Maha Shivratri 2024: देवों के देव भगवान शिव हैं जो भक्ति भाव से की गई थोड़ी सी पूजा से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूरी कर देते हैं. शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर समस्त दीर्घ जगत के अधिष्ठाता हैं. इसलिए व्यक्ति चाहे निःस्वार्थ हो या निष्काम, सभी को महादेव की पूजा करनी चाहिए. भगवान शिव से जुड़ी कई कथाएं हैं, लेकिन आज विस्तार से बताएंगे कि आखिर भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चंद्रमा को क्यों धारण किया था?
जब विष के प्रभाव से तपने लगे शिव
शिवपुरान की कथा के अनुसार, जब समुद्र का मंथन हुआ तो उसमें से विष भी निकला, संपूर्ण सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने विष को स्वयं पी लिया. लेकिन विष पीने के बाद उनका शरीर जहर के प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा, यह देखकर सभी देवता व्याकुल हो गए. तब चंद्रमा ने शिव से प्रार्थना की कि महादेव उसे सिर पर धारण करें और अपने शरीर को शीतलता प्रदान करे. ऐसे में जहर का असर कुछ हद तक कम हो जाएगा.
अन्य देवताओं के अनुरोध के बाद, शिव इस पर सहमत हुए और उन्होंने चंद्रमा को अपने सिर पर रख लिया. ऐसी मान्यता है कि तभी से चंद्रमा भगवान शिव के सिर पर विराजमान होकर संपूर्ण सृष्टि को अपनी शीतलता प्रदान कर रहे हैं.
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चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न हुए शिव
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने चंद्रमा को पुनर्जीवित करने के लिए अपने माथे पर धारण किया था. कथा के अनुसार, चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ हुआ था, जिसमें रोहिणी उनके सबसे करीब थी. यह देखकर अन्य ने अपने पिता दक्ष को दुख बताया. राजा दक्ष के समझाने पर भी जब चंद्रमा नहीं माने तो उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दे दिया. जिसके बाद चंद्रमा धीरे-धीरे कमजोर हो गए.
तब देवता इंद्र और अन्य ऋषि वशिष्ठ भगवान ब्रह्मा की शरण में गए. ब्रह्मा ने उनसे कहा, “तुम्हें देवताओं के साथ प्रभास नामक पवित्र क्षेत्र में जाना चाहिए और मन्त्युंजय मंत्रों का अनुष्ठान करके भगवान शिष की पूजा करनी चाहिए. अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए. इसके बाद चंद्रमा ने भगवान शंकर की तपस्या की. चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिया और प्रदोष काल में चंद्रमा को चंद्रदेव होने का आशीर्वाद दिया. इसके बाद फिर धीरे-धीरे चंद्रमा स्वस्थ होने लगे और पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्रमा के रूप में प्रकट हुआ.