स्मृति शेष: एक मौन तपस्वी का स्वर्गारोहण; सरल, सहज और ध्येयनिष्ठ स्वयंसेवक थे गोपाल व्यास

Chhattisgarh: 7 नवंबर 2024 को छत्तीसगढ़ की राजनीति की एक ऐसी हस्ती इस दुनिया को अलविदा कह गई, जिसकी सादगी के चर्चे दूर-दूर तक थे. RSS के वरिष्ठ कार्यकर्ता, BJP के सीनियर लीडर और पूर्व राज्यसभा सांसद गोपाल व्यास का निधन हो गया. उनके जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंगों पर प्रकाश डाल रहे हैं, पंडित गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास के अध्यक्ष डॉ. राकेश मिश्रा.
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गोपाल व्यास

Chhattisgarh: आदर्श स्वयंसेवक, पूर्व राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता गोपाल जी व्यास का लंबी बीमारी के बाद 7 नवंबर की सुबह 6:45 बजे देहावसान हो गया. उन्होंने 93 वर्ष की आयु में अंतिम श्वांस ली. उनका जन्म 15 फरवरी 1932 में रायपुर में हुआ था. उन्होंने जबलपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री ली और भिलाई स्टील प्लांट में सीनियर इंजीनियर के रूप में सेवाएं दीं. वे बाल्य काल में ही संघ के स्वयंसेवक बने. इसके बाद गोपाल जी ने प्रांत कार्यवाह, प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक आदि विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया. जब वे भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत थे, तब प्रान्त कार्यवाह रहे. फिर नौकरी से वीआरएस लेकर उन्होंने सम्पूर्ण जीवन संघ की सेवा में समर्पित कर दिया. वे महाकौशल प्रान्त के प्रांत प्रचारक रहे. विश्व हिन्दू परिषद के अखिल भारतीय सयुंक्त महामंत्री रहे.

जबलपुर से रायपुर तक पैदल यात्रा

व्यास जी ने संघ कार्य विस्तार के लिए जबलपुर से रायपुर तक की पैदल यात्रा भी की. संघ गांव-गांव, घर-घर पहुंचे, इसके लिए प्रयत्नशील रहे। वर्ष 1975 से 1977 तक आपातकाल में जेल में रहे. आपातकाल में जेल में रहते ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई की. उनका पूरा जीवन त्यागमय था. वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले व्यक्ति थे. उन्होंने कभी परिस्थितियों के साथ समझौता नहीं किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपने जीवन में सर्वोच्च माना.

उनके पास केवल दो ही कार्य थे, एक नौकरी और दूसरा संघ कार्य. उनके साथ कार्य कर चुके लोग उन्हें संत के रूप में याद करते हैं. वे मिलनसार थे, जिससे भी मिलते थे तो बड़े प्रेम से मिलते थे. लोगों को कभी ये नहीं लगता था कि वे पहली बार उनसे मिल रहे हैं. वे संघ के अथक सेवाधारी स्वयंसेवक थे.

उदार दिल, सादगी की मिसाल

वे वर्ष 2006 से 2012 तक छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के सदस्य भी रहे. दिल्ली में राज्यसभा में उनके साथ छह वर्ष तक मेरा निकट का संबंध रहा है. मैंने उनके जैसी सादगी नहीं देखी. उदार दिल, सादगी की मिसाल तो उनके अंदर कूट कूट कर भरी थी. परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर होते हुए भी वह सदैव अपना वेतन व भत्ते दूसरों पर खर्च कर देते थे. प्रचारक जीवन में बेटे मुन्नू को असमय खो दिया. आदरणीय सुशीला भाभी, बहू व पोता हर्ष व्यास से दो दिन पूर्व मेरी बात हुई थी, तब उन्होंने बताया कि बाबा गंभीर बीमार हैं. शायद अब नहीं बचेंगे. सुनकर मुझे बड़ा धक्का लगा. प्रकृति की नियति भी यहीं तक होगी. उनके साथ मेरा 1990 से विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में जो मार्गदर्शन मिला, उस पर आज भी कायम हूं.

सांसद होकर भी ऑटो से चलते थे

उनके सादगीपूर्ण जीवन के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे. प्रचारक जीवन से लौटकर रायपुर के निवास पर स्टेशनरी व पर्चयून की दुकान तक खोली, जिससे ईमानदारी से भरण पोषण कर सकें. कभी उन्होंने दूसरे के सामने हाथ भी नहीं फैलाया. राज्यसभा सांसद रहते हुए वह पूर्ण समय उपस्थिति रखते थे. दिल्ली में सांसद रहते हुए ऑटो पर ही चलते थे. दो तीन जोड़ कपड़े में धोती , कुर्ता, जैकेट, मफ़लर व टोपी ही उनकी पोशाक थी. अपने लिए कभी गाड़ी नहीं रखी व दूसरे ने यदि किसी प्रकार कार की व्यवस्था भी की तो वह उसे मना कर देते थे.

