Chhattisgarh: अंबिकापुर में 10*15 के कमरों में चल रहे आंगनवाड़ी केंद्र, बच्चों के बैठने की जगह भी नहीं

Chhattisgarh News: सरगुजा जिले के आंगनवाड़ियों की हालत बेहद ही खराब है. जिले के 800 आंगनवाड़ी केंद्रों का खुद का भवन नहीं है, और ये आंगनवाड़ी केंद्र 10*15 के जर्जर कमरों में संचालित हो रहे हैं. जहां बैठने तक के लिए जगह नहीं है.
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आंगनवाड़ी

Chhattisgarh News: सरगुजा जिले के आंगनवाड़ियों की हालत बेहद ही खराब है. जिले के 800 आंगनवाड़ी केंद्रों का खुद का भवन नहीं है, और ये आंगनवाड़ी केंद्र 10*15 के जर्जर कमरों में संचालित हो रहे हैं. जहां बैठने तक के लिए जगह नहीं है, और ऐसे हाल जिले के दूरस्थ इलाकों में नहीं बल्कि अंबिकापुर शहर के आंगनवाड़ी केन्द्रो की ही हालत है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. उनका कहना है कि नए आंगनवाड़ी केंद्र भवन बनाने के लिए जमीन नहीं मिलने के कारण ऐसी स्थिति बनी हुई है. दूसरी तरफ आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चे नहीं पहुंच पा रहे हैं, और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

आंगनवाड़ी केंद्र में बैठने तक की जगह नहीं

विस्तार न्यूज़ की टीम ने अंबिकापुर शहर के अलग-अलग आंगनवाड़ी केंद्र में पहुंचकर जांच की तो सामने आया कि अंबिकापुर स्थित कार्मल स्कूल के पीछे संचालित आंगनवाड़ी केंद्र एक छोटे से कमरे में संचालित है, और इस आंगनवाड़ी केंद्र में 25 बच्चों का नाम दर्ज है. वही जहां बैठने के लिए जगह नहीं है, तो आंगनवाड़ी की समान को रखने के लिए भी कोई स्टोर नहीं है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब बारिश होती है तो आंगनवाड़ी केंद्र तक पहुंचाने के लिए रास्ता नहीं है. सकरीगली में पानी भर जाता है और कीचड़ के कारण बच्चे आंगनवाड़ी केंद्र तक नहीं पहुंच पाते हैं इसी तरह गंगापुर इलाके में भी आंगनवाड़ी केंद्र छोटे-छोटे कमरे में संचालित हो रहे हैं. जहां 90 बच्चों का नाम दर्ज है लेकिन छोटे से कमरे में आखिर इतने बच्चे कैसे बैठे हैं, इसीलिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बच्चों को केंद्र में नहीं बुलाते हैं और सिर्फ कागजों में उनका नाम दर्ज है बता दे कि जिले में 2500 से अधिक आंगनवाड़ी केंद्र हैं. जिसमें 808 आंगनवाड़ी के भवन ही नहीं है जो सिंगल कमरों में संचालित है. वहीं सरगुजा जिले के आंगनबाड़ी में 87525 बच्चों का नाम दर्ज है. जिसमें 13891 बच्चे कुपोषित है, और 2561 बच्चों की हालत गंभीर है.

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आंगनवाड़ी भवन बनाने के लिए जमीन ही नहीं

जिला महिला बाल विकास अधिकारी जे आर प्रधान ने बताया कि शहर में आंगनवाड़ी भवन इसलिए नहीं बन पा रहे हैं, क्योंकि नगर निगम आंगनवाड़ी भवन बनाने के लिए जमीन उपलब्ध नहीं कर पा रही है. वहीं दूसरी तरफ आंगनवाड़ी के किराए वाले कमरों का किराया शहरी क्षेत्र के लिए 750 रुपए है, तो ग्रामीण क्षेत्र के आंगनबाड़ी केंद्र जो निजी कमरों में संचालित हैं उसका किराया 200 रुपए दिया जा रहा है, हालांकि उनका कहना है कि शहरी क्षेत्र के आंगनवाड़ी केंद्र जो निजी मकान में संचालित हैं. उसका किराया ₹7000 तक देने का प्रावधान है, लेकिन इसके लिए मकान मालिक को जमीन का दस्तावेज नक्शा b1 सहित अन्य कागजात उपलब्ध कराने पड़ते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाने के कारण किराया का अधिकतम रुपए निर्धारित नहीं हो सका है.

दूसरी तरफ विस्तार न्यूज़ की पड़ताल में यह भी सामने आया है कि शहर के कई आंगनबाड़ी में प्ले स्कूल और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भी नाम दर्ज है और इन बच्चों को सरकार की किसी भी योजना का लाभ आंगनवाड़ी के माध्यम से नहीं मिल रहा है, लेकिन आंगनवाड़ी के कार्यकर्ताओं ने दर्ज संख्या अधिक दिखाने के चक्कर में इन बच्चों का नाम दर्ज कर लिया है और इन बच्चों के हक में मिलने वाले सामग्री सहित अन्य संसाधनों का दुरुपयोग किया जा रहा है लेकिन ग्राउंड स्तर पर जाकर विभाग की जिम्मेदारी इसकी जांच नहीं कर रहे हैं.

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