Lok Sabha Election: हर चुनाव में दावेदार बन जाते हैं महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधानसभा के बाद अब लोकसभा में भी दिखाई दावेदारी

पुष्यमित्र भार्गव संघ के पुराने स्वयंसेवक हैं. महापौर से पहले वह हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के अतिरिक्त महाधिवक्ता थे.
Pushyamitra Bhargava

इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव (फोटो- सोशल मीडिया)

इंदौर: आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी की ओर से इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी दावेदारी कर रहे हैं, इसके पहले विधानसभा चुनाव में भी इंदौर क्षेत्र चार से उनकी दावेदारी थी. लेकिन इस बार कांग्रेस ने उन पर तंज कसा है कि यह चुनाव का टिकट है, सिनेमा का नहीं जो हर बार लेने खड़े हो जाते हैं. पिछले 35 वर्षों से इंदौर की लोकसभा सीट बीजेपी के पास ही है. इस वजह से यह सबसे सेफ सीट मानी जाती है. यहां से सुमित्रा महाजन लगातार सात बार सांसद रही हैं, उनके बाद 2019 में शंकर लालवानी रिकॉर्ड मत से जीतकर सांसद बने थे. लेकिन इस बार माना जा रहा है कि शंकर लालवानी का लोकसभा टिकट कटना तय है. ऐसे में महापौर पुष्यमित्र भार्गव प्रदेश के नगरीय विकास, आवास एवं संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की मदद से सांसद जाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि यह बात वह खुलकर स्वीकार नहीं कर रहे, लेकिन इनकार भी नहीं कर रहे हैं. उनका कहना है कि जनता मुझे जो भी दायित्व देगी, मैं उसका निर्वहन करूंगा. लोकसभा प्रत्याशी बनाए जाने के लिए बीजेपी की रायशुमारी में कई लोगों ने भार्गव का नाम लिखकर दिया है.

कांग्रेस के प्रदेश महासचिव  ने कसा तंज

लेकिन महापौर भार्गव की चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा को देखते हुए कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राकेश सिंह यादव ने तंज कसा है कि महापौर भार्गव पहले विधानसभा के लिए प्रयासरत थे, अब वह लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए भी प्रयास कर रहे हैं. उनको ऐसा लगता है कि हर चुनाव का टिकट सिनेमा का टिकट है, जो उन्हें मिल जायेगा. अभी तो वह महापौर है, उन्हे जनता ने जो जिम्मेदारी दी है, पहले उसे पूरा कर लें. यादव ने आगे कहा कि जब वह महापौर नहीं रहेंगे तो वह पार्षद या पंचायत का टिकट भी मांगेंगे, शायद चुनाव लडना उनका शौक है.

संघ के पुराने स्वयंसेवक है पुष्यमित्र भार्गव

पुष्यमित्र भार्गव संघ के पुराने स्वयंसेवक हैं. महापौर से पहले वह हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के अतिरिक्त महाधिवक्ता थे. वहां से बीजेपी ने उन्हें सीधे महापौर का टिकट दिया और शहर की जनता के लिए अंजान होते हुए भी भारी मतों से जीत भी गए.

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