. ये दोनों अत्यधिक बलशाली राक्षस थे. हिरणाक्ष ने अपनी ताकत का प्रयोग करके धरती को समुद्र में डुबो दिया. यह देखकर भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया और धरती को समुद्र से बाहर निकाला. इस संघर्ष में हिरणाक्ष का वध हुआ.
हिरण्यकश्यप, अपने भाई की मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के खिलाफ हो गया. उसने अपने बेटे प्रह्लाद को भी प्रताड़ित किया, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. आखिरकार, भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया. इस तरह जय और विजय का पहला जन्म समाप्त हुआ, और उन्हें श्राप से मुक्ति का एक कदम और पास मिल गया.
दूसरा जन्म: रावण और कुम्भकर्ण
दूसरे जन्म में जय और विजय रावण और कुम्भकर्ण के रूप में उत्पन्न हुए. ये दोनों भाई भी अत्यधिक शक्तिशाली थे और उनकी काली करतूतों ने पूरे ब्रह्मांड में आतंक मचा दिया. रावण ने भगवान श्रीराम से युद्ध किया और उन्हें हराने की पूरी कोशिश की, लेकिन अंततः भगवान राम ने अपनी शक्ति से रावण का वध किया. कुम्भकर्ण, जो हमेशा सोते रहते थे, ने भी राक्षसों के पक्ष में युद्ध किया, लेकिन भगवान राम के हाथों उसकी भी मृत्यु हुई. यह जन्म भी समाप्त हुआ और जय और विजय ने दूसरे शत्रु के रूप में भगवान के हाथों मृत्यु पाई.
तीसरा जन्म: शिशुपाल और दंतवक्र
तीसरे जन्म में जय और विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में धरती पर आए. ये दोनों कृष्ण के शत्रु थे और उनका उद्देश्य भगवान कृष्ण के खिलाफ युद्ध करना था. शिशुपाल, भगवान कृष्म के भाई भी थे. हालांकि, उसने भगवान कृष्ण से बार-बार शत्रुता की. वहीं, दंतवक्र ने भी भगवान कृष्ण के खिलाफ कई प्रयास किए. आखिरकार, भगवान कृष्ण ने दोनों का वध किया, और जय और विजय को तीसरी बार भगवान के हाथों मृत्यु का सामना करना पड़ा.
श्राप से मुक्ति और वैकुंठ की वापसी
तीन बार शत्रु के रूप में जन्म लेने के बाद जय और विजय को श्राप से पूरी तरह मुक्ति मिल गई. अब वे फिर से वैकुंठ लौट गए, जहां उन्होंने भगवान विष्णु के द्वारपाल के रूप में अपनी सेवा शुरू की. इस प्रकार, जय और विजय की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि श्राप और प्रतिफल के बीच का संबंध हमेशा कर्मों पर निर्भर करता है.
