MP News: ज्ञानवापी प्रकरण में हुए सर्वे के आदेश के बाद उसी तर्ज पर सोमवार को मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाला को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि भोजशाला का भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई की ओर से सर्वे किया जाएगा. आप को बता दें कि मां सरस्वती मंदिर भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए “हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस” नामक संगठन द्वारा हाईकोर्ट में आवेदन दिया गया था. जिस पर पर हाईकोर्ट ने एएसआई को वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया.
मालूम हो कि इससे पहले मप्र हाईकोर्ट ने भोजशाला विवाद को लेकर लगी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वे के आदेश पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इसके बाद से भोजशाला एक बार फिर देश दुनिया में चर्चा में आ गई है,
जानिए क्या है पूरा विवाद और यह कैसे शुरू हुआ?
मध्य प्रदेश के धार जिले की भोजशाला मामला फिर सुर्खियों में है. हाईकोर्ट ने भोजशाला के सर्वे पर आदेश सुरक्षित रखा था, जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सोमवार को एएसआई को वैज्ञानिक ढंग से सर्वे करने के लिए कहा. दरअसल, सोमवार को भोजशाला विवाद को लेकर लगी सात जनहित याचिका पर हुई. हिंदू पक्ष ने याचिका में मंदिर परिसर का दोबारा सर्वे करने की मांग की है. सुनवाई के दौरान 1902 में भोजशाला में हुए सर्वे को लेकर भी बहस हुई। आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने भी सर्वे रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष रखी है. हिंदू फार जस्टिस ट्रस्ट की ओर से लगाई गई याचिका में कहा गया है कि भोजशाला में हिंदू समाज को नियमित पूजा का अधिकार है. वहां मुस्लिम समाज नमाज पढ़ता है। याचिका में नमाज पढ़ने पर रोक लगाने की मांग भी गई है.
इतिहासकारों का कहना है कि परमार कालीन मंदिर है भोजशाला
दरअसल, वाराणसी स्थित ज्ञानवापी पर न्यायालय के आदेश और अयोध्या में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के बाद से धार जिले के हिंदू समाज में प्राचीन मां वाग्देवी सरस्वती मंदिर रूपी भोजशाला की मुक्ति की आस जगी है. कई वर्षों से भोजशाला में शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष नमाज पढ़ता है. वहीं, मंगलवार को हिंदू समाज पूजा अर्चना और यज्ञ आदि करता है. इतिहासकारों के अनुसार भोजशाला को परमार कालीन माना जाता है. राजा भोज ने 1034 में धार में सरस्वती सदन के रूप में भोजशाला रूपी महाविद्यालय की स्थापना की थी. यहां देश-विदेश के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे. भोजशाला में मां सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति भी स्थापित की गई थी.
वर्ष 1456 में भोजशाला को ढहाया गया, आक्रमणकारी महमूद खिलजी ने बनवाया था मकबरा
इतिहासकारों के अनुसार 13वीं और 14वीं सदी में मुगलों ने देश में आक्रमण किया. 1456 में महमूद खिलजी ने भोजशाला में मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया. साथ ही प्राचीन सरस्वती मंदिर भोजशाला को ढहाकर उसके अवशेषों से उसके भोजशाला का रूप परिवर्तित कर दिया. आज भी प्राचीन हिंदू सनातनी अवशेष भोजशाला में स्पष्ट रूप से नजर आते हैं। इसके बाद से ही भोजशाला मुक्ति को लेकर विवाद जारी है.
धार भोजशाला मामले में इंदौर हाई कोर्ट ने ASI सर्वे करने का दिया आदेश.
