Krishna Sudama: सुदामा श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र थे. उन्हें भगवान विष्णु का सच्चा भक्त भी माना जाता है. सुदामा और कृष्ण की कहानी प्रेम और मित्रता के बारे में है. सुदामा का जन्म एक निम्न आय वाले परिवार में हुआ था. दूसरी ओर कृष्णा शाही पृष्ठभूमि से थे. हालांकि, उनकी स्थिति के बीच का अंतर उनकी सच्ची दोस्ती या बंधन में बाधा नहीं बना.आज तक उनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती है. एक साथ पढ़ाई खत्म करने के बाद कई सालों तक संपर्क टूटने के बाद भी उन्होंने दोबारा मिलने की उम्मीद नहीं छोड़ी. सुदामा के दिल और आत्मा में हमेशा भगवान कृष्ण थे और वे तब तक उनके बारे में सोचते रहे जब तक वे दोबारा नहीं मिले.
जब सुदामा कई वर्षों के बाद कृष्ण से मिले तो वह पूरी घटना अविस्मरणीय और मार्मिक है. आज भी जब हम उस वक्त को याद करते हैं तो उन दोनों की दोस्ती, एक-दूसरे के लिए जो प्यार था, उसके बारे में सोचकर हमारी आंखों में आंसू आ जाते हैं. भगवान कृष्ण और सुदामा बचपन के मित्र और गुरुकुल में सहपाठी थे और उन्होंने गुरु सांदीपनि के मार्गदर्शन में अध्ययन किया था. उनकी शिक्षा पूरी होने के बाद वे अलग हो गए. लेकिन न तो कृष्ण और न ही सुदामा अपनी मित्रता को भूल पाए.
कृष्ण और सुदामा दोनों बड़े हुए. सुदामा और उनकी पत्नी गरीबी से जूझ रहे थे. लेकिन वह धार्मिक मार्ग के प्रति समर्पित थे. सुदामा लोगों को धार्मिक मार्ग के बारे में बताते थे. इस बीच भगवान कृष्ण द्वारका के राजा बन गए.जब सुदामा और उनका परिवार गरीबी से बहुत पीड़ित था और उनके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए पैसे नहीं थे, तो उनकी पत्नी वसुंधरा ने सुदामा को उनके बचपन के दोस्त कृष्ण की याद दिलाई. पत्नी के कहने पर सुदामा द्वारकापुरी की ओर चल पड़े. किंवदंतियों के अनुसार, रास्ते में कृष्ण भेष बदलकर उनकी मदद भी कर रहे थे.
सुदामा अंततः भगवान कृष्ण को संतुष्ट करने के लिए यात्रा करने के लिए सहमत हो गए. वह कपड़े के टुकड़े में कुछ पीटे हुए चावल बांधकर वहां से चले गए. बाद में जब सुदामा द्वारका पहुंचे तो वहां कृष्ण के राज दरबार की शान देखकर उन्होंने चावल छुपा लिए. लेकिन कृष्ण तो भगवान ठहरे. उन्होंने सुदामा से पोटली ले ली. जैसे ही कृष्ण ने एक मुट्ठी चावल खाई, तो इसके बदले उन्होंने सुदामा को एक लोक की संपत्ति दे दी. इसके बाद कृष्ण ने दूसरी मुट्ठी चावल खाकर सुदामा को दो लोक की संपत्ति दे दी. लेकिन कृष्ण तीसरी मुट्ठी चावल खाने जा ही रहे थे कि रुक्मणि उन्हें रोकते हुए बोली प्रभु! यदि आप तीनों लोक की संपत्ति इन्हें दे देंगे तो अन्य सब जीव और देवता कहां जाएंगे? रुक्मणि की बात सुन कृष्ण रुक गए. इस तरह कृष्ण ने सुदामा की मदद की और प्रेमपूर्वक उन्हें विदा किया.