Ram Nawami 2025: रामनवमी पर घर में पूजा कैसे करें, जानिए कथा और पूजन विधि

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष राम नवमी ,श्री राम जी का जन्मोत्सव पर्व 6 अप्रैल 2025, रविवार के दिन मनाया जाएगा. श्री राम जी के जन्म दिवस को ही राम नवमी के रूप में बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है.
Ram Nawami 2025

Ram Nawami 2025

Ram Navami 2025: देशभर में रामनवमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. इस अवसर पर भगवान राम की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. कहा जाता है कि रामनवमी के दिन विष्णु जी ने भगवान राम के रूप में अपना सातवां अवतार लिया था.

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष राम नवमी ,श्री राम जी का जन्मोत्सव पर्व 6 अप्रैल 2025, रविवार के दिन मनाया जाएगा. श्री राम जी के जन्म दिवस को ही राम नवमी के रूप में बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है. ऐसे में आज हम यहां जानेंगे राम नवमी पूजन की विधि, पूजा सामग्री और राम नवमी व्रत कथा के बारे में पूरी जानकारी विस्तार से…

राम नवमी पूजा सामग्री

राम जी की तस्वीर, हल्दी, कुमकुम, मौली, चंदन, फूल, पंचामृत, अक्षत, कपूर, सिंदूर, अबीर, गुलाल, केसर, अभिषेक के लिए दूध, दही, घी, शक्कर, गंगाजल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पीले वस्त्र, मिठाई, दीप, कलश, तुलसी दल, ध्वजा, पंचमेवा, नारियल, पांच फल, भोग के लिए पंजीरी, खीर, हलवा इनमें से कुछ भी बना सकते हैं.

राम नवमी पूजा विधि

राम नवमी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और भगवान श्रीराम की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.इसके बाद दीप प्रज्वलित करें और भगवान श्रीराम का आह्वान करें. पूजा में फल, फूल, अक्षत, चंदन, तुलसी पत्ता और पंचामृत चढ़ाएं. भगवान श्रीराम के साथ माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की भी पूजा करें.राम चालीसा और राम स्तुति का पाठ करें और अंत में आरती कर प्रसाद बांटें. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से विशेष फल प्राप्त होता है और जीवन की सभी परेशानियों का समाधान होता है.

श्री राम नवमी व्रत कथा

हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था. श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था.

“भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी”

रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे. पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया. इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया. तत्पश्चात यज्ञकुण्ड से अग्निदेव अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले.

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यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी. खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं. ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने श्रीराम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने श्रीभरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न को जन्म दिया. भगवान श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था.

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