Mayureshwar Ganesh Mandir: गणेशोत्सव की भव्य शुरुआत हो चुकी है. इस दौरान गणेश जी की पूजा का सबसे अधिक महत्व होता है, इसलिए इस पावन अवसर पर हम आपको बताएंगे गणपति बप्पा के अष्टविनायक स्वरूपों की कहानियां. गणेश जी के अष्टविनायक यानी आठ स्वरूप स्वयंभू माने जाते हैं. इन सभी स्वरूपों के मंदिर महाराष्ट्र में अलग-अलग जगहों पर स्थित हैं. जैसे गणेश जी के पिताश्री भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों का महत्त्व है उसी तरह गणेश जी के भी ये अष्टविनायक रूप सबसे अधिक पूजे जाते हैं. इसमें से गणपति का प्रथम स्वरुप है मयूरेश्वर गणपति जिसकी स्थापना की कहानी त्रेतायुग से जुड़ी है.
यहां है भगवान गणेश का त्रेतायुग का अवतार
मयूरेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के मोरगांव में करहा नदी के किनारे स्थित है. मोरगांव का ये मंदिर अष्टविनायक के आठ प्रमुख मंदिरों में से एक है, जहां भगवान गणेश मयूरेश्वर स्वरूप में विराजमान हैं. बताया जाता है ‘मोरेश्वर’ भगवान गणेश के अष्टविनायक मंदिरों में से एक है. लोक मत के अनुसार कहा जाता है कि यहां पहले गणपति जी के मूर्ति छोटी थी, लेकिन अगर अब देखा जाए तो ये मूर्ति बड़ी दिखाई देती है. शास्त्रों के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने श्रीगणेश के हर युग के अवतार की भविष्यवाणी की थी, मयूरेश्वर भगवान गणेश जी का त्रेतायुग का अवतार है.
इस अवतार में भगवान का वाहन मोर था, इसलिए इस मूर्ति को मयूरेश्वर के नाम से जाना जाता है. इस जगह का नाम मोरगांव इसलिए पड़ा क्योंकि एक समय पर ये क्षेत्र मोर के जैसा आकार लिए हुए था. इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि एक समय पर इस क्षेत्र में बडी संख्या में मोर पाए जाते थे. इसी कारण से ये जगह मोरगांव के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
मंदिर के चार द्वार, चार युगों के प्रतीक
इस मंदिर के चारों कोनों में मीनारें और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं. मंदिर के चार द्वार हैं जिन्हें चारों युग यानी सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का प्रतीक माना जाता है. पूर्वी द्वार पर राम और सीता की छवि जो कि धर्म, कर्तव्य की प्रतीक मानी जाती है, दक्षिणी द्वार पर शिव-पार्वती की मूर्ति जो कि धन और प्रसिद्धि की प्रतीक मानी जाती है, पश्चिमी द्वार पर कामदेव-रति जो कि इच्छा, प्यार और खुशी के प्रतीक माने जाते हैं और उत्तरी द्वार पर वराह और देवी माही जो कि मोक्ष और शनि ब्रह्म के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं.
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अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए लिया अवतार
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सभी देवताओं को दैत्यराज सिंधु के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान गणेश ने मयूरेश्वर का अवतार लिया था. वहीं एक पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे. नंदी को ये स्थान इतना भाया कि उन्होंने यहां से जाने से मना कर दिया और यहीं ठहर गए, तबसे उनकी प्रतिमा यही स्थापित है.
शिव के नंदी और गणपति के मूषक, दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में यहां उपस्थित हैं। मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं. कहा जाता है कि प्रारंभ में ये मूर्ति आकार में छोटी थी, परंतु दशकों से इस पर सिन्दूर लगाने के कारण यह अब इतनी बड़ी दिखती है. ऐसी भी मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मूर्ति को दो बार पवित्र किया है, जिसने यह अविनाशी हो गई है। ये क्षेत्र भूस्वानंद के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है- “सुख समृद्ध भूमि”. यहां गणेश चतुर्थी को गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और ऐसा माना जाता है की मयूरेश्वर प्रभु अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं.
