Chhattisgarh News: 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की कई रस्में बेहद ही रोचक हैं. इन्हीं रस्मों में से एक बेहद महत्वपूर्ण रस्म काछन गादी को परंपरागत तरीके से बुधवार देर शाम पूर्ण किया गया. इस रस्म के तहत पनका जाति की छोटी बालिका द्वारा कांटे के झूले पर बैठकर रथ परिक्रमा शुरू करने की इजाजत देती हैं. ये परंपरा पिछले 400 सालों से ऐसे ही चली आ रही है.
कांटों के झूले में बैठ काछन देवी ने बस्तर दशहरा मनाने की दी अनुमति
बस्तर दशहरा अपने रथ परिक्रमा की परंपरा के लिए जाना जाता है, लेकिन इसकी अनुमति की रस्म भी बेहद रोचक है. बुधवार शाम पूरे विधि विधान से काछन गादी रस्म को निभाया गया. जिसमें स्थानीय पनका जाति की एक छोटी बालिका द्वारा कांटे के झूले पर बैठकर बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म रथ परिक्रमा को शुरू करने की इजाजत दी गई. रस्म के अनुसार बस्तर का राजपरिवार और दशहरा समिति के सदस्य बुधवार देर शाम काछन गुड़ी पंहुचे. ऐसा माना जाता है कि किसी भी शुभ कार्य से पहले देवी को अनुमति जरूरी है. ऐसे में इस वर्ष पनका जाति की पीहू दास ने देवी की भूमिका निभाई. पीहू पिछले 3 वर्षों से इस रस्म को निभाते आ रही है. मान्यताओं के अनुसार अश्विन अमावस्या के दिन काछन देवी जो रण की देवी भी कहलाती है पनका जाति की कुंवारी कन्या की सवारी करती है इसी दिन बस्तर राज परिवार दशहरा समिति के सदस्य आतिशबाजी करते हुए मुंडा बाजा के साथ काछन गुड़ी तक पहुंचाते हैं, और कांटों के झूले पर झूलती हुई देवी से अनुमति मांगते हैं.