Sahasralinga Karnataka Mystery: भारत एक ऐसा देश है, जहां देवी-देवताओं के साथ-साथ अनेक तपस्वी ऋषि-मुनियों का वास रहा है. न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं. देवों के देव महादेव की प्रतिमाएं भी देश के कोने-कोने में देखने को मिलती हैं. लेकिन कर्नाटक में एक ऐसा विशेष स्थान है जहां के बारे में मान्यता है कि महादेव के दस-बीस नहीं, बल्कि हजारों शिवलिंग विद्यमान हैं, जो हमारी प्राचीन आध्यात्मिकता के गौरवशाली इतिहास को दर्शाते हैं.
सहस्त्र लिंग निर्माण की सही जानकारी
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में स्थित शाल्मली (शलमाला) नदी हरे-भरे पेड़ों और घने जंगलों के बीच से होकर बहती है. जैसे ही नदी का जलस्तर कम होता है, इसमें एक हजार से अधिक शिवलिंग दिखाई देने लगते हैं, जिन्हें ‘सहस्त्रलिंग’ कहा जाता है. ‘सहस्त्रलिंग’ शब्द का अर्थ है हजार शिवलिंग. मान्यताओं के अनुसार, यहां पत्थरों पर उकेरे गए ये शिवलिंग प्राचीन काल में स्थानीय राजाओं द्वारा आध्यात्मिक भेंट और सुरक्षा की दृष्टि से बनवाए गए थे.
पुरातत्व विश्लेषण के अनुसार, यह बताया जाता है कि कुछ शिवलिंग 17वीं-18वीं शताब्दी के बीच सिरसी के सदाशिवरायवर्मा राजवंश द्वारा निर्माण कराया गया था.
शलमाला नदी का तल ही मंदिर
बता दें कि शलमाला नदी में कोई भी मदिर का शिखर या पंडा-पुजारी नहीं है. यहां पर नदी का तल ही मंदिर है, जहां श्रद्धालु नंगे पैर चलकर इन शिवलिंगों की पूजा-प्रार्थना और दर्शन करने के लिए आते हैं. इस नदी में कुछ शिवलिंग ऐसे हैं, जो इंच जितने छोटे हैं, जबकि कुछ का आकार मानव शरीर जितना बड़ा है. शिवरात्रि के समय नदी का पानी कम हो जाता है, तो हजारों शिवलिंग दिखाई देने लगते हैं.
सहस्त्रलिंग से जुड़े प्रमाण
शलमाला नदी के तल और किनारों पर बनी हजारों शिवलिंग का ऐसा कोई भी ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, जो बता सके कि इन सभी लिंगों को किसने और कब तराशा. हालांकि स्थानीय सिद्धांतों के मुताबिक यह बताया जाता है कि किसी राजा ने अपने राज्य की समृद्धि और खुशहाली के लिए 1 हजार शिवलिंग बनाने की प्रतिज्ञा ली थी. हालांकि, इसका भी कोई शिलालेख और ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं.
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जैव विविधता से भरा शलमाला नदी
दक्षिण के कर्नाटक में स्थित शलमाला नदी सिर्फ एक हजार शिवलिंग के लिए नहीं जाना जाती है, बल्कि यहां कई तरह के पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं का घर भी हैं. पश्चिमी घाट से घिरा ये इलाका जैव विविधता का धनी है. पानी में चलना, काई से ढकी चट्टानों को छूते हुए आगे बढ़ना और प्राकृतिक रूप से शिवलिंग देखने का अलग ही आनंद मिलता है.
