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Margashirsha Amavasya 2025: कब है मार्गशीर्ष अमावस्‍या, कल या परसों? जानें पितृ-तर्पण, स्नान-दान और श्रीकृष्ण उपासना का विशेष महत्‍व

_Margashirsha Amavasya 2025 date and Pitru Tarpan Vidhi details

सांकेतिक तस्‍वीर

Margashirsha Amavasya 2025 Upay: हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष माह को भगवान श्रीकृष्‍ण का प्रिय माह माना जाता है. इसको लोग अगहन माह भी कहते हैं. मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या, जिसे अगहन अमावस्या भी कहा जाता है, हिन्दू परंपरा में अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है. मान्यता है कि इस दिन की गई उपासना विशेष पुण्य प्रदान करती है और पितरों की कृपा भी प्राप्त होती है. इस पावन तिथि पर स्नान-दान, श्राद्ध और तर्पण करने से विशेष लाभ मिलता है.

मार्गशीर्ष अमावस्‍या कब है?

शास्त्रों में बताया गया है कि मार्गशीर्ष अमावस्या पर श्रीकृष्ण की पूजा अत्यंत मंगलकारी होती है. विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद गीता और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है. नारद पुराण में भी इस अमावस्या को पितृ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है. द्रिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष मार्गशीर्ष अमावस्या 20 नवंबर 2025, गुरुवार को मनाई जाएगी. तिथि 19 नवंबर की सुबह 9:43 बजे से आरंभ होकर 20 नवंबर दोपहर 12:16 बजे तक रहेगी. उदयातिथि के आधार पर पर्व 20 नवंबर को ही माना जाएगा.

ब्रह्ममुहूर्त में स्नान-दान का महत्‍व

ब्रह्ममुहूर्त में स्नान-दान का अत्यधिक महत्व बताया गया है, जो इस दिन सुबह 5:01 से 5:54 बजे तक रहेगा. इस वर्ष अमावस्या पर सर्वार्थसिद्धि योग, शोभन योग और विशाखा नक्षत्र का दुर्लभ संयोग बन रहा है, जो इसे और अधिक शुभ बनाता है.

ऐसे करें मार्गशीर्ष अमावस्‍या पर पूजा

पूजन की परंपरा के अनुसार सुबह स्नान के बाद घर को गंगाजल या हल्दी मिले पानी से शुद्ध किया जाता है. पूर्व या उत्तर दिशा में पूजा-स्थान बनाकर लक्ष्मी-नारायण की तस्वीर स्थापित की जाती है और घी या तिल के तेल का दीपक जलाकर संकल्प लिया जाता है. पूजा में फूल, अक्षत, हल्दी-कुमकुम और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं तथा ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ और ‘ऊं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः’ मंत्रों का जप किया जाता है.

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परंपरा के अनुसार काले तिल और जल से पितृ-तर्पण भी किया जाता है. शाम को पीपल या तुलसी के पास तिल या आटे का दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है. अंत में प्रसाद का वितरण और जरूरतमंदों को दान देकर पूजा पूर्ण की जाती है. यह व्रत शांति, समृद्धि और पितरों की कृपा से जीवन में शुभ फल प्रदान करने वाला माना गया है.

(डिस्क्लेमर: यह खबर धार्मिक मान्यताओं, ज्योतिष शास्त्र और पंचांग आधारित जानकारी पर लिखी गई है. इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी देना है. विस्तार न्यूज किसी भी ज्योतिषीय दावे की पुष्टि नहीं करता है.)

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