पुराना मसाला, नया पाउच – साउथ की स्टाइल में हिंदी का तड़का, जब ‘ढाई किलो के हाथ’ से मिला ‘जाट’

सिल्वर स्क्रीन पर जैसे ही "जाट" शुरू होती है, आपको एहसास होता है कि ये कोई आम फिल्म नहीं, बल्कि एक्शन और मसाला का एक ज़ोरदार पंच है.
Jaat

जाट

Jaat: अगर आप 90 के दशक की मसाला फिल्मों के दीवाने हैं, जहां एक अकेला हीरो सैकड़ों गुंडों को धूल चटा देता है, धमाकेदार डायलॉग्स चलते हैं, जो दर्शकों को खूब लुभाते हैं और हर फ्रेम में देसी पावर का तूफान नजर आता है तो “जाट” आपके लिए बनी है. सिल्वर स्क्रीन पर जैसे ही “जाट” शुरू होती है, आपको एहसास होता है कि ये कोई आम फिल्म नहीं, बल्कि एक्शन और मसाला का एक ज़ोरदार पंच है – सीधा दिल और दिमाग पर. ये फिल्म है परंपरा बनाम बदलाव की लड़ाई की, रॉ एक्शन और देसी जज़्बे की, और सबसे बढ़कर… सनी देओल की वापसी की जोश से भरी हुंकार की.

जब हरियाणा की मिट्टी से उठता है एक शेर…

“जाट” की कहानी महज़ एक गांव या एक लड़ाई की नहीं है, ये कहानी है रूट्स से जुड़ाव और उड़ने की चाह की. फिल्म का नायक न सिर्फ़ अपने खून में बसी ज़मीन की खुशबू पहचानता है, बल्कि सपनों के लिए लड़ना भी जानता है. हरियाणा की मिट्टी, देसी अकड़, और दिल से निकली आवाज़ – यही है ‘जाट’ का असली डीएनए.

यहां आपको सिर्फ़ एक्शन नहीं, एक भावनात्मक गहराई भी मिलेगी – वो जो हर उस इंसान से जुड़ती है जो अपनी पहचान को गर्व से ओढ़ता है लेकिन आगे बढ़ने का जज़्बा भी रखता है.

अभिनय: पर्दे पर आग लगा दी सबने! (5/5)

सनी देओल: क्या कहें… भाईसाहब ने जैसे 90 का दौर वापस ला दिया हो! उनकी एंट्री पर तालियाँ, डायलॉग्स पर सीटी, और एक्शन पर हूटिंग – ये आदमी सिर्फ़ एक्टिंग नहीं करता, स्क्रीन पर दहाड़ता है.

रणदीप हुड्डा: ठंडे खून वाला खतरनाक विलेन, जिसने अपनी आंखों से ही आधा खेल कर दिया, जो “ढाई किलो के हाथ” के सामने अपना लोहा मनवाते हैं.

विनीत कुमार: किरदार को जीया है इन्होंने, और जो मज़ा उन्होंने लिया है, वो दर्शक को साफ़ दिखता है.

सायामी खेर और रेजीना कैसेंड्रा: दोनों एक्ट्रेसेज़ ने ना सिर्फ़ स्क्रीन पर अपना ग्रेस दिखाया, बल्कि दमदार उपस्थिति भी दर्ज करवाई है.

कहानी और निर्देशन: पुराना मसाला, लेकिन नए तड़के के साथ (Story: 2.5/5 | Direction: 4/5)

कहानी सीधी है – बुराई के खिलाफ़ एक अकेले इंसान की लड़ाई. लेकिन गोपिचंद मलिनेनी का डायरेक्शन इसे साधारण नहीं रहने देता.
फिल्म में वो हर मसाला है जिसकी याद साउथ और 90’s की फिल्मों से जुड़ी है, जैसे भाई की मौत का बदला, गरीबों की ज़मीन पर कब्ज़ा, धांसू डायलॉग्स, और एक ऐसा विलेन जिसकी नजरें ही कत्ल कर दें.

