Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के मूर्तिकारों का ये गांव आपने देखा है क्या? 5 राज्यों से आती है मूर्तियों की डिमांड

Chhattisgarh News: थनौद गांव के मूर्तिकारों के हुनर और इनकी अलग विशेषताओं की वजह से भारत के अलग-अलग राज्यों से आकर लोग इनसे मूर्ति बनवाते हैं.
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भगवान गणेश की मूर्ति

Chhattisgarh News: दुनिया के अलग-अलग कोनों से कई ऐसे हुनरमंद उभरकर सामने आये है, जिनके हाथों के कलाकारी ने लोगों को चौंका दिया है. ऐसे ही हुनरमंदों से भरा लगभग 200 परिवारों का एक गांव छत्तीसगढ़ के दुर्ग बसा है. यहां उनके हाथों के हुनर को छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश ने देखा है. इस 200 परिवार वाले गांव मे बच्चों से लेकर बुजुर्ग सभी के हाथों में यह कला करीब 100 सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है.

100 साल पुराना है इतिहास 

दरअसल, 200 परिवारों का यह गांव छत्तीसगढ़ के दुर्ग में बसा है. इस छोटे से गांव को लोग ‘मूर्तिकारों के गांव’ के नाम से भी जानते हैं. उस गांव का नाम है थनौद. इस छोटे से थनौद की पहचान छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में मूर्तिकला से हुई है. इस गांव की खास बात यह है कि यहां के लगभग 200 परिवार मूर्तिकला का ही काम करके अपना जीवन यापन करते हैं. इस गांव के मूर्तिकारों का इतिहास करीब 100 साल पुराना है. गांव के कलाकारों के हाथों से बनी मूर्तियों और झांकियों की डिमांड छत्तीसगढ़ के अलावा देश के कई राज्यों में आये दिन आती रहती है.

राजनांदगांव में सबसे बड़ी प्रतिमा इन्हीं के द्वारा बनाई गई

इस गांव के मूर्तिकारों के हुनर और इनकी अलग विशेषताओं की वजह से भारत के अलग-अलग राज्यों से आकर लोग इनसे मूर्ति बनवाते हैं. इस गांव के मूर्ति कलाकार सिर्फ मिट्टी से ही मूर्तियां नहीं बनाते हैं, बल्कि पत्थरों को भी तराशकर अपने हुनर से एक अद्भुत मूर्तियों का भी निर्माण करते हैं. इसी गांव के मूर्तिकार बालम चक्रधारी ने ही राजनांदगांव की विशालकाय प्रतिमा मां पाताल भैरवी का निर्माण ने किया है.

मूर्तिकारों का जीवन पूरी तरह से मूर्तिकला पर निर्भर

इस गांव के मूर्तिकारों का जीवन पूरे तरह से मूर्तिकला पर ही निर्भर है. इस गांव के चक्रधारी परिवार ने इस कला को आज के आधुनिक युग में भी बचाकर रखा है बालम चक्रधारी बताते हैं कि इस कला के माध्यम से ही वे अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. बाकी समय में मटके व अन्य खिलौने बनाकर गुजारा करते हैं.

मूर्ति बनाने से पहले पूरे विधि-विधान से मिट्टी की करते हैं पूजा

गांव के मूर्तिकार अजय चक्रधारी बताते हैं कि उनका यह पुश्तैनी काम है. उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी लगभग 100 साल पहले से ही मूर्तिकला का काम करते आ रहा है. इसी मूर्तिकला से वे जीवन यापन करते आ रहे हैं. इस गांव के मूर्तिकार बड़े मेहनती होते हैं. वे मूर्तियां बनाने के लिए पहले विधि विधान से मिट्टी की पूजा करते हैं. इसके बाद मिट्टी में अन्य चीजें मिलाई जाती हैं. सुबह से ही मिट्टी गूथने से लेकर मूर्तियों की रंगाई तक का सारा काम करते हैं.

देश के कई राज्यों से मूर्ति बनवाने का आता है आर्डर

मूर्तिकार अपनी माटी कला से सुंदर- सुंदर मूर्तियों का निर्माण करते हैं. यहां लोगों की डिमांड के अनुसार मूर्तियां तैयार की जाती हैं. दरअसल थनौद में साल भर मूर्तियां और झांकियां बनती रहती हैं. नवरात्रि व गणेश चतुर्दशी में सबसे ज्यादा मूर्तियां बनाने का डिमांड आती है. छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों सहित मायानगरी मुम्बई से भी इस गांव में मूर्तियों और झांकियों की डिमांड आती रहती है.

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