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Varad Vinayak Ganpati: भगवान गणेश का ऐसा मंदिर, जहां तालाब से प्रकट हुए थे बप्‍पा, दर्शन मात्र से पूरी होती हैं सारी मनोकामनाएं

Varad Vinayak Ganpati

श्री वरद विनायक मंदिर (फाइल फोटो)

Varad Vinayak Ganpati: गणेशोत्सव के दौरान गणेश जी की पूजा का सबसे अधिक महत्व होता है. ऐसे पावन अवसर में हम आपको गणपति बप्पा के अष्टविनायक स्वरूपों की कहानियां बता रहें हैं. आज हम आपको गणेश जी के चौथे स्वरुप वरद विनायक मंदिर की कहानी बताएंगे.

महाराष्‍ट्र के रायगढ़ जिले के खापोली शहर के महाड़ गाँव में स्थित श्री वरद विनायक मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायक स्वरूपों में चौथे स्वरुप माना जाता हैं. इस मंदिर में भगवान गणेश स्वयंभू रूप में विराजमान हैं. मान्‍यता के अनुसार, वरद विनायक भगवान अपने दरबार में आए सभी भक्तों की समस्त कामनाओं को अति शीघ्र पूर्ण करते हैं. ऐसा माना जाता है कि उनके दर्शन और पूजन से सभी संकटों का नाश होता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

तालाब से प्रकट हुए थे भगवान वरद विनायक

एक कथा के अनुसार, 1690 ईसवी में ढूंढू पंडकर नाम के व्यक्ति को तालाब में एक गणपति जी की मूर्ति मिली थी, जो अति दिव्य और स्वयं प्रकट थी. वहीं 1725 में स्वप्ना देशा अनुसार कल्याण के सूबेदार श्री राम जी बिबल कर ने गणेश जी की उस मूर्ति को एक मंदिर बनवाकर उसमें स्थापित कर दिया. यही गणेश जी श्री वरद विनायक गणपति के रूप में सभी भक्तों पर अपनी कृपा बरसा रहे हैं.

मंदिर में स्थापित होते ही गणेश जी यहां भक्तों की कामनाओं को अति शीघ्रता से पूर्ण करने लगे. उसके बाद सबको ज्ञात हो गया कि यह गणपति स्वयं प्रकट सिद्ध गणपति श्री वरद विनायक हैं, जो भक्तों के संकटों को क्षण में दूर करते हैं और उन्हें मनवांछित वरदान देते हैं. तभी से यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी और समय-समय पर मंदिर का पुनरुत्थान होता रहा है.

बप्‍पा के साथ रिद्धि-सिद्धि के भी होते हैं दर्शन

मंदिर के गर्भ ग्रह में स्थित श्री वरद विनायक जी की मूर्ति पूर्वाभ्यास मंदिर में गणपति भगवान के साथ ही रिद्धि और सिद्धि के दर्शन भी होते हैं. हम इस मंदिर के गर्भ ग्रह में प्रवेश कर स्वयं वरद भगवान को माला पहना सकते हैं और अपने हाथों से पूजा कर सकते हैं. करुणा स्वरूप वरद भगवान भक्तों की पूजा को सुगमता से स्वीकार करते हैं. मंदिर परिसर में मूषक नवग्रह देव और शिवलिंग भी विराजित है, जिनकी पूजा भी भक्तजन बड़े ही श्रद्धा भाव से करते हैं.

मंदिर परिसर बहुत ही विशाल है तथा मंदिर का शिल्प कार्य भी बहुत ही सुंदर है. यहां भारी संख्या में भक्तजन एक साथ संकीर्तन भजन और कथा का आनंद ले सकते हैं. मंदिर के चारों ओर चार गज मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जो मंदिर की शोभा और अधिक बढ़ा देती हैं. वहीं उत्तर दिशा की ओर एक गोमुख है जिसमें से शीतल शुद्ध जलधारा निरंतर प्रवाहित होती रहती है.

यहां होते हैं अष्‍टविनायक के दर्शन

मंदिर परिसर के पास ही वह तालाब है जहां से गणपति भगवान श्री वरद विनायक जी प्रकट हुए थे. इस तालाब को गणेश तीर्थ कहा जाता है. यहां सभी अष्टविनायक की मूर्तियां लगी हुई हैं. यहां से प्रकट श्री वरद विनायक की मूर्ति को पास में ही दत्त मंदिर में विराजित किया गया है. जिसके बाद वरद विनायक मंदिर में नई मूर्ति की स्थापना की गई है.

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वरद विनायक मंदिर में भाद्रपद शुक्ल प्रथम से पंचमी तथा माघ मास के शुक्ल प्रथम से पंचमी तक उत्सव के भव्य आयोजन होते हैं. यहां तिथियां मुख्य हैं,इनमें गणेशोत्सव की धूम होती है. भक्तजन इन दिनों यहां दूर-दूर से आकर गणपति श्री वरद विनायक की पूजा कर अपने कष्टों को हरने की कामना करते हैं.

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