Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी बता दिया कि उसका फैसला किन जगहों पर लागू नहीं होगा. सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि उसका निर्देश उन जगहों पर लागू नहीं होगा, जहां सार्वजनिक भूमि पर कोई अनधिकृत निर्माण है. साथ ही वहां भी जहां न्यायालय द्वारा ध्वस्तीकरण का आदेश है. वहीं शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि सिर्फ किसी व्यक्ति के आरोपी होने की वजह से उसकी संपत्ति पर बुलडोज़र चलाना सही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “मनमानी तरीके से बुलडोजर चलाने वाली सरकारें कानून को हाथ में लेने की दोषी हैं. घर बनाना संवैधानिक अधिकार है. राइट टू शेल्टर मौलिक अधिकार है.”
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की बुलडोजर कार्रवाई की एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है. पिछले कुछ सालों में सीएम योगी ने खासकर उन अपराधियों और अराजक तत्वों के खिलाफ बुलडोजर चलाया है, जिनके खिलाफ अवैध निर्माण, अतिक्रमण और अपराधों के आरोप हैं. इस पर राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय सामने आई है. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर यूपी में कब-कब चला है ‘योगी बाबा’ का बुलडोजर? तो आइये सबकुछ पूरा विस्तार से बताते हैं:
यूपी में कब-कब हुआ बुलडोजर एक्शन?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में बुलडोजर अभियान की शुरुआत अप्रैल 2021 में हुई थी, और इसके बाद यह कई बार अलग-अलग जिलों में देखा गया:
3 अप्रैल, 2021: इस दिन उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में एक बड़े अभियान के तहत 124 अवैध निर्माणों को ध्वस्त किया गया.
17 जुलाई, 2021: इस कार्रवाई में 87 अवैध निर्माणों को तोड़ने के साथ-साथ 15 एकड़ से अधिक सरकारी भूमि पर हुए कब्जे को मुक्त कराया गया.
5 सितंबर, 2021: एक बड़े ऑपरेशन में बुलडोजरों ने 176 अवैध संरचनाओं को ध्वस्त किया.
22 नवंबर, 2021: इस कार्रवाई के दौरान एक सप्ताह तक 312 अवैध निर्माणों को ध्वस्त किया गया. यह कार्रवाई हाल के महीनों की सबसे व्यापक और कड़ी कार्रवाई मानी गई.
12 जनवरी, 2022: बुलडोजर अभियान को तेज करते हुए यूपी सरकार ने 59 अवैध बस्तियों को निशाना बनाया और लगभग 25 एकड़ भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराया.
बुलडोजर एक्शन और राजनीति
उत्तर प्रदेश में बुलडोजर अभियान के बारे में राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रियाएं मिश्रित रही हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे अपराधियों और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ एक कड़ी कार्रवाई के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि विपक्षी दल इसे एकतरफा और असंवैधानिक करार देते हैं. उनका कहना है कि इस प्रकार की कार्रवाई से न्यायपालिका और संविधान की प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं.
कई विपक्षी नेता यह भी मानते हैं कि बुलडोजर का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में हो सकता है, खासकर उन लोगों के खिलाफ जो योगी सरकार के विरोधी हैं. इस संदर्भ में विपक्षी दलों का आरोप है कि यह कार्रवाई न केवल अपराधियों के खिलाफ है, बल्कि निर्दोषों को भी इसका शिकार बनाया जा रहा है.
यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सिर्फ आरोपी होने पर नहीं गिरा सकते किसी का घर, ‘बुलडोज़र एक्शन’ पर लग गई रोक
बुलडोजर के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम
योगी सरकार ने भ्रष्टाचार और अन्य सरकारी अनियमितताओं के खिलाफ भी कई कड़े कदम उठाए हैं. मई 2019 में विशेष जांच दल (SIT) की स्थापना की गई, ताकि राज्य में भ्रष्टाचार के मामलों की त्वरित जांच की जा सके. इसके बाद से कई बड़े भ्रष्टाचार के मामले सामने आए, और सरकार ने समय-समय पर निलंबन और कार्रवाई की.
साथ ही, राज्य सरकार ने 2020 में ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की, जो सरकारी अनुबंधों और खरीददारी की पारदर्शिता को सुनिश्चित करता है. इसके बाद कई भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की गई, जिसमें ₹100 करोड़ की वसूली भी की गई.
सुप्रीम कोर्ट का ताजा रुख
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को उसके अपराध के आरोप के आधार पर उसके घर को ध्वस्त करना न्यायसंगत नहीं हो सकता. अदालत का यह बयान उत्तर प्रदेश में चल रही बुलडोजर कार्रवाई को लेकर सवाल उठाता है.