Red Fort Petition: देश की सबसे ऐतिहासिक इमारतों में से एक लाल किला पर दावा ठोका गया है. दरअसल, मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर द्वितीय की वंशज बताने वाली सुल्ताना बेगम (Sultana Begum) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दाखिल कर कहा कि लाल किला पर उनका पारिवारिक अधिकार है और उसे उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया है.
क्या है पूरा मामला?
सुल्ताना बेगम ने खुद को मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के परपोते की विधवा बताया है. वह पिछले कई सालों से कोलकाता के हावड़ा में रह रही हैं. उन्होंने यह याचिका सबसे पहले साल 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल की थी. उनका कहना है कि मुगलों के वंशज होने के नाते उन्हें लाल किले का कानूनी उत्तराधिकारी माना जाए.
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को उनके हालात पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वह आर्थिक तंगी में जी रही हैं. लेकिन हाई कोर्ट ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस दावे में 164 साल की देरी हो चुकी है और इतनी पुरानी बात पर अब कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती.
“सिर्फ लाल किला क्यों, फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं?”
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को सुल्ताना बेगम ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसे ‘बेतुका और बे-सिर-पैर’ का बताते हुए तुरंत खारिज कर दिया. कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि सिर्फ लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? वो भी तो मुगलों की थी.
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इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए रोचक, लेकिन कानून के लिए नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए एक मैसेज दे दिया है. भले ही यह मामला इतिहास के शौकीनों के लिए जरूर दिलचस्प हो सकता है, लेकिन अदालतें सबूतों और कानून के आधार पर ही फैसला लेती हैं. कोई भी ऐतिहासिक इमारत, भले ही वह किसी राजा या शासक से जुड़ी हो, उस पर निजी दावा नहीं किया जा सकता खासकर तब जब मामला सदियों पुराना हो.
सरकार से उम्मीद थी मदद की
कुछ लोगों का कहना है कि सुल्ताना बेगम की मंशा कानूनी कब्जे से ज्यादा शायद सरकारी सहायता पाने की रही हो, लेकिन अदालत ने साफ कर दिया कि इस तरह की याचिकाएं कानूनी समयसीमा, तर्क और उद्देश्य के बिना स्वीकार नहीं की जा सकतीं. सुल्ताना बेगम को एक बार फिर से बड़ा झटका लगा है.
