हसन नसरल्लाह ईरान के नेता अयातुल्ला खामेनेई के करीबी सहयोगी माने जाते थे. उनकी हत्या से ईरान और हिजबुल्लाह के रिश्तों पर भी असर पड़ सकता है.
इजरायल डिफेंस फोर्सेज (IDF) ने नसरल्लाह की मौत की पुष्टि करते हुए कहा कि अब दुनिया को नसरल्लाह से डरने की जरूरत नहीं है; वह आतंक का विस्तार नहीं कर पाएगा. ईरान के सरकारी समाचार नेटवर्क प्रेस टीवी ने भी इस घटना की पुष्टि की.
शहजाद पूनावाल ने कहा, "हिंदू हिंसक और देवता अब भगवान नहीं रहे, राहुल गांधी ने कहा राम मंदिर की पवित्र प्राण प्रतिष्ठा एक "नाच-गाना कार्यक्रम" है! क्या किसी अन्य धर्म और उनके पवित्र अवसरों के बारे में ऐसा कहा जा सकता है?
आईडीएफ के अनुसार, हिजबुल्लाह आतंकवादी संगठन 8 अक्टूबर को हमास के साथ मिलकर इजरायल के खिलाफ युद्ध में शामिल हो था. तब से हिजबुल्लाह के हमलों में इजरायली नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है, जिससे लेबनान और पूरे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है.
पीएम मोदी ने पाकिस्तान पर सीधा हमला करते हुए कहा, "पहले सीमा पार से गोलियां चलती थीं, लेकिन अब पाकिस्तान की गोली का जवाब गोले से दिया गया है. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग अब आतंक, अलगाव और खून-खराबा नहीं चाहते.
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, "यह घोषणापत्र बहुत मेहनत से तैयार किया गया है. हमने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बहुत कुछ सीखा है." राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कांग्रेस के वादों का समर्थन करते हुए कहा, "हमारा घोषणापत्र जनता की राय लेकर बनाया गया है. कांग्रेस जो वादा करती है, वह निभाती है. भाजपा बिना तथ्यों के बातें करती है."
हालांकि अभी तक धमाके के कारण का पता नहीं चल सका है, लेकिन सूत्रों के अनुसार यह तकनीकी खराबी या सुरक्षा मानकों की अनदेखी के कारण हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि जांच पूरी होने के बाद ही सही कारणों का पता लगाया जा सकेगा.
इसी बीच, भारतीय डिप्लोमैट भाविका मंगलनंदन ने UNGA में पाकिस्तान को जवाब देते हुए कहा कि पाकिस्तान की वैश्विक छवि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली है. पाकिस्तान अपने पड़ोसी देशों के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद का सहारा लेता है.
कुलगाम और देवसर विधानसभा क्षेत्रों में पहले चरण का मतदान 18 सितंबर को हुआ था, और अंतिम चरण का मतदान 1 अक्टूबर को होने वाला है. इस बीच, आतंकी गतिविधियों को लेकर क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है और सुरक्षाबल हाई अलर्ट पर हैं.
चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत 2018 में केंद्र सरकार ने की थी, जिसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे में पारदर्शिता लाना था. हालांकि, इस योजना में दाताओं की पहचान गुप्त रखने का प्रावधान था, जिससे विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई थी.