योगी आदित्यनाथ ने चेतावनी दी कि जिन्होंने समाज को बांटने की योजना बनाई है, वे एक दिन कट जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि यह लोग विदेशों में संपत्ति खरीद कर रखते हैं और संकट आने पर यहां से भाग जाएंगे, जबकि देश में संकट का सामना करने वाले आम लोग होंगे."
इससे पहले, 28 नवंबर को झामुमो के वरिष्ठ विधायक स्टीफन मरांडी को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया था. वे जब तक नियमित स्पीकर नहीं चुने जाते, तब तक विधानसभा की कार्यवाही का संचालन करेंगे.
अगर हम इस सारी स्थिति को देखें, तो एक बात साफ है – आम आदमी की चिंता बढ़ती जा रही हैं. महंगाई, ब्याज दरों और मंदी के बीच वह कभी न खत्म होने वाले इंतजार में हैं कि आखिर कब उन्हें राहत मिलेगी.
यह ऑपरेशन ना सिर्फ एक संयुक्त बचाव मिशन था, बल्कि यह एक शानदार उदाहरण भी था कि जब दो देश एक साथ काम करते हैं तो किसी भी संकट का हल निकाला जा सकता है.
सामना में आगे लिखा है, "शिंदे ने बैठक के दौरान अपने पुराने वादे को याद दिलाया, जिसमें कहा गया था कि अगर महायुति को बहुमत मिलता है तो वह खुद मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे. शिंदे का तर्क था कि उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने बहुमत हासिल किया है, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा जाए."
अखिलेश यादव और अन्य नेताओं के लिए सीट आवंटन में यह बदलाव एक कड़ा संदेश देता है कि कांग्रेस अपनी सत्ता की भूख में अपने सहयोगियों को नजरअंदाज कर सकती है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस की इस "महारानी" मानसिकता के चलते अन्य दलों के बीच गठबंधन की गांठ ढीली तो नहीं हो जाएगी.
बांग्लादेश के चटगांव में इस्कॉन पुंडरीक धाम के अध्यक्ष चिन्मय कृष्ण दास प्रभु की गिरफ्तारी के बाद हालात और बिगड़ गए हैं. उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ हिंदू समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए, लेकिन इस दौरान BNP और जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला कर दिया, जिसमें 50 हिंदू घायल हो गए हैं.
नवाब टोंक के समय से यह मस्जिद अस्तित्व में है, और यहां पर नमाज अदा करने की परंपरा काफी पुरानी है. इस समय में भी कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि मस्जिद और उसका परिसर उसी समय से वक्फ संपत्ति है, जब नवाब टोंक ने इसे दान किया था.
शिंदे की हालत स्थिर है और डॉक्टर उनकी नियमित जांच कर रहे हैं. मुख्यमंत्री कार्यालय ने बयान जारी कर कहा है कि शिंदे की सेहत को लेकर किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, और वे शीघ्र स्वस्थ हो जाएंगे.
भारत में भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को गंभीरता से लिया जा रहा है, लेकिन इस दिशा में और अधिक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. हमें सिर्फ जलवायु परिवर्तन से बचने के उपाय नहीं करने चाहिए, बल्कि इसके प्रभावों का भी सामना करने के लिए योजना बनानी चाहिए.