Chhattisgarh News: बीजापुर से केवल 7 KM दूर गांव में सुविधाओं की कमी, एंबुलेंस जाने का रास्ता तक नहीं

Chhattisgarh News: बता दें कि नक्सलियों द्वारा जगह-जगह से काटी गई सड़क पर किसी तरह आप इस गांव के अंदर पहुंचते हैं, लेकिन ODF घोषित हो चुके इस गांव में किसी भी घर में शौचालय नहीं है. गांव तक ना ही बिजली पहुंची है, और ना ही ग्रामीणों को प्रधानमंत्री आवास का लाभ मिला है. एंबुलेंस को मरीजों तक पहुंचने के लिए भी कठिन रास्तों से गुजरना होता है. 
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बीजापुर का गांव

Chhattisgarh News: बीजापुर जिला मुख्यालय से सिर्फ 7 किलोमीटर की दूरी पर गोरना गांव है, मनकेली पंचायत के अंदर आने वाला ये गांव सरकार के विकास के दावों की पोल खोलता नजर आता है. गांव में घुसने से पहले ही पक्की सड़क खत्म हो जाती है. नक्सलियों द्वारा जगह-जगह से काटी गई सड़क पर किसी तरह आप इस गांव के अंदर पहुंचते हैं, लेकिन ODF घोषित हो चुके इस गांव में किसी भी घर में शौचालय नहीं है. गांव तक ना ही बिजली पहुंची है, और ना ही ग्रामीणों को प्रधानमंत्री आवास का लाभ मिला है. एंबुलेंस को मरीजों तक पहुंचने के लिए भी कठिन रास्तों से गुजरना होता है.

बीजापुर मुख्यालय से लगे गांव में सुविधा का अभाव

गोरना गांव भले ही बीजापुर मुख्यालय से लगा हुआ है, लेकिन इस तक पहुंचना आज भी बड़ी चुनौती के समान है. गांव में घुसते ही आप कठिन रास्तों से पटेल पारा तक पहुंचते हैं, लेकिन इसके आगे का रास्ता और भी मुश्किल हो जाता है. पटेल पारा से पुजारी पारा तक पंहुचने वाली मात्र 300 मीटर लंबी सड़क को 30 से अधिक जगहों पर काट दिया गया है. रास्ते में पेड़ गिरा दिए गए हैं.

गांव भले ही जिला मुख्यालय से लगा हुआ हो, लेकिन सरकार की अधिकांश योजनाएं इस गांव तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. विस्तार न्यूज़ की टीम गोरना गांव के पुजारी पारा पहुंची. जहां के निवासी छोटू ने हमें बताया कि ना तो गांव में किसी परिवार को पीएम आवास मिला है, ना ही घरों में सिलेंडर पहुंचा है. घरों में शौचालय भी नहीं बने हैं, जबकि बीजापुर जिला सालों पहले ODF घोषित हो चुका है.

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गांव में एंबुलेंस जाने की सुविधा नहीं

विस्तार न्यूज के रिपोर्टर जब गांव में ही थे तब पुजारी पारा की एक गर्भवती महिला को लेबर पेन शुरू हो गया. ग्रामीणों ने उनसे मदद मांगी तो उन्होंने एंबुलेंस को कॉल कर दिया. लेकिन तब तक अंधेरा होने लगा था, और भले ही ये गांव बीजापुर शहर से लगा हो, लेकिन नक्सल समस्या के चलते आज भी यहां जाना खतरे से खाली नहीं होता है. ऐसे में अंधेरा होते देख विस्तार के रिपोर्टर गांव से बाहर निकलने लगे, लेकिन तभी उन्हें एंबुलेंस आती नजर आई. अब बड़ी चुनौती थी कि आखिर ये एंबुलेंस उस गर्भवती महिला तक कैसे पंहुचेगी? ड्राइवर ने बताया कि जहां तक एंबुलेंस पहुंच जाए वहां तक जायेंगे, उसके आगे का रास्ता गर्भवती महिला को स्ट्रेचर में लाद तय करेंगे. वहां के लोगों ने बताया कि यहां मरीजों का यही हाल है, गोरना गांव से आगे मनकेली और करका जैसे गांव हैं. वहां की हालत तो और खराब है. कई बार तो मरीजों को 20-20 किलोमीटर खाट पर लाद कर चलना पड़ता है.

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