जिस दिन वह राज्यसभा सदस्य बने तो दिल्ली में तत्कालीन सरकार्यवाह मोहन भागवत जी की सूचनानुसार स्व. बाल आपटे जी (सांसद) के पास आए और उनकी सभी संसदीय प्रकियाएं मैंने संसदीय सौंध में पूरी कराई. वहां से उनको अस्थाई रूप से छत्तीसगढ़ भवन में कमरा दिया गया, लेकिन वहां उन्हें कमरा देने से छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारी ने मना कर दिया. इसके कारण बाद में जनपथ होटल जनपथ पर हम उनको लेकर गए और वहां उनको एक कमरा दिया गया, जिसका 7 दिन का किराया एक लाख पचास हजार रुपए था, तो उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि ये शासन का पैसा बर्बाद जाएगा. उन्होंने सामान तो रख दिया क्योंकि पहले से तय प्रवास कार्यक्रम में तत्कालीन विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री आचार्य गिरिराज किशोर जी के साथ नेपाल की यात्रा में जाना था. पुरानी दिल्ली से उनकी स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन मैं उनका साधारण स्लीपर क्लास में टिकट था, जो दो माह पहले बनाया होगा. वह उसी पर यात्रा किए. यद्यपि हमने कहा कि अब राज्यसभा सांसद हो गए हैं आप प्रथम श्रेणी में यात्रा कर सकते हैं तो उन्होंने कहा कि नहीं यह टिकट हमने पहले से बनाया है और मैं इसी पर जाऊंगा.

एक पत्र से मच गया था हड़कंप

रास्ते में उन्होंने मुझे फोन किया और बताया के होटल का जो किराया सचिवालय ने हमारे लिए भरा यह होटल खाली कर दो और उसकी जगह मैं पुरानी दिल्ली के किसी धर्मशाला में निवास करुंगा क्योंकि हमारे छत्तीसगढ़ के नक्सलवादियों ने सिपाहियों की हत्या की है. ये 1,50000, रुपए उनके परिवार वालों को दे दिए जाए और उन्होंने इस बात का पोस्ट कार्ड पर एक पत्र राज्यसभा सचिवालय के महासचिव को लिखा. हड़कंप मच गया और ढूंढ़ते हुए मेरे पास आए क्योंकि उनके संपर्क में मेरा मोबाइल व पता दर्ज था. उन्होंने कहा कि यह कौन सांसद हैं जिन्होंने ऐसा पत्र लिखा है? ऐसे थे हमारे गोपाल व्यास जी. उन्होंने दिल्ली लौट करके सबसे पहले जनपथ होटल को खाली किया. राज्यसभा से मिला हुआ साहित्य वो सब विश्व हिन्दू परिषद कार्यालय आरकेपुरम में ले गए.

राज्यसभा में उनकी नियमित उपस्थिति तो होती हाथी वे धाराप्रवाह संस्कृत, हिंदी, व अंग्रेज़ी मैं उनका उद्बोधन सबको प्रेरित करता था. वो इतने सादगी के कपड़े व चप्पल पहनते थे कि रास्ते में उनको सुरक्षाकर्मी भी रोक देते थे. उनको लगता था के बुजुर्ग व्यक्ति यहां चला आ रहा है. उनका सांसद के रूप में 145, नार्थ एवेन्यू आवास सबके लिए सदैव खुला रहता था. एक दो कमरे तो विश्व हिन्दू परिषद के विशेष संपर्क विभाग के कार्यकर्ताओं का निवास ही हो गया था. उनके सहयोगी मुकेश शुक्ला, भरत सिंह, प्रदीप सारीवान व संजीव अधिकारी बेहद शोक में हैं.

संसार से विदा होते हुए भी उन्हें समाज की ही चिंता थी, यही कारण है कि उनकी इच्छा के अनुसार उनका देहदान किया जाएगा। ईश्वर दिवंगत आत्मा को मोक्ष प्रदान करें. हम सब समाज कार्य एवं संगठन को समर्पित ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ता को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है.

लेखक- डॉ. राकेश मिश्रा, अध्यक्ष पंडित गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास.  उन्होंने गोपाल व्यास के साथ निकटता से कार्य किया है.

( डिस्क्लेमर- इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं. इसमें शामिल तथ्य और विचार विस्तार न्यूज के नहीं हैं और संस्थान इसकी कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेता है. )

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