सीरिया, लीबिया और मिस्र…तानाशाही खत्म, लेकिन लोकतंत्र की तलाश अब भी जारी! जानें इन देशों का हाल
Syria Dictatorship: कल्पना कीजिए, 50 साल से तानाशाही की चक्की में पिस रहे किसी देश के लोग अचानक अपने देश में बदलाव की उम्मीद देखने लगते हैं. ऐसा ही कुछ सीरिया के साथ हो रहा है. सीरिया में तानाशाही खत्म हो चुकी है. लेकिन क्या सच में बदलाव इतना आसान है? क्या तानाशाही के बाद लोकतंत्र में कदम रखना सचमुच आसान हो सकता है? आइये आज दुनियाभर के उन देशों की कहानियां जानते हैं जिन्होंने तानाशाही खत्म तो की, लेकिन लोकतंत्र के रास्ते में अड़चनें कम नहीं आईं.
लीबिया
2011 में गद्दाफी की तानाशाही खत्म हुई और लीबिया ने अपने लोकतंत्र की उम्मीदें लगा लीं. पर क्या हुआ? देश अलग-अलग गुटों में बंट गया और लोकतंत्र का सपना धुंधला हो गया. 13 साल बाद भी सत्ता के लिए लड़ाई खत्म नहीं हुई. लोग वहीं के वहीं हैं—भ्रष्टाचार, अस्थिरता, और हिंसा का शिकार.
मिस्र
मिस्र में होस्नी मुबारक के जाने के बाद जब एक उम्मीद जगी, तो मुस्लिम ब्रदरहुड के मोहम्मद मुर्सी की सत्ता आई, और फिर… ढेर सारे उतार-चढ़ाव के बाद, अल-सिसी के नेतृत्व में सैन्य शासन. अल-सिसी की आलोचना खूब हो रही है, लेकिन सत्ता पर उनकी पकड़ मजबूत है. अब ख्वाब जैसा है लोकतंत्र? .
इराक
2003 में जब सद्दाम हुसैन का अंत हुआ, तो इराक में लोकतंत्र आने की उम्मीद जगी. लेकिन क्या हुआ? राजनीतिक अस्थिरता, सांप्रदायिक हिंसा, और भ्रष्टाचार की जंजीरों में फंसा इराक आज भी एक स्थिर और समृद्ध राष्ट्र बनने का सपना देख रहा है.
सूडान
2019 में उमर अल-बशीर की तानाशाही खत्म हुई और देश में शांति का सपना दिखा. लेकिन जल्द ही, सूडान फिर से आंतरिक संघर्ष में फंसा और सत्ता के लिए खींचतान शुरू हो गई. जनता संघर्षों के बीच फंसी हुई है, और लोकतंत्र की राह भी मुश्किल बनी हुई है.
वेनेज़ुएला
निकोलस मादुरो के खिलाफ 2019 में तख्तापलट की कोशिश की गई, लेकिन मादुरो फिर भी सत्ता में काबिज है. देश एक गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है और लोग यहां से भाग रहे हैं. क्या लोकतंत्र का सपना सच होगा? फिलहाल, वेनेज़ुएला में तो यह ख्वाब दूर-दूर तक नजर नहीं आता.
यमन
यमन में 2011 में तानाशाह सालेह का अंत हुआ था, लेकिन इसके बाद क्या हुआ? यमन गृहयुद्ध में फंस गया. हूती विद्रोही गुटों की आपसी लड़ाई ने लोकतंत्र की संभावना को समाप्त कर दिया. दस साल से ज्यादा समय से यह देश संघर्ष और हिंसा की चपेट में है.
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ट्यूनीशिया
यहां कुछ अलग हुआ! ट्यूनीशिया, जहां 2011 में तानाशाही का अंत हुआ और वहां लोकतंत्र ने अपने पैर जमाए. हालांकि, देश में राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक मुश्किलें अब भी हैं, लेकिन बाकी देशों की तुलना में ट्यूनीशिया का लोकतंत्र कहीं बेहतर स्थिति में है. यहां उम्मीदें जीवित हैं!
अफगानिस्तान
अफगानिस्तान की कहानी तो और भी दिलचस्प है. 2001 में तालिका का पतन हुआ, और फिर लोकतांत्रिक सरकारें बनीं. लेकिन 2021 में तालिबान फिर से सत्ता में आ गया. अब अफगानिस्तान में महिलाएं अपनी आज़ादी खो चुकी हैं, और देश आर्थिक रूप से पूरी तरह ढह चुका है. लोकतंत्र का सपना टूटा हुआ है.
हैती
हैती ने दो बार तानाशाहों को उखाड़ फेंका, लेकिन लोकतंत्र तो फिर भी दूर रहा. यहां की राजनीतिक अस्थिरता और गैंग हिंसा लोकतांत्रिक शासन की राह में रुकावट बनी हुई है. जब तक ये संकट खत्म नहीं होते, तब तक हैती का लोकतंत्र का सपना अधूरा रहेगा.
सीरिया
अब बात करते हैं सीरिया की. सीरिया का इतिहास तानाशाही से लड़ने का रहा है, लेकिन क्या सच में वहां लोकतंत्र आएगा? 2011 में बशर अल-असद के खिलाफ विरोध बढ़ा, लेकिन यह आंदोलन जल्द ही गृहयुद्ध में बदल गया. सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का एकछत्र राज खत्म हो गया है. देश के बड़े हिस्से पर विद्रोहियों के कब्जे के बाद परिवार समेत भाग खड़े हुए असद ने मित्र राष्ट्र रूस में शरण ले ली है.
क्या उम्मीद है?
सीरिया में बदलाव तो हो चुका है, लेकिन क्या लोकतंत्र आने के संकेत हैं? हालांकि, यहां की राजनीति, बाहरी हस्तक्षेप और गुटबाजी का इतिहास इसे और मुश्किल बना रहा है. लेकिन अगर सीरिया के लोग मिलकर एकजुट होते हैं, तो क्या पता! हो सकता है कि वह एक दिन लोकतंत्र की ओर बढ़ सकें. उनके पास अभी भी एक मौका है, बशर्ते वे अपनी लड़ाई जारी रखें.
तानाशाही से लोकतंत्र की ओर जाने का रास्ता आसान नहीं होता. यह संघर्षों, अस्थिरताओं और कई बार नाकामियों से भरा होता है. लेकिन उम्मीद कभी खत्म नहीं होती, और यही उम्मीद सीरिया और बाकी देशों के लोगों के लिए सबसे बड़ी शक्ति हो सकती है.