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क्या सैटेलाइट को चकमा देकर पराली जला रहे हैं किसान? NASA ने किया बड़ा दावा, सरकार भी हैरान

प्रतीकात्मक तस्वीर

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Delhi Air Crisis: पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं अब एक नए विवाद का कारण बन गई हैं. NASA के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान सैटेलाइट को चकमा देने के लिए जानबूझकर पराली जलाने के समय को बदल रहे हैं. दरअसल, आरोप ये है कि 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण से जुड़ी रणनीति से अब किसान पराली जला रहे हैं , जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अमेरिकी सैटेलाइट्स से बचने के लिए खास तरीके अपनाए थे.

NASA के वैज्ञानिकों का दावा

NASA के वरिष्ठ वैज्ञानिक हीरेन जेठवा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में यह दावा किया कि उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान के किसान GEO-KOMPSAT-2A सैटेलाइट के निगरानी समय को ध्यान में रखते हुए पराली जलाने के समय को बदल रहे हैं. उनका कहना है कि सैटेलाइट्स दोपहर 1:30 से 2:00 बजे के बीच इन इलाकों के ऊपर से गुजरते हैं, और किसानों ने पराली जलाने का समय इस समय के बाद चुना है ताकि उनकी गतिविधियां सैटेलाइट में रिकॉर्ड न हो सके.

पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में कम हुई हैं. 15 सितंबर से 17 नवंबर 2024 तक पंजाब में केवल 8,404 पराली जलाने की घटनाएं रिपोर्ट की गईं, जो कि पिछले साल इस दौरान 33,082 थी. वहीं, हरियाणा में यह संख्या 2,031 से घटकर 1,082 हो गई है. इसके बावजूद, प्रदूषण के स्तर में कोई खास कमी नहीं आई है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि आखिर प्रदूषण के स्रोत क्या हैं.

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क्या यह बदलाव प्रदूषण में कमी लाने में प्रभावी है?

विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई हो, लेकिन प्रदूषण का स्तर जस का तस बना हुआ है. iFOREST के सीईओ चंद्र भूषण ने कहा, “अगर पराली जलाने की घटनाएं 80-90% तक घट गई हैं, तो फिर प्रदूषण का स्तर क्यों नहीं घटा?” उनका कहना है कि इस समस्या का सही माप लेने के लिए जलाए गए क्षेत्र का विश्लेषण किया जाना चाहिए.

अन्य राज्यों में बढ़ी पराली जलाने की घटनाएं

जहां पंजाब और हरियाणा में घटनाएं कम हुई हैं, वहीं उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं. इसका मतलब है कि यह समस्या केवल इन दो राज्यों तक सीमित नहीं है, और यह पूरे उत्तरी भारत में एक बड़ी चुनौती बन चुकी है.

स्थानीय अधिकारियों का बयान

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन आदर्शपाल विग ने इस पूरे मामले को खारिज करते हुए कहा कि “सैटेलाइट से बचने की बात पूरी तरह से गलत है.” उनका कहना है कि पंजाब सरकार और ISRO के रिमोट सेंसिंग सेंटर की मदद से पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी की जाती है, और इसमें रात में भी जलाए गए पराली की घटनाएं रिकॉर्ड होती हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भी यह कहा कि पराली जलाने की घटनाओं में वास्तविक कमी आई है और यह किसानों द्वारा अपनाई गई नई तकनीकों का परिणाम हो सकता है.

किसान नेताओं का आरोप

किसान नेताओं ने आरोप लगाया है कि प्रशासन किसानों को पराली जलाने के लिए मजबूर कर रहा है. उनका कहना है कि प्रशासन के अधिकारी उन्हें शाम 4 बजे के बाद पराली जलाने की सलाह देते हैं. किसान नेता इस मुद्दे को लेकर सरकार और प्रशासन से ठोस समाधान की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार किसानों को 5,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देती है, तो कोई भी किसान पराली नहीं जलाएगा.

वहीं, प्रशासन ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि वे लगातार किसानों को जागरूक कर रहे हैं और उन्हें समझा रहे हैं कि पराली जलाना हानिकारक है. प्रशासन का कहना है कि अब तक 174 केस दर्ज किए जा चुके हैं और दोषी पाए गए किसानों पर जुर्माना भी लगाया जा रहा है.

समस्या का स्थायी समाधान जरूरी

इस पूरे मामले में, विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान निकालने के लिए सरकार और किसानों के बीच बेहतर समन्वय जरूरी है. इसके साथ ही, पराली प्रबंधन के लिए और सटीक निगरानी तंत्र और डेटा संग्रह की आवश्यकता है ताकि पर्यावरण पर इसके प्रभाव को कम किया जा सके.

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