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Chhath Puja 2025: छठ महापर्व के तीसरे दिन क्‍यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्‍य, जानिए इसके पीछे की धार्मिक मान्‍यता

Chhath Puja

डूबते सूर्य को अर्घ्‍य

Chhath Puja 2025: दिवाली के बाद चार दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व पूरी तरह से सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित माना जाता है. छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है. इस साल छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर से हो गई है और आज महापर्व का तीसरा दिन है.

आज छठ पर्व का व्रत करने वाली महिलाएं डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगी और अपने घर की सुख-समृद्धि तथा संतान की लंबी आयु के लिए मंगलकामना करेंगी. ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर छठ पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा कैसे बनी और इसे क्यों निभाई जाती है.

क्या है डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे की मान्यता

छठ महापर्व पर सूर्य की उपासना करने के पीछे प्राचीन और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण शामिल हैं. सूर्य को प्रकाश, ऊर्जा और जीवन के देवता के रूप में पूजा जाता है. उन्हें हिंदू धर्म में एक प्रमुख सौर देवता और नवग्रहों में राजा माना गया है. इसलिए छठ महापर्व पर केवल उगते सूर्य ही नहीं, बल्कि डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है.

हिंदू मान्यता के अनुसार छठ माई, सूर्य देव की बहन हैं और छठ महापर्व पर सूर्य देव के साथ छठी मैया की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है. यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति नहाय-खाय के दिन से ही पूरे मन से सूर्य देव की आराधना करता है, उसके जीवन से रोग, दुख और समस्याएं दूर हो जाती हैं और सुख-समृद्धि के नए रास्ते खुल जाते हैं.

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सूर्य देव की पत्नी को समर्पित है डूबते सूर्य वाला अर्घ्य

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ रहते हैं. इसलिए छठ पूजा में सूर्य की अंतिम किरणों को शाम के समय अर्घ्य देना बेहद शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि इससे सूर्य देव की पत्नी प्रत्युषा देवी भी प्रसन्न होती हैं. शाम वाले अर्घ्य से व्रती को दोगुना पुण्य प्राप्त होता है.

छठ में डूबते सूर्य और उगते सूर्य दोनों की आराधना का विशेष महत्व है. माना जाता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन और वातावरण में संतुलन बना रहता है. यह परंपरा प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और जीवन के उतार-चढ़ाव को स्वीकार करने की भावना को भी दर्शाती है.

सायंकाल वाले अर्घ्य देने के पीछे यह भी कहा जाता है कि इसे सूर्य देव की पत्नी प्रत्युषा को समर्पित किया जाता है, जो सूर्य की अंतिम किरणें होती हैं. इसलिए डूबते सूर्य को अर्घ्य देना आस्था, संतुलन और आभार का प्रतीक माना गया है.

(डिस्क्लेमर: यह खबर धार्मिक मान्यताओं, ज्योतिष शास्त्र और पंचांग आधारित जानकारी पर लिखी गई है. इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी देना है. विस्तार न्यूज किसी भी ज्योतिषीय दावे की पुष्टि नहीं करता है.)

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