◆हिंदू पक्ष की तरफ से वकील विष्णु शंकर जैन ने की थी सर्वे कराने की मांग.#ASI #VishnuShankarJain #ASIsurvey #IndoreHighCourt #VistaarNews pic.twitter.com/LCQs1GKT89
— Vistaar News (@VistaarNews) March 11, 2024
राजा आनंद राव पवार की तबीयत बिगड़ी तब मुस्लिम समाज ने मांगी थी नमाज की अनुमति
अंग्रेजों के शासनकाल में हुए सर्वे में यहां हुई खुदाई में भोजशाला में पूर्व में स्थापित माता सरस्वती वाग्देवी की प्रतिमा मिली, जिसे बाद वे अपने साथ ले गए. सदियों तक वीरान पड़ी रही भोजशाला और विवाद के बीच रियासतकाल में यहां राज परिवार के घोड़ों के लिए घास और चारा भरा जाता था. इसी बीच तत्कालीन धार के राजा आनंद राव पवार चतुर्थ की तबीयत बिगड़ी, उनकी तबीयत में सुधार नहीं होने पर मुस्लिम समाज ने दुआ करने की बात कहकर भोजशाला में जगह मांगी। तत्कालीन दीवान खंडेराव नाटकर ने 1933 में मुस्लिम समाज को भोजशाला में नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी थी. वहीं, हिंदू समाज प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर यहां आयोजन करता रहा.
तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने जारी किया एक तरफा आदेश
देश की आजादी के बाद भोजशाला का विवाद और बढ़ते हुए कानूनी लड़ाई में बदल गया. इस बीच वर्ष 1995 में हुई घटना से बात बिगड़ गई. जिसके बाद प्रशासन ने मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी. 1997 में प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया. इस दौरान हिंदुओं को वर्ष में एक बार बसंत पंचमी और मुसलमान को प्रति शुक्रवार एक से तीन बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन मुस्लिम मुसलमानों को नमाज की अनुमति जारी रही. तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार में आए इस एक तरफा आदेश से विवाद और गहराया. हालांकि, कोर्ट के जरिए हिंदुओं को वर्ष 2003 में फिर से पूजा करने की अनुमति मिल गई और पर्यटकों के लिए सशुल्क भोजशाला को भी खोल दिया गया. इसके बाद से लगातार भोजशाला को लेकर न्यायालयीन लड़ाई जारी है. हर साल बसंत पंचमी पर हिंदू समाज यहां कार्यक्रम करता है. लेकिन, शुक्रवार के दिन बसंत पंचमी पड़ने से कई बार विवाद की स्थिति बनती है. ऐसे में कई पूरा धार जिला तनाव में रहा है.
भाजपा ने वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भोजशाला को बनाया चुनावी मुद्दा और जीता चुनाव
वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भोजशाला को मुद्दा बनाकर भाजपा ने प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की और उमा भारती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी. इसके बाद से भाजपा सरकार लंदन के एक म्यूजियम में रखी मां सरस्वती वाग्देवी की प्रतिमा को लाकर भोजशाला में स्थापित कर इसे मुक्ति कराने की बात कह रही है. वहीं, अब न्यायालय में भोजशाला के सर्वे के फैसले को सुरक्षित रखे जाने के बाद एक बार फिर इसकी चर्चा शुरू हो गई.
वर्ष 1951 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित हो चुकी है भोजशाला, नोटिफिकेशन भी हुआ था जारी
हाईकोर्ट में आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. वर्ष 1902 में लॉर्ड कर्जन धार, मांडू के दौरे पर आए थे. उन्होंने भोजशाला के रखरखाव के लिए 50 हजार रुपए खर्च करने की मंजूरी दी थी. तब सर्वे भी किया गया था. वर्ष 1951 को धार भोजशाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है, तब हुए नोटिफिकेशन में भोजशाला और कमाल मौला की मस्जिद का उल्लेख है. याचिका हिंदू फार जस्टिस ट्रस्ट की तरफ से लगाई गई है। इसके अलावा छह अन्य याचिकाएं भी इस मामले में पूर्व में लगी हैं. ट्रस्ट की तरफ से अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने पक्ष रखते हुए कहा कि 1902 में हुए सर्वे में भोजशाला में हिंदू चिन्ह, संस्कृत के शब्द आदि पाए गए है. इसकी वैज्ञानिक तरीके से जांच होना चाहिए, ताकि स्थिति स्पष्ट हो. दूसरे पक्ष की तरफ से कहा गया कि जबलपुर कोर्ट में याचिका चल रही है. हाईकोर्ट ने उस याचिका की जानकारी भी कोर्ट में पेश करने के लिए कहा है.