Vistaar NEWS

Jabalpur: 5 ठेकेदारों ने फर्जी बिल लगाकर सरकार को 37 करोड़ रुपये का चूना लगाया, EOW ने दर्ज की शिकायत, सड़क बनाने का है मामला

Corruption of Rs 37 crores came to light in road construction in Jabalpur

जबलपुर में सड़क बनाने में 37 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार आया सामने

MP News: जबलपुर में सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले डामर के फर्जी बिल लगाकर सरकार को करीब 37 करोड रुपये का चूना लगाया गया है. मामला सामने आने के बाद EOW ने जांच पड़ताल की. 5 ठेकेदारों के खिलाफ FIR दर्ज की है.

भ्रष्टाचार के लिए तैयार किए गए फर्जी दस्तावेज

EOW मुख्यालय को महाकौशल क्षेत्र में बनाई गई सड़कों के ठेकेदारों को किए गए भुगतान में आर्थिक गड़बड़ी की शिकायत मिली थी. शिकायत के बारे में जांच की गई तो EOW ने मध्य प्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण के अंतर्गत बनाई गई सड़कों के निर्माण कार्य के भुगतान में बड़ा घोटाला पाया. जांच में पाया गया कि ठेकेदारों ने फर्जीवाड़ा करते हुए सरकारी और निजी तेल कंपनियों के फर्जी दस्तावेज तैयार किए. ग्रामीण विकास प्राधिकरण से करोड़ों रुपये का भुगतान फर्जी बिलों के आधार पर ले लिया.

मुख्य मार्गों से गांव तक के बेहतर यातायात संपर्क के लिए ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण ने ठेकेदारों को महाकौशल क्षेत्र में सड़क बनाने का ठेका दिया था. यह सड़क डामरीकृत हैं जांच में ठेकेदारों ने बिटुमिन यानी डामर के फर्जी बिल लगाए. आशंका है कि ठेकेदारों ने अधिक लाभ कमाने के लिए गुणवत्ता से भी समझौता किया है. निर्धारित से कम मात्रा में डामर का उपयोग कर सड़कें बना दी और अधिक मात्रा के बिल प्रस्तुत करते हुए प्राधिकरण को करोड़ों रुपये की चपत लगा दी.

ये भी पढ़ें: दिल्ली में दिखेगी एमपी के चीतों की झलक, कर्तव्यपथ पर लहंगी डांस करते नजर आएंगे लोक कलाकार

नामचीन कंपनियों के नाम से बिल बनाए गए

ठेकेदार द्वारा नामी कंपनियों के नाम पर डामर के बिल प्रस्तुत किए गए थे. जिसमें इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटे, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, एस्सार और नायरा कंपनी के डामर के बिल शामिल किए गए थे. जब इन कंपनियों से बिलों के संबंध में जानकारी जुटाई गई तो उन्होंने बिलों को फर्जी बता दिया.

सरकारी अधिकारी भी जांच के घेरे में आए

घोटाला सामने आने के बाद मध्य प्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण अधिकारी भी जांच के दायरे में आ गए हैं. अधिकारियों और कर्मचारियों की ठेकेदारों से मिलीभगत की आशंका साफ नजर आ रही है. ठेकेदारों की ओर से बिल भुगतान के लिए प्राधिकरण महाप्रबंधक कार्यालय में बिल प्रस्तुत किए गए थे. जहां से भुगतान को स्वीकृति दी गई. लिहाजा बिलों के सत्यापन की प्रक्रिया में भी या तो लापरवाही की गई है या फिर जानबूझकर बिल पास कर दिए गए.

Exit mobile version