Electoral Bonds से 5 साल में किस पार्टी को कितना मिला चंदा, SBI को देनी होगी पूरी जानकारी, SC से मिला 3 हफ्ते का समय

Electoral Bonds: कोर्ट के आदेश के अनुसार बैंक को इस चुनावी ब्रॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी अपने अधिकारिक वेबसाइट पर साझा करनी होगी.
Supreme Court EC

सुप्रीम कोर्ट (ANI)

Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर अपना फैसला सुनाया है. अदालत ने इस योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया है. इस मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही एसबीआई से राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए चुनावी बांड का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बैंक तत्काल चुनावी बांड जारी करना बंद कर दें. एसबीआई राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए चुनावी बांड का ब्योरा पेश करेगा. एसबीआई भारत के चुनाव आयोग को विवरण प्रस्तुत करेगा और ECI इन विवरणों को वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए ये फैसला सुनाया है.

कंपनियों का दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य- SC

अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनावी बांड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है. कोर्ट ने एसबीआई को निर्देश देते हुए कहा है कि बीते पांच सालों के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू होने के बाद किस पार्टी को कितने चुनावी बॉन्ड मिले इसकी जानकारी उपलब्ध कराए.

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अब अदालत के फैसले के बाद एसबीआई को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की पूरी जानकारी तीन सप्ताह के अंदर भारत निर्वाचन आयोग को देनी होगी. इसके अलावा कोर्ट के आदेश के अनुसार बैंक को इस चुनावी ब्रॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी अपने अधिकारिक वेबसाइट पर साझा करनी होगी. गौरतलब है कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच जजों की बेंच ने इस मामले में गुरुवार को अपना फैसला सुनाया है.

पांच जजों की बेंच में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे. बता दें कि इस स्कीम की घोषणा 2 जनवरी 2018 को हुई थी. केंद्र सरकार ने अपनी इस योजना के तहत राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने की कोशिश की थी.

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