सृष्टि के रचयिता मनु और शतरूपा का क्या हुआ? मनुस्मृति से जुड़ा है इनका नाम
Manusmriti: हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में स्वयंभु ‘मनु’ एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं. उन्हें संसार के प्रथम पुरुष के रूप में माना जाता है. सनातन धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि के विस्तार के लिए अपने शरीर को दो भागों में बांट दिया था. जिनके नाम ‘का’ और ‘या’ (काया) हुए. उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष और दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई. इसी पुरुष का नाम स्वयंभुव ‘मनु’ और स्त्री का नाम ‘शतरूपा’ था. इन्हीं के संतानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई. इसी कारण से मनु की सन्तान को मनुष्य कहा जाता है.
शतरूपा का जन्म कन्या के रूप में हुआ था. मनु ने संसार की रचना करने के लिए शतरूपा को अपनी पत्नी बना लिया. उनके पहले पुत्र का नाम वीर था. वीर ने प्रजापति कर्दम की कन्या काम्या से विवाह किया और उन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया. जिनका नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद था. मनु की विस्तृत संतान में ही ध्रुव, वेन, और अन्य भी हुए.
इसी तरह मानव संसार की रचना के बाद मनु और शतरूपा दोनों ने अपना राज्य अपने पुत्रों को सौंप दिया और नैमिषारण्य जाकर भगवान वासुदेव का ध्यान करने लगे. इन दोनों ने भगवान विष्णु को पुत्र रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की और उनकी उसी तपस्या के वरदान के रूप में उन्होंने भगवान विष्णु से मांगा कि हमारी इच्छा है कि आप हमारे पुत्र बनें.
मनु और शतरूपा के पुत्र थे भगवान श्री राम
भगवान विष्णु ने उन्हें इस बात का वरदान दिया और कहा त्रेता युग में आप दोनों अयोध्या के महाराजा और रानी के रूप में जन्म लेंगे और मैं अपने सातवें अवतार श्री राम आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा. इस आशीर्वाद के कारण मनु अगले जन्म में राजा दशरथ बने और उनकी पत्नी शतरूपा कौशल्या बनीं.
तभी इन दोनों को पुत्र के रूप में भगवान राम की प्राप्ति हुई. कैकयी ने भी बाद में भगवान राम से कहा था कि वह अगले जन्म में उन्हें अपने पुत्र के रूप में पाना चाहेगी, तो श्रीराम ने अगले जन्म में उन्हें श्रीकृष्ण की माता यशोदा बनने का सौभाग्य दिया था.
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मनु और शतरूपा से जुड़ा मनुस्मृति
मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक धार्मिक ग्रंथ है. इसमें धर्म और राजनीति के बारे में बताया गया है. मनुस्मृति में समाज के संचालन के लिए जो व्यवस्थाएं हैं, उनका संग्रह किया गया है. मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं. कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है. इसमें सृष्टि का उत्थान, हिंदू संस्कार विधि, श्राद्ध विधि व्यवस्था, अलग अलग आश्रम की व्यवस्था, विवाह संबधी नियम, महिलाओं के लिए नियम आदि बताए गए हैं.
माना जाता है कि यह किताब मूल रूप में संस्कृत में तीसरी सदी में लिखी गई है. ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने प्रशासनिक कामकाज में हिंदू कानून बनाने के लिए इस किताब का इस्तेमाल किया था. माना जाता है कि यह मशहूर सप्त ऋषियों में से एक भृगु ने लिखा था, जिनका एक नाम मनु भी था.