बीजेपी को अतिआत्मविश्वास ले डूबा…RSS के मुखपत्र में नसीहत

आरएसएस के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने लेख में लिखा, "2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए वास्तविकता की परीक्षा के रूप में आए हैं."
RSS Mouthpiece

मोहन भागवत और जेपी नड्डा (फोटो- सोशल मीडिया)

RSS Mouthpiece: लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के ‘अति आत्मविश्वासी’ कार्यकर्ताओं और उसके कई नेताओं के लिए वास्तविकता की परीक्षा बनकर आए हैं. वे अपने में ही खुश थे और पीएम मोदी के भाषणों का आनंद ले रहे थे. लेकिन सड़कों पर लोगों की आवाज नहीं सुन रहे थे. आरएसएस ने अपने माउथपीस Organiser के ताजा अंक में ये बातें कही हैं.

भाजपा की फील्ड फोर्स नहीं है RSS: मुखपत्र

“ऑर्गनाइजर” पत्रिका के अंक में लिखा गया है कि आरएसएस भाजपा की ‘फील्ड फोर्स’ नहीं है, लेकिन पार्टी के नेता और कार्यकर्ता चुनावी काम में सहयोग के लिए अपने ‘स्वयंसेवकों’ से संपर्क नहीं करते हैं. इसमें कहा गया है कि नए युग के सोशल मीडिया और सेल्फी वाले कार्यकर्ताओं को ज्यादा तवज्जो और पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी चुनाव परिणामों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.

आरएसएस के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने लेख में लिखा, “2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए वास्तविकता की परीक्षा के रूप में आए हैं. उन्हें यह एहसास नहीं हुआ कि पीएम मोदी का 400 से अधिक सीटों का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था.”

उन्होंने आगे लिखा, “240 सीटों के साथ भाजपा बहुमत से चूक गई, लेकिन एनडीए ने लोकसभा चुनावों में 293 सीटों के साथ जनादेश हासिल किया. कांग्रेस को 99 सीटें मिलीं, जबकि इंडिया ब्लॉक को 234 सीटें मिलीं. चुनावों के बाद जीतने वाले दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस को समर्थन देने का वादा किया है, जिससे इंडिया ब्लॉक की संख्या 236 हो गई है.”

“लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं”

शारदा ने लिखा कि लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं, न कि सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से. उन्होंने कहा, “चूंकि वे अपने बुलबुले में खुश थे, मोदीजी के आभा से परिलक्षित चमक का आनंद ले रहे थे, इसलिए वे सड़कों पर आवाज नहीं सुन रहे थे.”

महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति और टाले जा सकने वाले हेरफेर का एक प्रमुख उदाहरण है. अजीत पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट ने भाजपा का दामन थाम लिया, जबकि भाजपा और विभाजित एसएस (शिवसेना) के पास आरामदायक बहुमत था. शरद पवार दो-तीन साल में गायब हो जाते, क्योंकि चचेरे भाइयों के बीच की लड़ाई में एनसीपी की ऊर्जा खत्म हो जाती.

यह गलत कदम क्यों उठाया गया? भाजपा समर्थकों को चोट पहुंची, क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें सताया गया. एक ही झटके में भाजपा ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी. महाराष्ट्र में नंबर एक बनने के लिए वर्षों के संघर्ष के बाद, यह बिना किसी अंतर के एक और राजनीतिक पार्टी बन गई.” महाराष्ट्र में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा और वह 2019 में कुल 48 में से 23 सीटों की तुलना में केवल नौ सीटें ही जीत सकी. शिंदे गुट के नेतृत्व वाली शिवसेना को सात सीटें और अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को केवल एक सीट मिली.

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आरएसएस समर्थकों को भी “काफी” ठेस पहुंचा: शारदा

किसी नेता का नाम लिए बिना शारदा ने कहा कि कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करना, जिन्होंने भगवा आतंकवाद के हौवे को “सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया” और हिंदुओं को सताया और 26/11 को ‘आरएसएस की साजिश’ कहा और आरएसएस को आतंकवादी संगठन करार दिया, भाजपा की “खराब छवि” पेश की और आरएसएस समर्थकों को भी “काफी” ठेस पहुंचाई.

इस चुनाव में आरएसएस ने भाजपा के लिए काम किया या नहीं, इस सवाल पर शारदा ने कहा, “मैं साफ-साफ कह दूं कि आरएसएस भाजपा की फील्ड फोर्स नहीं है. वास्तव में, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के अपने कार्यकर्ता हैं. उन्होंने कहा कि मतदाताओं तक पहुंचने, पार्टी के एजेंडे को समझाने, साहित्य और मतदाता कार्ड वितरित करने जैसे नियमित चुनावी काम पार्टी की जिम्मेदारी है.

उन्होंने कहा, “आरएसएस लोगों में उन मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ा रहा है जो उन्हें और राष्ट्र को प्रभावित करते हैं. 1973-1977 की अवधि को छोड़कर, आरएसएस ने सीधे राजनीति में भाग नहीं लिया है. इस बार भी, आधिकारिक तौर पर यह निर्णय लिया गया कि आरएसएस कार्यकर्ता 10-15 लोगों की छोटी स्थानीय, मोहल्ला, भवन, कार्यालय स्तर की बैठकें आयोजित करेंगे, ताकि लोगों से मतदान करने का अनुरोध किया जा सके.”

उन्होंने कहा कि इसमें राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकीकरण और राष्ट्रवादी ताकतों को समर्थन के मुद्दों पर भी चर्चा की गई.” उन्होंने कहा कि अकेले दिल्ली में 1.20 लाख ऐसी बैठकें आयोजित की गईं. इसके अलावा, चुनावी काम में स्वयंसेवकों का सहयोग लेने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं, स्थानीय नेताओं को अपने वैचारिक सहयोगियों से संपर्क करने की जरूरत है. क्या उन्होंने ऐसा किया? मेरा अनुभव और बातचीत मुझे बताती है.

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