Chhattisgarh: झाड़ू और चटाई बनाने वाले आदिवासियों का नहीं बन रहा Caste सर्टिफिकेट, शिक्षा और रोजगार से वंचित

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने से जनजाति परेशान हैं. प्रदेश में कुछ ऐसे आदिवासी है जिनके पास उनका कास्ट सर्टिफिकेट ही नहीं है. सालों से कोशिश करने के बावजूद कुछ आदिवासियों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है.
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पारधी जनजाति के लोग

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने से जनजाति परेशान हैं. प्रदेश में कुछ ऐसे आदिवासी है जिनके पास उनका कास्ट सर्टिफिकेट ही नहीं है. सालों से कोशिश करने के बावजूद कुछ आदिवासियों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है. जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने से आदिवासियों में भारी नाराजगी है. आदिवासी अपने आदिवासी होने का ही प्रूफ नहीं दे पा रहे हैं. इतना ही नहीं यह आदिवासी सरकारी सुविधाओं से भी वंचित हो रहे हैं.

झाड़ू और चटाई बनाने वाले आदिवासियों का नहीं बन रहा Caste सर्टिफिकेट

दरअसल राजधानी रायपुर से 20 किलोमीटर दूर अभनपुर के झांकी गांव में अनुसूचित जनजाति समुदाय से आने वाले 250 लोग रहते हैं. यह सभी लोग पारधी जनजाति के हैं. इन्हें शिकारी भी कहा जाता है. सालों पहले इस समुदाय के लोग शिकार किया करते थे. तीतर, बटेर और चिड़िया जैसे पक्षियों को पकड़ने का काम इस समुदाय के लोग करते थे, लेकिन सरकार द्वारा इस काम पर बैन लगाए जाने के बाद समुदाय के लोगों ने पक्षियों को पकड़ने का काम बंद कर दिया और अब यह लोग जंगलों में जाकर खजूर और छींद के पत्ते तोड़कर चटाई, झाड़ू, टोकनी बनाने का काम करते हैं. इसी काम करने से पारधी आदिवासियों का गुजारा होता हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इनके पास जाति प्रमाण ही पत्र नहीं है. जिसकी वजह से इन्हें कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. सरकारी दफ्तरों का चक्कर काट काट कर यह लोग परेशान लाचार और बेबस हो चुके हैं लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है. इसलिए विस्तार न्यूज़ की टीम इन आदिवासियों की समस्या दिखाने झांकी गांव पहुंची जहां यह आदिवासी निवास करते हैं. इन आदिवासियों के क्या हालात हैं, कितने दुख और पीड़ा से यह लोग गुजर रहे हैं.

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पारधी आदिवासी शिक्षा और रोजगार से हो रहे वंचित

पारधी आदिवासियोँ का कहना है कि मौखिक में तो उन्हें आदिवासी बताया जाता हैं, लेकिन दस्तावेज के तौर पर उनके पास अपने आप को आदिवासी के रूप में प्रूफ करने के लिए जाति प्रमाण पत्र नहीं है. इसकी वजह से यहां रहने वाले लोगों को काफी परेशानी हो रही है. अब यह भी जान लीजिए की जाति प्रमाण पत्र नहीं होने की वजह से पारधी आदिवासियों को क्या-क्या तकलीफें हो रही है. इस आदिवासी समुदाय के बच्चे 10वीं और 12वीं तक पढ़ाई करने के बावजूद नौकरी में आरक्षण का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश भी नहीं हो पा रहा है. इसके अलावे जो भी सरकारी योजनाओं में इन्हें लाभ मिलना चाहिए वह भी नहीं ठीक से मिल पा रहा. बता दें कि इन आदिवासियों के पुरखे घुमंतू थे, एक जगह टिकते नहीं थे. अब यह लोग एक जगह स्थाई हो चुके हैं, इसके बाद भी इनका जातीय प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा. इस गांव में रहने वाले आदिवासी झाड़ू और चटाई बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं. यह लोग प्रतिदिन झाड़ू बेचकर 200 रुपए से लेकर 300 तक कमाते हैं. यहां रहने वाले आदिवासियों का कहना है कि हमारा बात ऊपर तक पहुंच ही नहीं पा रहा. इसीलिए विस्तार न्यूज़ इस खबर को विस्तार से दिखा रहा है. इतना ही नहीं झांकी गांव में रहने वाले पारधी जनजाति के लोगों के पक्के मकान भी नहीं बने हैं. टूटी फूटी मकान में झिल्ली लगाकर यह अपना गुजारा कर रहे हैं. जैसे तैसे दो वक्त की रोटी खा रहे हैं. अगर इस गांव में रहने वाले ढाई सौ आदिवासियों का जाति प्रमाण पत्र बनता है तो इनका जीवन बेहतर हो सकता है, इन्हें अच्छी शिक्षा के साथ-साथ रोजगार मिल सकता है.

ये जनजाति छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा, रायपुर, महासमुंद, बिलासपुर, बस्तर और धमतरी जिलों में ज्यादा पाई जाती है. लंबे समय से पारधी आदिवासी समाज के लोग जाति प्रमाण पत्र के समस्या से ग्रसित हैं.

यह तो हमारा संविधानिक मामला – बृजमोहन अग्रवाल

इस पूरे मामले को लेकर रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि यह तो हमारा संविधानिक मामला है.जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए एक नियम बने हुए हैं.उसे नियम के अंतर्गत अगर किसी का नहीं बनता है, तो बताए. अगर नियम में संशोधन करने की आवश्यकता है, तो भारत के संविधान में संशोधन हो सकता है उसके लिए प्रस्ताव दें, सरकार का जो प्रक्रिया है उसको पूरा करें.

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