इंटेलेक्चुअल मीट, सार्वजनिक सभा… क्या है बीजेपी के चुनाव जीतने की मशीनरी के पीछे का सच?
Lok Sabha Election 2024: देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं और भाजपा ने 400 पार का नारा दिया है. आखिर यह नारा क्या वास्तव में धरातल पर उतर पाएगा? क्या भाजपा चुनाव जीतने की मशीनरी है या फिर ईवीएम में कोई सेटिंग? यह सवाल आज सबसे बड़ा है और इसका जवाब तलाशने के लिए राजनीतिक पंडित तरह-तरह के प्रयास कर रहे हैं.
देश में चार चरण के चुनाव के बाद छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश जैसे राज्यों का चुनाव पूरा हो गया. इन राज्यों में चुनाव पूरा होने के बाद यहां के नेताओं को अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी गई हैं. इन नेताओं को उन्हीं इलाकों में भेजा गया है, जहां या तो उनके सामाजिक समीकरण फिट बैठते हैं या फिर उनके राज्यों की लगी सीमाओं से जुड़े लोकसभा क्षेत्र हैं. बात मध्य प्रदेश की हो या छत्तीसगढ़, भाजपा का नेता अपने राज्य का चुनाव पूरा करने के बाद आखिर पड़ोसी राज्य में चुनाव कराने के लिए इतना गंभीर क्यों है?
सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या कोई ऐसी ताकत है, जो इन नेताओं के अंदर एक जोश पैदा कर रही है, जो पड़ोसी राज्य में जाकर भी अपने चुनाव के बराबर मेहनत करें, लग्न दिखाएं और सीट को जीतने के लिए प्रयास करें? क्या देश का कोई अन्य राजनीतिक दल अपने नेताओं को उनके क्षेत्र के बाहर चुनाव प्रचार करने के लिए भेज पा रहा है? वर्तमान में तो ऐसा बीजेपी को छोड़कर किसी भी राजनीतिक दल में देखने को नहीं मिल रहा है. पूरी की पूरी पार्टी या संगठन पड़ोसी राज्यों में जाकर 20 से 25 दिन प्रचार कर रहे हैं और उम्मीदवारों को जीताने के लिए मेहनत करें.
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अपने राज्यों में भाजपा सरकार के काम गिना रहे नेता
लोकसभा चुनाव में भाजपा के कैंपेन को देखें तो पड़ोसी राज्यों में जाने वाले नेता अपने राज्यों में भाजपा की सरकार के काम गिना रहे हैं. यही नहीं मतदाताओं से सीधी और सरल भाषा में कनेक्ट होने की कोशिश कर रहे हैं, लोकल मुद्दों की बात कर रहे हैं. देश में एक मजबूत सरकार बनाने की बात कर रहे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनका सबसे बड़ा चेहरा है. मोदी की गारंटी जनता के बीच पहुंचाई जा रही हैं. मोदी के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं और पूरे के पूरे चुनाव को एक व्यक्ति पर केंद्रित करके बीजेपी कमल फूल को एक बड़ा ब्रांड बनाती नजर आ रही हैं.
लोगों की भावनाओं के साथ कनेक्ट हो रही बीजेपी
बता दें कि सभी लोकसभा सीट पर या तो नरेंद्र मोदी का नाम चल रहा है या फिर कमल का फूल. उम्मीदवार या तो बहुत बोना है या फिर शून्य पर खड़ा नजर आ रहा है. तो ऐसे में क्या राहुल गांधी बीजेपी की इस रणनीति का मुकाबला कर पा रहे हैं? क्या भारत जोड़ो यात्रा के बाद जो राहुल का नया स्वरूप दिख रहा है, जो नए तरीके की राजनीति कर रहे हैं, वह बीजेपी से लड़ने और केंद्र में सरकार बनाने में सक्षम नजर आ रही है? इन सभी सवालों और बातों से अलग एक सच यह भी है कि स्थानीय लोगों की भावनाओं के साथ बीजेपी कनेक्ट हो रही है और पड़ोसी राज्यों के नेता उसमें मददगार साबित हो रहे हैं. नेताओं के नेचर के आधार पर कैंपेन प्लान किया जा रहा है. इंटेलेक्चुअल नेताओं को इंटेलेक्चुअल मीट कराई जा रही हैं तो जो नेता अच्छी भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं उन्हें सार्वजनिक सभा में अवसर दिया जा रहा है.