2020 के मुकाबले Arvind Kejriwal के लिए कितना अलग होगा दिल्ली में होने वाला विधानसभा चुनाव?
Delhi Assembly Elections 2025: आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया है कि आगामी दिल्ली चुनाव में उनकी पार्टी किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. केजरीवाल ने कहा है कि AAP सभी 70 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी. 2024 के लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था लेकिन फिर भी भाजपा सात की सातों लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही. इसके बाद ही AAP ने कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ दिया था.
2015 के बाद 2020 में भी दर्ज की बड़ी जीत
पिछले चुनाव के आंकड़ों की बात करें तो आदमी पार्टी को 53.57% वोट मिले थे और पिछले चुनावों के मुकाबले पार्टी को 0.73% वोट कम मिले थे. जबकि 5 सीटों का नुकसान भी पार्टी को हुआ था. वहीं भाजपा को 38.51% वोट मिले और 6.21% वोटों के इजाफे के साथ ही पार्टी को 5 सीटों का फायदा भी हुआ था.
5 सालों के बाद एक बार फिर अब आम आदमी पार्टी दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी है. पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली के विभिन्न इलाकों में पदयात्रा कर रहे हैं और अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिना रहे हैं. दूसरी तरफ, अरविंद केजरीवाल केंद्र की मोदी सरकार को लगातार आड़े हाथों लेते नजर आए हैं.
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केजरीवाल के सामने बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस भी चुनौती
लेकिन, इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल के सामने कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे उन्हें पार पाना होगा. जेल से बाहर आने के बाद केजरीवाल ने भले ही आतिशी को सीएम पद की जिम्मेदारी दे दी है, लेकिन इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल का बहुत कुछ दांव पर होगा. उनके ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर बीजेपी आए दिन उन पर निशाना साधती रही है. वहीं अब 5 महीने पहले केजरीवाल का समर्थन करने वाली कांग्रेस भी आज शराब घोटाला और अन्य खामियों को लेकर केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठी है.
केजरीवाल समेत कई मंत्री जा चुके हैं जेल
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दो साल तक जेल में रहने के बाद सत्येंद्र जैन की रिहाई हुई है. मनीष सिसोदिया भी दिल्ली शराब घोटाला मामले में लंबे वक्त तक जेल में रहे हैं और खुद अरविंद केजरीवाल इसी मामले में जेल जा चुके हैं. आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी इसी मामले में करीब 6 महीने जेल में रह चुके हैं.
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इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल पर सीएम आवास को रेनोवेट कराने के बजाय पूरी की पूरी नई बिल्डिंग बनाने का आरोप लगा. इसी ‘शीश महल’ और यमुना की साफ-सफाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों का हवाला देते हुए दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए. अब वो खुलकर आप पर निशाना साधते नजर आ रहे हैं. ऐसे में चौतरफा घिरते नजर आ रहे केजरीवाल के लिए अकेले दम पर बीजेपी-कांग्रेस से निपटना आसान नहीं होगा.
पहली बार कांग्रेस के साथ मिलकर बनाई थी सरकार
वहीं 2013 की बात करें, पहली बार AAP ने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई थी, जो 49 दिन ही चल पाई थी. आम आदमी पार्टी ने तब पहली बार चुनाव में कदम रखा था और पूरा कैंपेन डोर-टू-डोर हुआ था. इस चुनाव में AAP ने 28 सीटों पर जीत दर्ज कर तमाम राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था. किसी ने सोचा नहीं था कि साल भर पुरानी पार्टी इस कदर जनता के दिलों पर अपनी छाप छोड़ेगी.
इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 32 पर जीत हासिल की थी. इस तरह पार्टी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरकर आई थी, लेकिन बहुमत से दूर रहने के कारण सरकार बनाने से वंचित रह गई थी. इसके बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. लेकिन, ये सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई.
आम आदमी पार्टी ने इसके बाद 2015 के दिल्ली चुनावों में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 70 में से 67 सीटों पर कब्जा जमा लिया. उस वक्त भाजपा को केवल तीन सीटों पर जीत मिल सकी थी. लेकिन, कांग्रेस के लिए यह चुनाव बुरे सपने से कम नहीं था, जिसका दिल्ली में खाता तक नहीं खुला था. तकरीबन यही सिलसिला 2020 के चुनावों में भी चला और आप आदमी पार्टी ने एक बार फिर बड़ी जीत हासिल की. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की और भाजपा को 8 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन, कांग्रेस की स्थिति जस की तस रही. इस बार भी पार्टी का उम्मीदवार विधानसभा नहीं जा सका. अबकी के चुनाव में अब कांग्रेस चाहेगी कि दिल्ली में सत्ता के सूखे को खत्म किया जाए, लेकिन ये कर पाना उसके लिए भी आसान नहीं होगा.