कौन होगा दिल्ली का सीएम? शाम 5 बजे केजरीवाल के आवास पर बैठक, नामों को लेकर सिर्फ अटकलें
Delhi Chief Minister: दिल्ली में सीएम अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफे की घोषणा करके न सिर्फ़ अपने विरोधियों पर स्कोर कर लिया है, बल्कि पार्टी के भीतर पनप रहे विरोध को दबा दिया है. अब सवाल है कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? अरविंद केजरीवाल इसे लेकर आज शाम 5 बजे अपने आवास पर एक अहम बैठक करने जा रहे हैं. बैठक में केजरीवाल के अलावा मनीष सिसोदिया, आतिशी, सौरभ भारद्वाज सरीखे पार्टी के तमाम बड़े नेता मौजूद रहेंगे. हालांकि, इस इस बैठक से पहले ही मनीष सिसोदिया और केजरीवाल के बीच एक बैठक दोपहर को हो चुकी है. माना जा रहा है कि केजरीवाल ने अपना मन बना लिया है. बाकि, अपने पार्टी के वरिष्ठजनों के साथ राय-मशवरा कर रहे हैं.
संभावित चेहरों को लेकर अटकलें
दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन होगा इसे लेकर आम आदमी पार्टी के भीतर सिर्फ़ अटकलें चल रही हैं. सोमवार को मीडिया से बातचीत करने पहुंचे सौरभ भारद्वाज से जब पूछा गया कि सीएम कौन बनेगा तो उन्होंने कहा कि जितना आप मीडियाकर्मियों को जानकारी है, उतना ही मुझे भी है. मैं भी एक स्टेकहोल्डर हूं. वहीं, पार्टी के भीतर एक वर्ग आतिशी को रेस में सबसे आगे दिखाने की कोशिश कर रहा है. दूसरा वर्ग यह भी पिच कर रहा है कि केजरीवाल हाल ही में झारखंड के सत्तारूढ़ दल जेएमएम में मची भगदड़ का दोहराव अपनी पार्टी में नहीं चाहते हैं, लिहाज़ा पत्नी सुनीता केजरीवाल को ज़िम्मेदारी सौंप सकते हैं. हालांकि, पार्टी के भीतर दस मुंह, दस बातों की कहावत चरितार्थ हो रही है. हर वर्ग अपने सूत्रों के हवाले से सौरभ भारद्वाज, कैलाश गहलोत, गोपाल राय और संजय सिंह की बात आगे बढ़ा रहा है.
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केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक और विरोधी चित
केजरीवाल के मास्टर स्ट्रोक से न सिर्फ़ बीजेपी बल्कि इंडिया गठबंधन की सहयोगी पार्टी कांग्रेस भी हैरानी में है. केजरीवाल को लेकर बीजेपी ने अभी 10 दिन पहले ही राष्ट्रपति से हटाने की सिफ़ारिश की थी. संवैधानिक संकट का हवाला दिया गया था. दरअसल, बीजेपी को यह उम्मीद नहीं थी कि केजरीवाल इस तरह का फ़ैसला ले लेंगे. क्योंकि, केजरीवाल को अक्सर अपने क़रीबियों के बीच सशंकित नज़रिए से देखा गया है. लिहाज़ा, यह मानकर चला जा रहा था कि केजरीवाल कुर्सी नहीं छोड़ेंगे. लेकिन, उन्होंने यह दांव चलकर न सिर्फ़ अपने लिए सिंपैथी हासिल करने की पहल की है. बल्कि, फ़रवरी में होने वाले चुनाव से पहले पार्टी के भीतर जान फूंकने की एक मास्ट्रस्ट्रोक भी है.