डायरेक्शन में एक बात साफ है – फिल्म लॉजिक नहीं, इमोशन और स्टाइल पर चलती है, और इसमें ये पूरी तरह पास हो जाती है. हाँ लेकिन एक्शन के बीच कई कहानियों का मिश्रण भी देखने को मिलता है.

म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर: सीन के साथ धड़कता है दिल (Music: 3/5 | BGM: 4/5)

गाने ठीक-ठाक हैं, लेकिन बैकग्राउंड म्यूज़िक जबरदस्त है.
सनी देओल की एंट्री, फाइट सीन, या कोई बड़ा डायलॉग – हर जगह BGM आग लगा देता है.
BGM ऐसा है कि शरीर में करंट दौड़ जाए और आप खुद को ‘धाई किलो का हाथ’ उठाते हुए महसूस करें.

एक्शन: सिर कट रहे हैं, डायलॉग गूंज रहे हैं, तालियाँ बज रही है.

फिल्म का पहला हाफ है दमदार, तगड़ा, धुआंधार. यहां भी सनी पाजी अपने ढाई किलो के हाथ का कमाल दिखते नजर आते हैं, चाहे बात विलन के घर में घुस कर खम्बे उखाड़ने हो या एक हाथ से जीप को रोक देने की.
सेकंड हाफ थोड़ा लंबा खिंचता है, लेकिन क्लाइमेक्स में फिर वही पुराना सनी पाजी वाला अंदाज़ – गुस्से से भरा, लेकिन इंसाफ के लिए खड़ा.

खून, बदला, गर्जना, और वो सीन जहां विलेन डर से थर-थर कांपता है – सबकुछ यहां है.
साउथ के स्टाइल में पेश किया गया ये ‘देसी गदर’ वाकई सिनेमैटिक पंच है.

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तर्क-वितर्क? छोड़िए साहब, ये मसाला है!

इस फिल्म से लॉजिक की उम्मीद करना वैसा ही है जैसे गोलगप्पे में पिज़्ज़ा टॉपिंग ढूंढना.
यहां मनोरंजन है, देसी धड़कन है, और वो टच जो हमें हर बार याद दिलाता है कि मसाला फिल्मों की जान कहां होती है – जोश में, जलवे में और जोरदार एंट्री में.

अगर आप साउथ स्टाइल, 90’s की वाइब और देसी रफ़-टफ़ हीरो के फैन हैं, तो “जाट” एक बार जरूर देखिए. ये फिल्म एक बार फिर बताता है कि जब सनी देओल दहाड़ता है, तो सिर्फ़ पर्दा नहीं, दिल भी कांपते हैं. ‘जाट’ एक ऐसी फिल्म है जो 80-90 के दशक के मसाले को साउथ की चमक-दमक और हिंदी की देसी मिट्टी के साथ मिलाकर पेश करती है. ये वही पुराना फॉर्मूला है, लेकिन इस बार पैकेज नया है – पॉलिश किया हुआ, दमदार और तालियों के लायक. जब ढाई किलो का हाथ हरियाणा की जाट मिट्टी से टकराता है, तो सिर्फ खलनायक नहीं गिरते, बल्कि पूरा थिएटर उठ खड़ा होता है. हालाँकि आज हिंदी फिल्मों में साउथ का तड़का आम बात हो चुकी है, ऐसे में नार्थ के बाद साऊथ में सनी पाजी की दहाड़ बहुत चौकाने देने वाला नहीं है, आसानी से स्वीकार किया जा सकता है.

कुल मिलाकर एक्शन, इमोशन और देसी गरिमा का तगड़ा तड़का – ‘जाट’ मनोरंजन के लिहाज से एक बार तो देखनी ही चाहिए. ‘जाट’ सिर्फ़ फिल्म नहीं, देसी एक्शन का महाकुंभ है.

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