Mahaganapati Temple: गणेशोत्सव की धूम हर तरफ है और सब जगह अलग-अलग रूपों में गणेश जी की पूजा की जा रही है. इस पावन अवसर पर पुणे से 51 किमी दूर स्थित गणेश मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. यहां भगवान गणेश को समर्पित ‘अष्टविनायकों’ में यह आठवां मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण 9वीं-10वीं शताब्दी के दौरान हुआ था. मंदिर के वर्तमान गर्भगृह का निर्माण सन् 1790 में माधवराव पेशवा और मंदिर के मुख्य हॉल का निर्माण इंदौर के सरदार किबे ने कराया था.
त्रिपुरासुर राक्षस से जुड़ी है मंदिर की स्थापना
इस मंदिर से जुडी एक पौराणिक कथा है. ऋषि गृत्समद एक प्रसिद्ध ऋषि थे. एक दिन ऋषि को छींक आई और इससे एक छोटा बालक पैदा हुआ. जिसे ऋषि ने अपने बेटे की तरह पाला ऋषि ने बालक को गणना त्वम, गणेश मंत्र सिखाया. इस मंत्र से सुसज्जित बालक ने भगवान गणेश का गहन ध्यान किया और अंततः उसे आशीर्वाद दिया. उसे सोने, चांदी और लोहे के तीन पुर दिए गए. चूंकि वह इन तीन पुरों का स्वामी था इसलिए उसका नाम त्रिपुर रखा गया. गणेश ने त्रिपुर को सबसे शक्तिशाली होने का वरदान भी दिया, जिसे भगवान शिव के अलावा कोई भी नष्ट नहीं कर सकता था और भगवान शिव द्वारा नष्ट किए जाने के बाद उसे मुक्ति-मोक्ष प्राप्त होगा.
त्रिपुरसुर ने तीनों लोकों में कब्जा किया
इस वरदान ने त्रिपुर को घमंड में चूर कर दिया और उसने पूरी दुनिया में तबाही मचा दी. उसने पाताल लोक पर विजय प्राप्त की और फिर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया. उसने स्वर्ग के राजा इंद्र को हराया. उसके आक्रामक स्वभाव के कारण भगवान ब्रह्मा कमल में और भगवान विष्णु शिरसागर में छिप गए. उसने जल्द ही भगवान शिव के कैलाश पर्वत पर भी कब्ज़ा कर लिया और इस तरह तीनों लोकों का राजा बन गया. देवताओं को आश्चर्य हुआ कि त्रिपुरासुर को कैसे हराया जाए. भगवान नारद ने उन्हें बताया कि चूंकि उसे स्वयं भगवान गणेश ने वरदान दिया था, इसलिए उसे हराना बहुत मुश्किल होगा. उन्होंने उन्हें भगवान गणेश का ध्यान करने की सलाह दी. प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने देवताओं की मदद करने का फैसला किया.
त्रिपुरसुर और भगवान शिव के बीच हुआ भयंकर युद्ध
ब्राह्मण का वेश धारण करके वह त्रिपुरासुर के पास गए और उससे कहा कि वह एक बहुत ही प्रबुद्ध ब्राह्मण है और उसके लिए तीन उड़ने वाले विमान बना सकता है. इन पर सवार होकर वह मिनटों में जहां चाहे वहां जा सकता है. इन विमानों को केवल शिव ही नष्ट कर सकते थे. बदले में भगवान गणेश ने उनसे कैलाश पर्वत पर स्थित चिंतामणि की मूर्ति लाने के लिए कहा. भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के दूत को मूर्ति देने से इनकार कर दिया. क्रोधित त्रिपुरासुर स्वयं मूर्ति लेने गया. उसके और भगवान शिव के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया. उसने भगवान शिव से संबंधित हर चीज़ को नष्ट कर दिया और भगवान शिव भी गिरिकंदर में चले गए.
कैस हुआ त्रिपुरासुर का अंत?
भगवान शिव को भी एहसास हुआ कि वे त्रिपुरासुर का नाश करने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्होंने भगवान गणेश का सम्मान नहीं किया था. उन्होंने गणेश को बुलाने के लिए षडाक्षर मंत्र का जाप किया. ऐसा करने पर उनके मुख से गजानन प्रकट हुए और उन्होंने शिव को वरदान दिया. शिव ने गणेश का आह्वान जारी रखा जिन्होंने अंततः उन्हें बताया कि त्रिपुरासुर का वध कैसे किया जा सकता है. भगवान शिव से सहस्त्रनाम का जाप करने और फिर त्रिपुरासुर के तीन पुरों पर बाण चलाने के लिए कहा गया. भगवान शिव ने इन निर्देशों का पालन किया और अंततः त्रिपुरासुर को पराजित किया. जिस स्थान पर भगवान शिव ने भगवान गणेश का आह्वान किया था, वहीं उन्होंने उनके लिए एक मंदिर भी बनवाया था. इस मंदिर के आसपास के शहर को मणिपुर कहा जाता है. रंजनगांव गांव को वह स्थान माना जाता है जहां भगवान शिव ने स्वयं गणेश का आशीर्वाद लिया था और अंततः त्रिपुरासुर का नाश किया था.
यह भी पढ़ें- Girijatmaj Ganpati: इसी जगह हुआ था भगवान गणेश का जन्म, भगवान शिव ने काटा था बालक गणेश का सर
अनोखी संरचना के लिए प्रसिद्ध है मंदिर
मंदिर पूर्व दिशा की ओर है और इसके मुख्य द्वार पर दोनों ओर विशाल द्वारपाल बनाए गए हैं. मंदिर की संरचना कुछ ऐसी है कि सूर्य के दक्षिणायन और उत्तरायण होने पर सूर्य की किरणें सीधे ही भगवान गणेश की स्वयंभू प्रतिमा पर पड़ती है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश, ‘महागणपति’ के रूप में विराजमान है. उनकी इस अद्भुत प्रतिमा का ललाट काफी चौड़ा है और सूंड़ दक्षिण दिशा की ओर मुड़ी हुई है. उनके दोनों ओर ऋद्धि और सिद्धि विराजमान हैं.
साधना करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं
भक्तों की मान्यता है की यहां सच्चे मन से गणपति और शिव जी की साधना करने पर सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और कोई आपको परेशान कर रहा है तो उसका भी नाश हो जाता है.
